Friday, 25 November 2016

बरनि न जाय , प्यारी जु आँचल ,सखी भाव विशेष

बरनी ना जाय सखी कौ सेबा।
ज्यौ तन युगल प्राण सखी होई,रचे पचे एक दूजै मे जानौ।
होई युगल छबि नैन सखी जानिहै,ज्योति नैनन इन्ही को मानौ।
जीवन युगल ज्यौ जीवनी सखी हौ,बुनिहै दुई एक तानौ बानौ।
प्रेम विकास नीव सखी जानिहै,प्रीत छौर दुई इन बिना नाहि आनौ।
जुगल प्रेम सेवा सखीही होहिहै,मूरत सेबा को सखीही जानौ।
तन मन प्राण जाकै युगल समायै हौ,ऐसैहु सखी जुगल कौ मानौ।
झुकाय शीश प्यारी करै बिनती,कर लेऔ ऐसैहु सखी जु म्हानौ।

श्यामाश्याम की सखियो की सेवा कहने मे नही आती,बहुत चेष्टा करने पर भी बहुत थोडा ही कहा जा सकता है संपूर्ण रूप से भला कौन इन सखियो का इनकी सेवा त्याग का वर्णन कर सकता है।
जैसे युगल तो तन हो और उनके प्राण सखिया हो वैसे ही सखिया एवं युगल को एक दूसरे मे रचे बसे जानना चाहिए।
जिस प्रकार युगल तो छवी हो और युगल को निहारने वाले नैन,इन नैनो की जो ज्योति है वह सखी को मानना चाहिए अर्थात सखिया ही युगल दर्शन के लिए नयन है युगल दर्शन यदि करना है तो सखी रूपी नयन आवश्यक है।
जिस तरह युगल तो जीवन हो और सखिया उस जीवन की जीवन शक्ति अर्थात प्राणवायु हो उसी तरह दोनो को बुने हुए ताने बाने की तरह एक परस्पर मिला हुआ जानिए।
सखी को युगल के प्रेम पथ के विकास( बढोत्तरी) की नीव जाननी चाहिए और प्रीत के दो छोर (श्यामाश्याम )सखियो के बिना कही आ नही सकते जहाँ सखिया वही युगल ,जहाँ युगल वही सखिया होती है।
सखी युगल की प्रेम सेवा का स्वरूप ही है ,सखी को सेवा का मूर्त स्वरूप ही जानना चाहिए।अर्थात सखी और सेवा भी परस्पर अभिन्न है।
जिसके तन मन और प्राण युगलमय हो गये हो,इनमे युगल ही समाये हो उसे ही युगल की सखी मानना चाहिए।
प्यारी शीश झुकाकर युगल से विनती करती है की मुझे भी अपनी ऐसी ही सखी कर लिजिए।

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