Wednesday, 30 November 2016

व्यसन (नशा) , प्यारी जु , आँचल

अरी सुन प्रीती का व्यसन( नशा ) बडा ही अद्भुद होता है।
यह व्यसन शब्द जो हमने सुना है यदि पूछे की इसका क्या अर्थ होता है? तो सुन व्यसन का अर्थ होता है नशा,मद।जिसमे मनुष्य स्वयं की सुध बुध भुला दे वही व्यसन कहलाता है।
जिसमे जीव अपने आप ही अपने आप को भुला दे,अपने आप को उनकी प्रीती मे खो दे वही व्यसन है।
जब मेरा तुम्हारा कुछ न बचे।प्रेमी और प्रेमास्पद के बीच के सब भेद मिट जावे,केवल तुम और तुम्हारा ही रह जावे तब वह स्थिति प्रीती का व्यसन कहलाती है।
तब जीव अपने आप को भुलाकर( मै कौन हू,क्या हू आदि )केवल प्रीती ही शेष रह जाये और केवल व्यसन(नशा) ही एकमात्र याद रह जाये बाकी सब वह भुला ही दे।
तब जो ह्रदय के भीतर होगा वह ही बाहर ही दीखेगा।बाहर भीतर एकसमान हो जायेगा।तब मेरा कोई है अथवा मै किसी का हू यह भी याद न रहेगा।
जब यह पता न हो की पहले क्या हुआ और बाद मे क्या होना है।जब कुछ भी भान न रहे तब जानना चाहिए की हमे व्यसन हो चुका है।
जगत मे ओर जितने भी व्यसन है सब कोई जीव का विनाश ही करते है किंतु प्रीती का(प्रेमरूपी) व्यसन तो सारे जगत मे मिलना दुर्लभ है।यह जीव का मंगल ही करता है।
इसमे जीव को कुछ भान ही नही रहता की वह कहा है किस स्थिति मे है।उसे कोई कुछ कहे तो कहता रहे,उसे कुछ अंतर ही नही पडता।
ऐसा प्रेम का प्रीती रूपी व्यसन कब मिले,कब प्यारी ऐसी व्यसनी होगी।ऐसी कृपा कब हो कहिए।

प्रीत व्यसन अद्भुद अरी होहि।
व्यसन सुनि कहा अरथ कहि तो,नशा होहि मद जे होहि।
स्व बिसराय दिन्ही स्व कौ,व्यसन होय जोई स्व खोई।
मैरो तिहारौ बचिहै कछु ना,रहि जावै बचौ सब कछु तोहि।
आप बिसराय प्रीती ही हुई जाय,रहि जावै व्यसन भूलिहै सबहि।
जोई हिय बसिहै सोई बाहर दिखिहै,याद अापनो रहवे न कोई।
पहिलै कहा कहा बादहु होनौ,नाय पतौ रहिहै व्यसन सो होहि।
बिगारै सबहि ओरहु व्यसन तो,प्रीत व्यसन जगत भारी होहि।
कहा परे कौन बिधि परे हौ,कौई कछु कहवे कहवे जोई जोई।
लगिहै व्यसन प्रेम प्रीत कौ कबहु,कबहु प्यारी व्यसनी ऐसो होहि।

प्यारी जु "आँचल"

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