Thursday, 24 November 2016

देखि युगल शोभा अनूप

देखि युगल शोभा अनूप।
नैन सैन साजत रतनारे,मृग खग सम लागत नीके।
अधर सरस रस पीक सौ भरे,हरत बरबस जी के।
गल पडी माल पुष्पन बडी भारी,गुथे पुष्प भाँति भाँति के।
अंग शोभा बरनि न जाय,कोटि काम लजावत फीके।
सटे परस्पर अंग सुअंगे,राजत हिय हमहि के।
प्यारी राधिका संग लागत यौ मोहन,ज्यौ सुवर्ण कमल भ्रमर ही हे।

हे सखी,मैने युगल की अति सुन्दर अपूर्व शोभा देखी है।
इनके रतनारे सैन से सजे हुए नयन किसी पक्षी के समान चंचल या हिरण के समान बडे सुंदर लग रहे है।
सरस रस से भरे अधर जो की पान की पीक से रंगे हुए है,बरबस ही ह्रदय को हर ले रहे है।
युगल के गले मे बहुत बडी व भारी पुष्पो की माला पडी हुई है जिसमे की भिन्न भिन्न प्रकार के पुष्प पिरोए हुए है।
इनके प्रत्येक अंग अंग की शोभा ऐसी है जो कही नही जाती(जिसकी कोई उपमा है ही नही ) जिस पर की करोडो करोडो कामदेव फीके हो जाते है( लज्जित हो जाते है)।
इनका प्रत्येक अंग सुन्दर अंग परस्पर एक दूसरे से मिला(सटा) हुआ है और इसी प्रकार परस्पर मिले हुए ये मेरे ह्रदय मे विराज रहे है( बस गये है)।
अरी प्यारी श्री राधा जी के संग सजे हुए मोहन ऐसे लग रहे है मानो किसी सुवर्ण(सोने के) कमल पर कोई भँवरा बैठा हो।
-- प्यारी जु "आँचल"

No comments:

Post a Comment