राधे राधे
खेलती खेलती नन्ही राधिका, उत्सुकतावश कान्हा जी का खरिक (गैया दुहने का स्थान) देखने चली आई, संयोगवश उसी समय नंदबाबा आ गये।नन्ही राधिका को पहचान कर अत्यधिक दुलार से उसके सिर पर हाथ फेर कर वह बोले-
"तुम दोनों बालक यहीं खेलों,मैं अभी गैयनि और बछडौ की गिनती करके आता हूँ"-तत्पश्चात नंदबाबा नन्ही राधिका की ओर देख कर बोले-
"लाडली बिटिया तनिक इस नटखट कान्हा का ध्यान रखना, कही यह किसी गैया को छेड़ न दे और गैया इसे मारने न लगे"
नंदबाबा की बात सुन कर नन्ही राधिका हर्ष उल्लास व प्रसन्नता से झूम उठी- "नित्य प्रति कान्हा तंग करता है आज बाबा के आसरे मुझे कान्हा पर अधिकार गाठने का अवसर मिला है"
नंदबाबा के मुड़ते ही नन्ही राधिका कान्हा को देख मृदुल स्मित से बोली-
"भली भई तुम्हें सौंप गये मोहि, अब कही तुमको जान न दैहिं-ध्यान से सुन लो कन्हाई तनिक भी इधर उधर न होना, मुझे छोड़ यहाँ से यदि कहीं भी गये तो तुरन्त पकड़ कर यही वापस ले आऊँगी"
नन्ही राधिका के अधरों से मुस्कराहट बिखरी पड़ रही है। नन्ही राधिका की प्रेम-अधिकार परिहास भरी चुहल नटखट नन्हें कान्हा का अन्तर्मन छू गईं, किन्तु इसके उपरांत भी प्रत्यक्ष में नकली रोष प्रकट करते हुये व मन ही मन आनन्दित होते हुये बोले-
"चल हट ! अनर्गल बातें मत कर, मैं तेरे आधीन रहने वाला नहीं" -नन्ही राधिका के सुमधुर अधरों की स्मित व नटखट कान्हा के नयनों की बाँकी चितवन और बढ़ने लगी।
नन्ही राधिका और नटखट कान्हा अभी प्रेम-परिहास पूर्ण बातें व घातें कर ही रहें हैं कि सहसा आकाश में काली काली घटायें उमढ़ने घुमढ़ने व गरजने लगीं। तीव्र झोंके मारता अंधड़रूपी पवन सनसनाने लगा, दामिनी चमकने लगी। शीघ्र ही नंदबाबा वापस लौट आये। नंदबाबा ने दोनों बालकों को सुरक्षित घर भेजने के उद्देश्य से कृष्ण से कहा-
"कन्हैया तुम नन्ही राधिका को अपने साथ घर ले जाओ, क्योंकि अत्यधिक सघन बादलों के कारण चहुँ ओर घोर अंधकार सा छाने लगा है"
यह सुन कर दोनों बालकों ने भयभीत होकर एक दूसरे का हाथ पकड़ लिया और घर की ओर प्रस्थान कर दिया।
नेत्रों को असीम अपरिमित पारलौकिक आन्नद युक्त सुख-संतुष्टि प्रदान करने वाला, दुर्लभ अविस्मरणीय अद्भुत दृश्य है, जिसे चिर प्रतीक्षित अतृप्त नयन आधे क्षण के लिये भी विस्मृत करना नही चाहेंगे- अबोध नन्ही राधिका नटखट चंचल नन्हे कान्हा-एक दूसरे का हाथ पकड़े हुये मंथर गति से सघन वनों को पार करते हुये, एक के बाद एक नवीन विशाल सौंदर्य युक्त लता कुँजों से गुजरते हुये अपने गृह की ओर बढ़ रहें हैं। नंदबाबा दोनों को सस्नेह आशिर्वाद युक्त मुद्रा में ममता व वात्सल्य भरी सजल दृष्टि से निमिमेष निहार रहें हैं।
(डाॅ. मँजु गुप्ता)
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