🍁श्री राधा अमृत कथा🍁
☘🌹श्री बरसाने का गहवर वन की महिमा☘🌹
पवनदेव स्वयं को बड़भागी समझते हैं क्योंकि दो [एक ही] दिव्य-देहधारियों की सुवास को वह माध्यम रुप से बरसाने और नन्दगाँव के मध्य वितरित कर पाते हैं।
🌹 राजकुँवरी श्रीवृषभानु-नन्दिनी संध्या समय अपनी दोनों अनन्य सखियों श्रीललिताजू और विशाखाजू के साथ अपने प्रिय गहवर-वन में विहार हेतु महल से निकल रही हैं।
🌹☘श्रीजू की शोभा का वर्णन तो दिव्य नेत्रों द्वारा निहारकर भी नहीं किया जा सकता। अनुपम दिव्य श्रृंगार है। बड़े घेर का लहँगा है जिसमें सोने के तारों से हीरे-मोती और पन्ने जड़े हुए हैं। संध्या समय के सूर्य की लालिमा की किरणें पड़ने से उसमें से ऐसी दिव्य आभा निकल रही है कि उस आभा के कारण भी श्रीजू के मुख की ओर देखना संभव नहीं हो पाता।
🌹☘संभव है नन्दनन्दन स्वयं भी न चाहते हों ! गहवर-वन को श्रीप्रियाजू ने स्वयं अपने हाथों से लगाया है, सींचा है; वहाँ के प्रत्येक लता-गुल्मों को उनके श्रीकर-पल्लव का स्पर्श मिला है सो वे हर ऋतु में फ़ल-फ़ूल और सुवास से भरे रहते हैं। खग-मृगों और शुक-सारिकाओं को भी श्रीगहवर वन में वास का सौभाग्य मिला है। मंद-मंद समीर बहता रहता है और शुक-सारिकाओं का कलरव एक अदभुत संगीत की सृष्टि करता रहता है। महल से एक सुन्दर पगडंडी गहवर वन को जाती है जिस पर समीप के लता-गुल्म पुष्पों की वर्षा करते रहते हैं। न जाने स्वामिनी कब पधारें और उनके श्रीचरणों में पर्वत- श्रृंखला की कठोर भूमि पर पग रखने से व्यथा न हो जाये !
🌹☘सो वह पगडंडी सब समय पुष्पों से आच्छादित रहती है। पुष्पों की दिव्य सुगंध, वन की हरीतिमा और पक्षियों का कलरव एक दिव्य-लोक की सृष्टि करते हैं। हाँ, दिव्य ही तो ! जागतिक हो भी कैसे सकता है? परम तत्व कृपा कर प्रकट हुआ है।
उस पगडंडी पर दिव्य-लता के पीछे एक "चोर" प्रतीक्षारत है। दर्शन की अभिलाषा लिये ! महल से प्रतिक्षण समीप आती सुवास संकेत दे रही है कि आराध्या निरन्तर समीप आ रही हैं। नेत्रों की व्याकुलता बढ़ती ही जा रही है;
🌹☘बार-बार वे उझककर देखते हैं कि कहीं दिख जायें और फ़िर छिप जाते हैं कि कहीं वे देख न लें !
🌹☘श्रीजू महल की बारादरी से निकल अब पगडंडी पर अपना प्रथम पग रखने वाली हैं कि चोर का धैर्य छूट गया और वे दोनों घुटनों के बल पगडंडी पर बैठ गये और अपने दोनों कर-पल्लवों को आगे बढ़ा दिया है ताकि श्रीजू अपने श्रीचरणों का भूमि पर स्पर्श करने से पहले उनके कर-कमल को सेवा का अवसर दें। हे देव ! यह क्या? अचकचा गयीं श्रीप्रियाजू ! एक पग बारादरी में है और एक पग भूमि से ऊपर ! न रखते बनता है और न पीछे हटते !
🌹☘ "ललिते ! देख इन्हें ! यह न मानेंगे !" श्रीप्रियाजू ने ललिताजू के काँधे का आश्रय ले लिया है और लजाकर आँचल की ओट कर ली है। अपने प्राण-प्रियतम की इस लीला पर लजा भी रही हैं और गर्वित भी ! ऐसा कौन? परम तत्व ही ऐसा कर सकता है और कौन? श्रीललिताजू और श्रीविशाखाजू मुस्करा रही हैं; दिव्य लीलाओं के दर्शन का सौभाग्य जो मिला है !
🌹☘नन्दनन्दन अधीर हो उठे हैं और अब वे साष्टांग प्रणाम कर रहे हैं अपनी आराध्या को। विनय कर रहे हैं कि श्रीजू के श्रीचरणों के स्पर्श का सौभाग्य उनके कर-पल्लव और मस्तक को मिले ! श्रीजू अभी भी एक पग पर ही ललिताजू के काँधे का अवलम्बन लिये खड़ी हैं और सम्पूर्ण गहवर-वन गूँज रहा है - "....स्मर गरल खण्डनम मम शिरसि मण्ड्नम। देहि पदपल्लवमुदारम।"
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जय जय श्री राधे !
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श्री राधा अमृत कथा 🌺🙌🏻🌺
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श्री राधा रानी जी दिव्य प्रेम
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एक बार श्याम सुंदर निकुंज में लहराते हुए मुरली हाथ लिए क़दमब की डालो पर झूला झूलते, अपने सारे वस्त्रों और केश को छिनभिन कर भानूनंदिनी के पास आए
जैसे ही श्यामसुंदर आए, स्वामिनी आधीर हो गयी मिलने के लिए
परंतु
तभी स्वामिनी ने श्यामसुंदर के केश छिनभिन देखे और उनके सर पर कुंकुम पराग लगा देखा तो स्वामिनी भौए चढ़ाय बोली
" कहाँ से आए हो महाराज"
कुंकुम सौरभ किस गोपी का सर पे सजाया आज"
श्याम सुंदर डर जाते है
कोई बताएगा श्याम सुंदर उसका क्या उत्तर देते है
श्याम सुंदर मुस्कुरा के कहते है " रानी आप को स्वयं याद नहीं है आज सेवा कुंज में हमने आपके चरण की जब सेवा की थीं तब आपके चरण हमने अपने माथे पर रख लिए थे तब आपके चरण का कुंकुम सौरभ हमारे माथे पर लग गया
स्वामिनी मुस्कुरा पड़ी
ऐसा श्री राधा भाव में होता है " स्वामिनी श्री कृष्ण भाव में इतनी तलींन रहती है के उनको एक पल पहले अपने द्वारा हुई स्वयम् की माला श्री कृष्ण को उन्हें भ्रम में डाल देती है
यह है श्री राधा प्रेम ... एक एक पल में कृष्ण प्रेम श्री राधा ज़ू के चित में बड़ता रहता है
श्री राधा ज़ू का कृष्ण प्रेम मादनख्या महाभाव है अत्यंत ऊचतम प्रेम
ब्रज के कण कण का एक ही लक्ष्य है
" श्री कृष्ण को सुख प्रदान करना"
श्री कृष्ण केवल प्रेम से ही सुखी होते है, प्रेम ही उनके सुख का कारण है
तब जिसमें जितना प्रेम होगा वो कृष्ण को उतना ही सुखी करेगा
समझ आ गया ...
अब ब्रज की लता पता फूल पशु पक्षी सब कृष्ण को प्रेम देते है और उन्हें सुखी करते है परंतु किसी में इतना प्रेम नहीं
जो ब्रज गोपी में हो..
ब्रज गोपियाँ श्री कृष्ण को अत्यंत प्रेम करती है तब उन्हें अत्यंत सुख देती है
गोपी जैसा प्रेम कहीं नहीं है तभी कृष्ण गोपी के ऋणी रहते है
ब्रज की कोई भी गोपी हो सब कृष्ण को ऊँचकोटि का प्रेम प्रदान कर सुखी करती है
लेकिन
श्री राधा सब गोपियों में प्रधान है तब सबसे अधिक प्रेम राधा के पास है जो किसी गोपी के पास नहीं है ...
इसका अर्थ श्री राधा ही कृष्ण की सबसे अधिक सुख देती होगी
हाँजि ... जितना प्रेम अधिक, उतना कृष्ण सुखी
राधा प्रेम अत्यंत उच्चतम स्तर का है तभी कृष्ण राधा से अत्यंत सुखी रहते है और राधा उनका प्राण और अभिन्न अंग है
तब श्याम को ब्रज की कोई भी गोपी क्यूँ ना prem करे , राधा जानती है सबसे अधिक सुख तो हमसे ही उन्हें मिल सकता है
और श्याम भी यह जानते है
श्री राधा रानी की जय होोो 🌺🙌🏻🌺
श्री राधा 👣🌹🙇🏼