भगवान का प्रकट होकर गोपियों को सांत्वना देना
भगवान की प्यारी गोपियाँ विरह के आवेश में इस प्रकार भांति-भांति से गाने और प्रलाप करने लगी. अपने कृष्ण-प्यारे के दर्शन की लालसा से वे अपने को रोक न सकी और करुणाजनक सुमधुर स्वर से फूट-फूटकर रोने लगी. ठीक उसी समय उनके बीचो-बीच भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गये, उनका मुखकमल मंद-मंद मुसकान से खिला हुआ था. उनका वह रूप क्या था, सबके मन को मथ डालने वाले कामदेव के मन को भी मथने वाला था. कोटि-कोटि कामो से भी सुन्दर परम मनोहर प्राणवल्लभ श्यामसुन्दर को आया देख गोपियों के नेत्र प्रेम और आनंद से खिल उठे. वे सब-के-सब एक ही साथ इस प्रकार उठ खड़ी हुई मानो प्राणहीन शरीर में दिव्य प्राणों का संचार हो गया हो.
‘एक गोपी’ ने बड़े प्रेम और आनंद से श्रीकृष्ण के करकमलो को अपने दोनों हाथों में ले लिए और वह धीरे-धीरे उसे सहलाने लगी. ‘दूसरी गोपी’ ने उनके चंदनचर्चित भुजदंड को अपने कंधे पर रख लिए.
‘तीसरी’ ने भगवान का चबाया हुआ पान अपने हाथों में ले लिया. ‘चौथी गोपी’ जिसके ह्रदय में भगवान के विरह से बड़ी जलन हो रही थी, बैठ गयी, और उनके चरणकमलों को अपने वक्ष:स्थल पर रख लिया. ‘पाँचवी गोपी’ प्रणय कोप से विहल होकर भौहे चढाकर दांतों से होठ दबाकर अपने कटाक्ष बाणों से बीधती हुई उनकी ओर ताकने लगी.
‘छठी गोपी’ नेत्रो के मार्ग से भगवान को अपने ह्रदय में ले गयी ओर फिर उसने आँखे बंद कर ली अब मन-ही मन भगवान का आलिंगन करने से उसका शरीर पुलकित हो गया जैसे मुमुक्षुजन परम ज्ञानी संत पुरुष को प्राप्त करके संसार की पीड़ा से मुक्त हो जाते है वैसे ही सभी गोपियो को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन से परम आनंद और परम उल्लास प्राप्त हुआ.
यमुना जी के पुलिन पर भगवान सभी गोपियों के साथ आ गये अब उन गोपियों ने अपने वक्ष:स्थल पर लगी हुई रोली-केसर से चिन्हित ओढ़नी को अपने परम प्यारे श्रीकृष्ण के विराजने के लिए बिछा दिया. बड़े-बड़े योगेश्वर अपने योगसाधन से पवित्र किये हुए ह्रदय में जिनके लिए आसन की कल्पना करते रहते है किन्तु फिर भी अपने ह्रदय सिंहासन पर बिठा नहीं पाते वही सर्वशक्तिमान भगवान यमुनाजी की रेति मे गोपियों की ओढनी पर बैठ गये सहस्त्र-सहस्त्र गोपियों के बीच में उनसे पूजित होकर भगवान बड़े ही शोभायमान हो रहे थे.
गोपियों ने कहा- ‘नटनागर! कुछ लोग तो ऐसे होते है जो प्रेम करनेवालो से ही प्रेम करते है, और कुछ लोग प्रेम न करने वालो से भी प्रेम करते है, परन्तु कोई-कोई दोनों से ही नहीं प्रेम नहीं करते. प्यारे! इन तीनो में तुम्हे कौन-सा अच्छा लगता है
भगवान ने कहा – मेरी प्रिये सखियों! जो प्रेम करने पर प्रेम करते है उनका तो सारा उद्योग स्वार्थ को लेकर है, लेन-देन मात्र है. और जो लोग प्रेम न करने वालो से भी प्रेम करते है जैसे माता-पिता, सच पूंछो तो उनके व्यवहार में निश्छल सत्य और पूर्ण धर्म भी है.
कुछ लोग प्रेम न करने वालो और प्रेम करने वालो दोनों से ही प्रेम नहीं करते ऐसे लोग चार प्रकार के होते है - एक तो वे जो अपने स्वरुप में ही मस्त होते है, जिनमे द्वैत नहीं होता, और दूसरे जिनमे द्वैत भासता है परन्तु जो कृतकृत्य हो चुके है. तीसरे वे है जो जानते ही नहीं कि हम से कौन प्रेम करता है. चौथे वे है जो जानबूझकर अपने गुरुतुल्य लोगो से भी द्रोह करते है. गोपियों मै तो प्रेम करने वालो से भी वैसा व्यवहार नहीं करता जैसा करना चाहिये. मै ऐसा केवल इसलिए करता हूँ कि उनकी चित्तवृति और भी मुझमें लगे.
जैसे निर्धन पुरुष को कभी बहुत-सा धन मिल जाये और फिर खो जाये तो उसका हदय खोये हुए धन कि चिंता से भर जाता है वैसे ही में मिल-मिलकर छिप-छिप जाता हूँ. मेरी प्यारी गोपियों तुमने मेरे लिए घर-गृहस्थी की उन बेडियो को तोड़ डाला जिन्हें बड़े-बड़े योगी-यति भी नहीं तोड़ पाते. “ यदि मै अमर शरीर से, अमर जीवन से अनंत काल तक, तुम्हारे प्रेम सेवा और त्याग का बदला चुकाना चाहूँ तो भी नहीं चुका सकता. मै तो जन्म-जन्म के लिए तुम्हारा ऋणी हूँ", तुम अपने सौम्य स्वभाव से प्रेम से मुझे उऋण कर सकती हो, परन्तु मै तो तुम्हारा ऋणी ही हूँ ”.
सत्यजीत तृषित
Saturday, 28 November 2015
भगवान का प्रकट हो कर गोपी को सांत्वना देना
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