जो भुक्ति (संसारिक भौतिकसुख) और मुक्ति का त्याग करें वहीँ गोपी है
बुद्धिमान लोग पहले सुनते है फिर बोलते है. गोपियाँ अब तक भगवान की बाते सुनती रही अब गोपियों ने बोलना शुरू किया है.गोपियाँ कहती है -
मैवं विभोsर्हति भवान गदिन्तु नृशंसं
सन्त्यज्य सर्व विषयं स्तव पादमूलम
भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान
देवो यथाssदिपुरुषो भजते मुमुक्षून् (31)
अर्थात - गोपियों ने कहा - प्यारे श्री कृष्ण तुम घट घट व्यापी हो हमारे ह्रदय की बात जानते हो तुम्हे इस प्रकार निष्ठुरता भरे वचन नहीं कहने चाहिए. हम सब कुछ छोड़कर केवल तुम्हारे चरणों में ही प्रेम करती है. इसमे संदेह नहीं कि तुम स्वतंत्र और हठीले हो तुम पर हमारा कोई वश नहीं है. फिर भी तुम अपनी ओर से, जैसे आदिपुरुष भगवान नारायण कृपा करके अपने मुमुक्षु भक्तो से प्रेम करते है वैसे ही हमें स्वीकार कर लो हमारा त्याग मत करो.
चार प्रकार की गोपियाँ रास में है १.नित्य सिद्धा २.साधन सिद्धा ३.श्रुति सिद्धा ४.प्रकीणा. अलग-अलग स्तर की गोपियाँ है नित्य सिद्धा सबसे ऊँचे स्तर की गोपियाँ है. इसमें श्रुति सिद्धा गोपियाँ तीसरे स्तर की, वेद की ऋचाएँ है.
गोपियाँ नित्य सिद्ध है,उच्च कोटि की महापुरुष है उनके साथ भी बिना चारसौ बीसी किये चैन नहीं है आदत है, उन वे की ऋचाओ को लेक्चर दे रहे है.वे वेद के ऋचाएँ कह रही है हमको पढ़ पढ़ कर लोग ज्ञानी होते योगी परमहंस होते है.
सन्त्यज्य सर्व विषयं स्तव पादमूलम - हमने समस्य विषयों का त्याग कर दिया है, हम भुक्ति और मुक्ति, भुक्ति अर्थात ब्रह्मलोकपर्यंत तक के सुख, समस्त इन्द्रिय सम्बन्धी सुख, और पाँचो प्रकार की मुक्ति - सार्ष्टि, सामीप्य, सारूप्य, सालोक्य, सायुज्य, दोनों का परित्याग करके आपकी शरण में आये है.
भक्ता भजस्व दुरवग्रह मा त्यजास्मान - जैसे आदिपुरुष भगवान नारायण कृपा करके अपने मुमुक्षु भक्तो से प्रेम करते है वैसे ही हमें स्वीकार कर लो हमारा त्याग मत करो.तुम तो उनसे भी बड़े हो, जो मुक्ति चाहता है तुम तो उन्हें भी नहीं छोड़ते हम तो मुक्ति भी नहीं चाहती. तुम बहुनायक वल्लभ हो, काले कलूटे हो, गैइयो के पीछे होय-होय करते फिरते हो.
ठाकुर जी बोले - फिर क्यों आई हो ?
गोपियाँ बोली - प्रेम करना सरल है, निभाना कठिन है. तुम प्रेम को निभा लेते हो, इस विश्वास पर दौड कर आई है.
भगवान की शरण में व्यक्ति तीन कारणों से आता है - १. आशा से आता है.२.निराशा से आता है.३. और कृष्ण प्रेम पिपासा से आता है.
पहला है आशा से - जैसे दुर्योधन भगवान के पास गया कामनाओ का विष लेकर गया. भगवान ने स्वयं समझाया,दुर्योधन समझने को तैयार ही नहीं है, वह कहता है मेरी प्रकृति ही ऐसी है मुझे दूसरों को रोते देखकर मजा आता है उअर हँसते देखकर दिल जलता है, वह भगवान की शरण में गया पर मांगी तो नारायणी सेना ही माँगी.कुछ ऐसे ही होते है दुर्योधन के स्तर के शरणागत होते है.
दूसरे वे होते है जो निराशा से भगवान के पास जाते है- जैसे विभीषण जी थे तो भक्त पर लात खा कर भगवान की शरण में आये, संसार में व्यापार लुट गया, पत्नी पुत्र सबने ठुकरा दिया पिट-पिटा के शरण में आते है.
तीसरे वे होते है जिनको केवल कृष्ण प्रेम की पिपासा होती है जैसे गोपियाँ और यही गोपियाँ कह रही है कृष्ण तुम आशाओ निराशो वालो को भी तृप्त कर देते हो, हम तो तन, मन, धन, ना घर रहा, ना संगे सम्बन्धी रहे ना हम ही रहे,उस किनारे से इस किनारे आ गए और पीछे वाला किनारा भी डुबो कर आये है. जय जय श्यामाश्याम
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