"अंग ही अंग जड़ाऊ जड़े, अरु सीस बनी पगिया जरतारी
मोतिन माल हिये लटकै, लटुबा लटकै लट घूँघर वारी
पूरब पुन्य तें ‘रसखानि’ ये माधुरी मूरति आय निहारी
चारो दिशा की महा अघनाशक, झाँकी झरोखन श्री राधे बिहारी "
श्री कृष्ण का चरित्र हमे बार बार ये सिखाता है कि जीवन चरवेति-चरवेति का नाम है अर्थात चलते रहो, चलते रहो.जिसने जीवन को जड़ किया उसका जीवन दुर्गन्ध मारेगा ना सिर्फ चलने का नाम बल्कि लगातार परिवर्तन करना ही जीवन है.
श्री कृष्ण का जिस दिन से जन्म हुआ उसी दिन से चलना शुरू कर दिया जन्म लेते ही मथुरा से गोकुल आ गए, ५ वर्ष के थे तब गोकुल छोड़कर वृंदावन आ गए,११ वर्ष के हुए तो वृंदावन छोड़कर वापस मथुरा आ गए वहाँ से फिर द्वारिका आ गए.
इसी तरह मनुष्य है जीवन की हर अवस्था में अपनी जिम्मेदारियों को समझे,सबकी अपनी जीवन शैली होती है.भगवान के जीवन में भी परिवर्तन आया,कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था,ऐसा होगा?
कमाल का चरित्र, जो वृंदावन में गईया चराता है, मटकी ऐसे फोडता है कि पता ही नहीं चलता कि नफा कर गया कि नुकसान?गोवर ऐसे उठाता है, इसमें भी कला है, लकडियां ऐसे बीनता है जैसे चित्रकारी कर रहा हो, आज व्रजवासियो ने ऐसे कृष्ण को बदलते देखने कि कल्पना भी नहीं !!
प्रत्येक युग में भगवान शरीर ग्रहण करते है, पिछले युगो में क्रमश: श्वेत, रक्त, और पीत, ये तीन विभिन्न रंग स्वीकार किये थे, अब की कृष्णवर्ण हुआ है, इसलिए इसका नाम ‘कृष्ण’ है यह तुन्तु भम्हारा पुत्र पहले कभी वासुदेव के घर भी पैदा हुआ था इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे ‘श्रीमान् वासुदेव’ भी कहते है.
"मोर मुकुट, कानो मैं कुंडल, गल वैजन्ती माला
इक झलक दिखा के दिल ले गया मुरलीवाला
मोहिनी मूरत, साँवरी सूरत, पग नुपुर छन्कावे
मोरों जैसी चाल चले, मुरली मधुर बजावे
तिरछे दृग बाण चला के घायल है कर डाला
घुँघराले केश, नैनो में काजल, हाथो में कंगन सोहे
काली कमरिया, अधरों की मुसकन, सबका मन मोहे
बांवरी हो ढूँढू उसको, क्या जादू कर डाला"
"जय जय श्री राधे"
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