*श्री साक्षी गोपाल जी*
यह मंदिर पूरी भुवनेश्वर राजमार्ग पर स्थित है।यहाँ के सेवित श्री गोपालजी विग्रह को श्री कृष्ण के प्रपौत्र श्री वज्रनाभ ने बनवाया था।पहले ये विग्रह श्री वृन्दावन में स्थापित पूजित थे।परंतु भक्तवत्सल भगवान के श्री वृन्दवन से उड़ीसा आ जाने पर श्रीवृन्दावन में अब केवल मन्दिर के भग्नावशेष रह गए हैं।ये भग्नावशेष श्री गोविन्द देवजी मंदिर के उत्तर में देखे जा सकते हैं।
श्री चैतन्य चरितामृत मध्य लीला पंचम परिच्छेद में श्री नित्यानंद प्रभु श्री चैतन्य महाप्रभु को श्री साक्षीगोपाल जी की कथा सुनाते हैं।वो कथा इस प्रकार है।
एक बार विद्यानगर से 2 विप्र श्री वृन्दवन दर्शन को आए।उनमे बुज़ुर्ग विप्र के बीमार पड़ने पर युवक विप्र ने खूब सेवा की,जिससे प्रसन्न होकर वृद्ध ने गाँव लौटकर अपनी कन्या से युवक का विवाह करने का वचन दिया।इस बात के साक्षी मन्दिर के गोपाल जी थे।गाँव लौटकर पुत्रों के दबाव में वृद्ध ब्राह्मण विवश होकर मुकर गया।तब ये निर्णय हुआ की अगर गोपालजी स्वयं आकार साक्षी दें तो ही माना जाएगा।भक्तवत्सल भगवान् युवक के साथ इस शर्त पर साक्षी देने चल पड़े की, "तुम मुड़कर मत देखना,मेरे नूपुरों की आवाज़ तुम्हे आती रहेगी।1 सेर चावल रंधन करके तुम मुझे देते रहना,मैं साथ चलता रहूँगा।अगर मुड़ा तो मैं वही ठहर जाऊंगा"।गाँव के बस थोड़े ही दूर पर प्रभु दर्शन को व्याकुल उस युवक ने मुड़कर देख लिया।बस ठाकुरजी हँसकर वहीँ रुक गए।उन्होंने गांव वालों को वहीँ बुलवाया और साक्षी दी।तब से इनका साक्षी गोपाल नाम पड़ा।गांव वालों ने उनके साक्ष्य को सर माथे लेते हुए प्रसन्नता से युवक का विवाह कन्या से करवा दिया।इस प्रकार एक वृद्ध विप्र के वचनों की रक्षा हुई।उन दो सत्यवादी ब्राह्मणों पर प्रसन्न हो ठाकुरजी ने उनकी विनती मान ली और वहीँ रहना स्वीकार किया।
श्री नित्यानंद प्रभु के मुखसे साक्षीगोपाल जी चरित सुनकर महाप्रभु भक्तों सहित बहुत प्रसन्न हुए।
ठाकुर साक्षीगोपाल जी आज भी वहीँ उसी स्थान पर स्थित होकर भक्तों की सेवा ले रहे हैं। साक्षी गोपाल कथा
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