Saturday, 28 November 2015

जो कृष्ण की वांछा पूर्ण करें वही गोपी है

जो कृष्ण वांछा को पूर्ण करे, वे राधा है
श्री कृष्ण की वंशी ध्वनि गोपियों के कानो में गई है और राधा रूप से एक एक गोपी के अन्तःकरण में समाकर राधा रूप हुई है. इसलिए ठाकुर जी ने गोपियों को स्पर्श किया है. अन्यथा किसी का स्पर्श ठाकुर जी नहीं करते.

जब कृष्ण में "भाव" ज्यादा होता है तब "राधारूप" हो जाते है और जब राधा में "रस" ज्यादा हो जाता है तो वे "कृष्णरूप" बन जाती है. कृष्ण "रस-प्रधान" है और राधा "भाव-प्रधान" है. जब रस पिलाने की इच्छा होती है तो कृष्ण बन जाती है और जब पीने की इच्छा होती है तो राधा बन जाती है.

कौन? कब? कैसे? बदल जाता है ये कोई नहीं जानता. केवल ललिता जी ही जानती है. तत्व के बारे में जानना ठीक है, परन्तु इससे आस्वादन नहीं मिल सकता इसे हम ऐसे समझ सकते है.

जैसे कोई बढ़िया सा दूध सामने रखे और पीने वाला पीने की जगह ये बोले कि दूध में क्या क्या पौष्टिक तत्व है तो पिलाने वाला कहे अभी प्रयोगशाला में भेजकर पता करने बताता हूँ १५ दिन बाद एक लिस्ट बनाकर उस व्यक्ति को दे दे कि दूध में ये सारी चीजे होती है.

अब वह व्यक्ति बोले - अब दूध लाओ! तो दूध पिलाना वाला कहेगा - अब दूध कहा है? वह तो प्रयोगशाला में चला गया. अब तो केवल ये रिपोर्ट है इसे ही पढता रह. अर्थात अब रिपोर्ट तो पढ़ सकता है, कि दूध में ये-ये चीजे है, पर उसका आस्वादन नहीं ले सकता.बिलकुल ऐसे ही तत्व और रस है. हमें देखना है कि हमें क्या करना है. तत्व के बारे में जानना है, या रस का आस्वादन लेना है. 

कृष्ण वांछा पूर्ण करे, वे राधा है. यहाँ प्रश्न उठता है कि कृष्ण को भी वांछा है अर्थात जो सबसे निवृत है पूर्ण है वे कृष्ण है. उनके अन्दर ये वांछा? इच्छा कैसी ?

जैसे कोई चीज पास में है तो इच्छा क्यों होगी ? पास में नहीं है,अभाव है तो इच्छा होगी, और हम जीवन में उस अभाव की पूर्ति में लग जाते है, जैसे गाडी नहीं है, ये अभाव है.कि पास में नहीं है तो इच्छा होगी उसे पाने की.

                                               श्री कृष्ण को ,श्री प्रिया जी के महाभाव की वांछा है

इसी तरह भगवान तो पूर्ण है, पर जब प्रिया जी महाभाव में होती है,विप्रलभ्ब की उच्चतम अवस्था होती है वो भी तब नहीं जब श्रीकृष्ण उनके पास नहीं होते, तब जब श्रीकृष्ण उनकी गोद में सिर रखे लेटे है उनकी उपस्थिति में विप्रलंभ होता है. अभी पास में है,फिर चले जायेगे इस भावी विरह के आते ही पास में उपस्थित कृष्ण के रहते भी विरह के उस महाभाव में प्रिया जी डूब जाती है.

जैसे भूख लगी है भोजन पास नहीं है तो सहन कर भी लेगे, कि अभी नहीं है आ जायेगा,पर जब भूख है भोजन भी सामने ही है,फिर भी नहीं खा सकते तब तो प्राण ही निकल जायेगे.

श्री कृष्ण उस समय प्रिया जी की गोद में लेटे ये सोचते है कि हमने सबकुछ कर लिया पर ये भाव मेरे अन्दर क्यों नहीं है इसका जब उन्हें अभाव होता है और उस महाभाव कि वांछा को जो पूर्ण करे वो श्री राधा है.  सत्यजीत तृषित ।।।

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