Sunday, 27 November 2016

श्री ठाकोरजी का श्रृंगार

*जय श्री कृष्ण*
*श्री ठाकोरजी का श्रृंगार*

*श्री ठाकोरजी ने श्री कंठ मे स्वर्ण की *हंसुली* धारण की हुई है। वह ये सूचित करते है की श्री ठाकोरजी ने श्री स्वामिनीजी के दोनों श्री हस्त को अपने श्री कंठ मे धारण किये हुए है। उस हंसुली मे चित्र-विचित्र नकशि की हुई है; जो श्री स्वामिनीजी के श्री हस्त आभूषण रूप है।

*श्री कंठ मे प्रभु
३ लर ,  ५ लर,  ७ लर,  ९ लर, १३ लर,    तथा  २१ लर की माला धारण करते है।
*३ लर*  - सात्विक, राजस तथा तामस ऐसे तीन प्रकार के भाव से आती है।
*५ लर*  की माला श्री स्वामिनीजी, श्री चंद्रावलीजी, श्री यमुनाजी, कुमारिकाओ तथा सभी श्री स्वामिनीजी के भाव से आती है।
*७ लर*  - राजस, तामस, सात्विक तथा ४ युथाधिपति के भाव से आती है।
*९ लर* - नव प्रकार के भक्तो के भाव से आती है।
*१३ लर* - भक्तो के १२ अंग तथा श्री स्वामिनीजी के भाव से आती है।
*२१ लर*  - दस प्रकार के भक्त श्रुतिरूपा के, नव प्रकार के भक्त कुमारिका के, राजस, तथा सात्विक मिल कर कुल २१ का भाव होता है।
         *शिक्षा*
*श्रीकंठ मे अंत मे श्री चरणारविंद तक वन माला आती है जिसमे तुलसी और अनेक प्रकार के फूल; सभी श्री स्वामिनीजी, श्री यमुनाजी, सखी सहचरीजी और दूती के भाव के है।

*श्री ठाकोरजी भ्रमर स्वरुप से सभी भक्तो के रस का अनुभव करते है।

*पीले चमेली के पुष्प श्री स्वामिनीजी के भाव से आते है।

*श्वेत चमेली श्री चंद्रावली जी के भाव से आते है ।

*मोगरा - श्री चंद्रावली जी के हास्ययुक्त दंत-पंकित के भाव से आते है ।

*चंपा - कुमारिकाओ के भाव से आते है ।

* गुलाब के पुष्प श्री स्वामिनीजी के हास्य के भाव से आते है।

*सभी पुष्प तथा मणका विविध ब्रजभक्तो के भाव से आते है। प्रभु निज भक्तो को इस प्रकार बताते है कि : -
*" मैं इनको अहर्निश कंठ मे धारण करता हु।"*

*श्री... के शृंगार के बाद *गूंजा माला* अवश्य आवे।

*'शृंगाररसमंडन* ' मे श्री गुसांईजी वर्णन करते है कि 'श्री स्वामिनीजी मान मे बिराजे है। उस समय लीलांतर्गत श्री गोपीजन श्री स्वामिनीजी से कहते है कि आपकी नासिका के मोती के ऊपरी भाग मे आपके नेत्रो मे रहे अंजन की श्याम रंग का हल्का प्रकाश गिर रहा है और मोती के निचे भाग मे आपके अधरष्ठ के लाल हल्का रंग गिर रहा है ।

*यह देख उस मोती के स्वरुप के रात-दिन दर्शन करने के लिये श्री ठाकोरजी श्वेत  और लाल रंग गूंजा की माला सदा अपने वक्षःस्थल पर धारण करते है। लाल और श्वेत रंग को संयोग तथा विप्रयोग भी माना जाता है।

*श्री.. के कंठ मे तुलसी की माला श्री स्वामिनीजी के श्री अंग की सुगंध का अनुभव करवाते है।

*कमल माला श्री स्वामिनीजी के हृदय का भाव है। कमल माला श्री ठाकोरजी के हृदय के साथ श्री स्वामिनीजी के हृदय के मिलन का भाव बताते है।

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