प्राण प्यारे युगल हम अधम जीवो पर भी कितनी कृपा करते है न।जरा नही विचारते की कौन योग्य कौन अयोग्य,बस अपना प्रेम लुटाते जाते है,कृपा करते जाते है।
मै नैनो से अंधी( क्योकी युगल की ऐसी कृपा वर्षा नही देखती सो अंधी ही हू),मतिहीन( युगल के चरणो मे मति नही लगायी तब ऐसी मति का होना भी न होने समान ही),बाँवरी हू न जाने क्यू मै इतने कृपामय युगल का नाम नही लेती।
किंतु इतने पर भी तुम मुझ पर कृपा बरसाते ही गये।कभी भी तुमने कृपा वर्षा मे जरा सी भी देरी न की।जब जैसी आवश्यकता देखी अकारण करूणा बरसा दी तुमने।
मेरा ह्रदय कितनी कुटिलताओ से भरा हुआ है।बुद्धि विषयो मे फसी हुई मति से कुमति हो गयी है तभी तो यह मनमोहनी,प्राण प्यारी छबी को नही निरखती।( जिस भाति निरखना चहिए उस भाति नही निरखती,बस बाहर बाहर देखती है)।
तब भी तुमने मुझे अपनी दासी बनाने से कभी इंकार न किया।मुझे अपनी दासी स्वीकार किया।हे करूणामय यह आपकी कृपा ही तो है।
आपकी ऐसी करूणा,कृपा को देखकर भी मेरे नैन बहते नही है ना ही आपकी सेवा न कर पाने के कारण यह ह्रदय जलता है।यह जलकर राख नही हो रहा है।( यह मेरी कुटिलता के कारण ही न)
मै तो सदा से अधम कुटिल ही हू किन्तु इतने पर भी आपने मुझे निर्मल की और केवल निर्मल ही नही की।निर्मल करके अपनी करूणा की नजर से मुझे देखा।
हे नाथ अब ऐसी कुछ कृपा कर दो की मेरी यह अधमता छूट जाए और यह प्यारी आपके चरणो की दासी बन जाए।
अधम करे प्यारौ कृपा भतेरी।
नैन को अंध मतिहिन बाँवरो,नाय काय नाम कौ टेरी।
ता पेई कृपा बहुत तुम किन्ही,नेक ना किन्ही देरी।
कुटिलता भरौ हिय बिषय कुमति हौ,छबि प्यारो प्राण न हेरी।
ता पै करत चेरी मोय अपनो,दया कृपामय तेरी।
बहत न नैन जरत न हिय नेक,नाय हुयो राख को ढेरी।
अधम कुटिल ता पै निर्मल किन्ही,मोय करूणा सो हैरी।
ऐसी करो किरपा अधमताई छूटै,बने चेरी चरणा सो प्यारी।
प्यारी जु "आँचल"
No comments:
Post a Comment