Thursday, 3 November 2016

रस की गाढ़ता , संगिनी जु

रस की गाढ़ता में युगल दर्शन में पृथ्क्य दर्शन नहीँ होता ।
स्यामास्याम संग ही नहीँ वरन् एक रूप ही अनुभूत होते है ।
रस आतुर एक श्री विग्रह और भावदर्शन में भी दोनों पाते है और निहारते है
गहनतम रसिक की और गहरी स्थिति है । वहाँ तो ...

दोऊ प्रेम खिलौना खेलत प्रेम कौ खेल
निहार निहार अखियाँ निहाल
भागे भागे जग ते उस ओर
ले गयो श्यामा कू हृदय रस अलबेलो चित्तचोर

पद में ही पूरा करना चाहती हूँ पर नहीं आ रहा सो ऐसे ही सुनो

एक रसिक जो नित्य रस सेवा में है फिर वहाँ तो
वह कभी भी कहीं भी हो पर उसके भावजगत के प्रियालाल सदा संग हैं।रस में डूबे हुए।
अति भोर में उठ निहारे तो लीलाजगत में श्यामा जु में श्यामसुंदर पूर्णतः समा ही चुके हैं।एक पल के लिए उनका वह दिव्य दर्शन करतीं सखियाँ हैं पर दूसरे ही क्षण श्यामा जु स्नान ग्रह में
स्नान ग्रह में सखी सबके संग श्यामा जु के कोमल अंगों पर तेल उबटन मालिश करती सेवा में है।प्रिया जु के अंगों को छू उसे बार बार कम्पन हो उठता पर वह अपने नम नेत्रों से सेवा को प्रमुखता देती अपने भावों पर रोक लगाए हुए है।
श्यामा जु को स्नान करा कर उन्हें नित्य पूजनादि के लिए जाना है सो खुद प्रिया जु जो श्यामसुंदर को अंक में समाए हुए हैं अब वो शीघ्रता से एक बार वस्त्र धारण कर निकुंज से निकलती हैं और सखियों संग पूजनस्थल पहुँच कर देवी पूजन व गोपेश्वर महादेव जु को अर्क चढ़ा कर फिर सूर्य पूजा अर्पण करतीं हैं।
सगरी सखियाँ हाथों में पूजा के थाल लिए उनके पीछे ही तीव्रता से भागती जा रही हैं।श्यामा जु के मन में प्रियतम श्यामसुंदर और समग्र देवी देवों के भोग प्रसाद बनाने का उत्साह जो भरा है उससे उनका आलस्य कब का जा चुका।अब तो वो सखियों को शीघ्र चलने को कह रहीं हैं।उनके पायल के घुंघरू छम छम करते ब्रजभूमि को भी एक अनोखी गति प्रदान करते हैं जैसे धरा भी चल रही हो श्यामा जु की गति से।नरम कोमल घास पर मखमली श्यामा जु के चरण सच
सच ही तो यमुना जु ने पूरी धरा को श्रृंगार करा कर उसे सुंदर सुगंधित पुष्पों से सजा दिया है।जिस पर श्यामा जु नंगे पांव चलती हैं।
गहन रसिक का पल पल श्यामा जु के संग में भोर से संध्या व संध्या से रात्रि तक गुजरता है जिसमें वह श्यामा जु को एक भी पल श्यामसुंदर जु से भिन्न नहीं निहारता।श्यामा जु की एक एक हरकत में श्यामसुंदर जु भरे रहते हैं।उनके चेहरे की एक एक भावभंगिमा उनके श्यामसुंदर के संग होने का एहसास कराती है।हर पल रसपूर्ण।
श्यामसुंदर संग हैं रात्रि में तो उनसे एकरूप हुईं गुँथी हुई श्यामा जु और अब जब श्यामसुंदर समाए हैं तो एक एक हरकत रसपूर्ण।कभी मिलन की सिहरन कहीं छुअन से कम्पन कहीं लाज तो कहीं छेड़न।सखी को सब एहसास होता उस रस की महक से महकी सी श्यामा जु के भावों का।
ऐसे महानुभावभावित रसिक के नेत्रों से प्रियाप्रियतम के प्रेम निकुंज साम्राज्य की रसपूर्ण छवि हटाए नहीं हटती।वह एक मकड़ी के बुने हुए जाल की तरह श्यामाश्याम जु की नित्य लीलाओं में बंधता जाता है और और गहरा और गहरा उतरता है।
श्यामाश्याम जु की मिलन की घड़ियों में भी उसका मन वहीं अपने भावजगत में ही रहता है।वह निहार कर भी सब निहार नहीं पाता पर एक सेविका के रूप में उसकी भावदेह वहाँ से हटती भी नहीं।
जहाँ श्यामा श्यामसुंदर जु गहन रस में डूबे हैं वहीं सखियाँ निभृत निकुंज की प्रहरी सी संगीत वाद्य बजाती उन रस मग्न युगल का रसवर्धन करने हेतु मधुर मध्धम संगीत बजाती रहतीं हैं।
एक सखी जो अपने भावों पर नियंत्रण ना पा सकती वह इसी महारास बेला में उठ अश्रु बहाती नृत्य करने लगती है और स्वयं को भूल श्यामा श्यामसुंदर जु की निबिड़ निकुंज की लीलाओं का अपने नृत्य में ही भावचित्रण करने लगती है।इस श्यामा जु की सेविका की यही सेवा की परिपाटी उसे अपने संग पर मान व दैन्यता से निर्भर रखती है और यह रसकिनी हर भाव से प्रियाप्रियतम संग उनकी हर लीला दिनचर्या संध्या व रात्रि प्रेम विलास का मनन आस्वादन करती रहती।
ऐसे रसिकजन अधिकतम समय सेवा में समक्ष लीलाओं का भाव चित्रण देखते रहते और इस जगत में रहते हुए भी अनछुए जैसे बस सब यंत्रणा ही हो पर इनका असली निवास इनके भावजगत में ही रहता।
जय जय श्यामाश्याम ।। युगल संगिनी !!
क्षमा🙏🏻🙏🏻

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