Friday, 25 November 2016

आली पिय प्यारी , प्यारी जु आँचल , सखी विशेष

आली पिय प्यारी छाँह होहि।
दुई देह ज्यौ वाकी छाँवली,तैसेई जानिहौ सखी ओ सहेली।
जलहि शीत ज्यौ बिलग ना होहि,त्यौहि सखिन पिय प्यारी ना बिछोहि।
ज्यौ तापहि अगन संग रहिहै,सखी राधा अंग ही कहिहै।
द्युति जो चमक बिलग ना करिहै,सखी ताई ऐसेही एक होहिहै।
और जानौ जैसौ चले नासिका सुगन्धि,त्यौ सखी प्रीती कौ ही राह चलिहै।
नवाय शीश सखी सहेली प्यारी,जुगल टहल हमहु कौ रखिहै।

युगल की सखियाँ प्रियाप्रियतम की छाया के समान है।जिस प्रकार प्रकाश पडने पर देह की छाया बनती है वह छाया सखियाँ व देह युगल है।जैसे छाया देह से विलग नही हो सकती बिना देह छाया का अस्तित्व ही नही उसी प्रकार सखियाँ एवं युगल अभिन्न है।
जिस प्रकार दो देह( श्यामाश्याम) हो और उस देह की छाया हो उसी प्रकार सखी या सहेली को जानना चाहिए।
जिस प्रकार जल से उसकी शीतलता को अलग नही किया जा सकता( यदि जल को ताप देकर गर्म भी कर दिया जाए तब भी वह पुनः शीतलता को ही प्राप्त हो जाता है अतः शीतलता जल से अभिन्न है)उसी प्रकार प्रियतम प्यारी से सखियो का बिछोह कभी नही होता।
जिस प्रकार अग्नि के संग ताप अभिन्न हो रहता है उसी प्रकार सखियो को श्री राधा का ही अंग कहना चाहिए।
जैसे बिजली से चमक को अलग नही किया जा सकता है ऐसे ही सखी युगल संग एक हो रहती है।
और जैसे सुगन्ध कही भी हो वह केवल नासिका की ओर ही अग्रसर होती है( शरीर के सभी अंगो को छोडकर वह केवल नासिका को ही अनूभूत होती है) वैसे ही जो सखी होती है वह केवल युगल की प्रीती( प्रेममयी सेवा) के पथ पर ही चलती है।
ऐसी सखी,सहेली को प्यारी शीश झुकाकर प्रणाम करती है और प्रार्थना करती है की ये सखिया मुझे भी युगल की सेवा मे रख ले।

युगल प्यारीजु "आँचल"

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