Saturday, 28 November 2015

गोपियों की पूजा पद्धति

गोपियों की पूजा पद्धति

अपने निजजन ब्रजवासियो को सुखी करने के लिये ही तो भगवान गोकुल में पधारे थे. माखन तो नंदबाबा के घर पर कम ना था . “नव लख धेनु नंदबाबा घर”- नन्द बाबा के घर लाख-लाख गौएँ थी. वे चाहे जितना खाते-लुटाते .परन्तु वे तो केवल नंदबाबा के ही नहीं, सभी ब्रजवासियों के अपने थे, गोपियों की लालसा पूरी करने के लिये ही वे उनके घर जाते और चुरा-चुराकर माखन खाते. यह वास्तव में चोरी नहीं, ये तो गोपियों की 'पूजा-पद्धति' का भगवान के द्वारा स्वीकार था.भक्तवत्सल भगवान भक्त की पूजा स्वीकार कैसे न करे?

एक दिन श्याम सुन्दर कह रहे थे, मैया ! मुझे माखन भाता है, तू मेवा पकवान के लिये कहते है, परन्तु मुझे तो वे रुचते ही नहीं.’ वही पीछे एक गोपी खड़ी श्यामसुन्दर की बात सुन रही थी .उसने मन-ही-मन कामना की- मै कब इन्हें अपने घर माखन खाते देखूँगी, ये मथानी के पास जाकर बैठेगे, तब मै छिप रहूँगी.’ प्रभु तो अंतर्यामी है, गोपी के मन की जान गये और उसके घर पहुँचे और उसके घर माखन खाकर उसे सुख दिया -

"फूली फिरति ग्वालि मन में री. पूछति सखी परस्पर बातैं पायो परयौ कछु कहुँ तै री ?..
  पुलकित रोम-रोम गद्गद् मुख बानी कहत न आवै .ऐसौ कहा आहि सों सखी री,
हम कौ क्यों ना सुनावै.. तन न्यारा, जिय एक हमारौ, हम तुम एकै रूप .
        सूरदास कहै ग्वाली सखिनि सौ, देख्यौ रूप अनूप" .. -

उसे इतना आनंद हुआ कि वह फूली ना समायी. वह खुशी से छककर फूली-फूली फिरने लगी.आनन्द उसके हृदय में समां नहीं रहा है. सखी ने पूछा – ‘अरी, तुझे कही कुछ पडा़ धन मिल गया क्या ? वह तो सुनकर और भी प्रेमविहल हो गयी .उसका रोम-रोम खिल उठा, मुँह से बोली नहीं निकली.सखियो ने कहा - सखि क्या बात है हमें सुनाती क्यों नहीं? हमारे तो शरीर ही दो है, हमारा तो जी एक ही है - हम तुम दोनों एक ही रूप है. तब उसके मुँह से इतना ही निकला – ‘मैंने आज अनुप रूप देखा है’ बस, फिर वाणी रुक गयी और प्रेम के आँसू बहने लगे! सभी गोपियों की यही दशा थी.

रातों गोपियाँ जाग-जागकर प्रातःकाल होने की बाट देखती. उनका मन श्रीकृष्ण में लगा रहता. प्रातःकाल जल्दी-जल्दी दही मथकर, माखन निकालकर छेके पर रखती, कही प्राणधन आकर लौट न जाये, इसलिए सब काम छोडकर वे सबसे पहले यही काम करती और श्यामसुन्दर की प्रतीक्षा में व्याकुल होती हुई मन-ही-मन सोचती- ‘हा ! आज प्राणप्रियतम क्यों नहीं आये? इतनी देर क्यों हो गयी? क्या आज इस दासी का घर पवित्र न करगे? क्या आज मेरे समर्पण किये हुए इस तुच्छ माखन का भोग लगाकर स्वंय सुखी होकर मुझे सुख न देगे? आँसू बहाती हुई गोपी क्षण-क्षण में दौडकर दरवाजे पर जाती, लाज छोडकर रास्ते की ओर देखती, सखियों से पूछती.एक-एक निमेष उसके लिये युग के समान हो जाता .ऐसी गोपी की मनोकामना भगवान क्यों पूरी नहीं करेगे ?
सत्यजीत तृषित
“ जय जय श्री राधे ”

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