शारी-शुक का वर्णन....
कब वह शुभ दिन आएगा जब मै गुणमंजरी के पीछे-पीछे निकुंज में प्रवेश करूँगी?
नागर और नागरी लीला के परिश्रम से थक कर सोए रहेंगे, उनका दर्शन करके मेरा हृदय तृप्त होगा।
मैं श्री रूप मंजरी का इशारा पाकर उनकी चरण सेवा करूँगी।
युगल सरकार शेज से उठकर पलंग पर बैठेंगे, उनके चरण धरती पर होंगे।
मैं सुवासित जल लाकर उनके सुंदर मुख धुलाऊँगी, और फिर आनंद से पोछूँगी।
एक छोटी झारी में कर्पूर से सुंगंधित जल लाकर दूँगी, दोनों उस जल को पान करेंगे।
दोनों के मुख में कर्पूर और तांबूल दूँगी।
हाय, कब ऐसा दिन आएगा...?
फिर वे दोनों मदन सुखदा की उत्तर में, जहाँ मालती पेड़, उसकी छाया में जाकर बैठेंगे, उनके साथ प्रिय सखियाँ भी होंगी।
वृंदा बड़े आनंद से दोनों के हाथों में शुक और शारी को लेकर सौंप देगी।
वे दोनों शुक-शारी को तरह तरह की कविताएँ सिखाएँगे, मस्ती भरी बातें सिखाएँगे।
कब वह दिन आए जब कृष्णदासी उस शारी और शुक का कथामृत वार्ता पान करेगी?
अहा, श्री युगल सरकार, जल्दी से मेरी अभिलाषा पूरी करो।
शारी-शुक संवाद....
शुक कहता है :- "शारी, ध्यान देकर मेरे प्रभु के गुण सुनो, इन तीनों जगत में जितने भी गुणवान हैं, मेरे प्रभु से कम हैं।
इन तीनों जगत में जितनी भी युवतियाँ हैं, श्याम सबके चित्त हरण करते हैं।
खास करके गोकुल की युवतियों के दिल, यहाँ की युवतियाँ तो उनके पीछे दीवानी हैं।
श्यामसुंदर का सौंदर्य तो इनके प्रेम भाव को बहुत ज़्यादा भड़काता है।
वे मदन-ज्वर से पीड़ित होकर श्याम का भजन शुरू कर देती हैं।
उनका रूप तो ऐसा है, कि वे करोड़ों काम देव को जीत लें, इसीलिए तो उनका नाम मदन मोहन है...!"
शुक की बातें सुनकर शारी हँसने लगती है।
शारी कहती है :- "हाँ हाँ, वह तो तभी तक मदन मोहन है जब तक उसकी बाँई तरफ प्यारी रहती हैं।
एक दिन मेरी प्राणेश्वरी रासलीला के वक्त छुप गयी थी, तब तुम्हारे ये “मदन मोहन” नाम धरने के लायक नहीं रहे थे...।"
शारी की बातें सुनकर नागर भी हँस पड़ते हैं।
गुण मंजरी हँसकर कहती है:- “हाँ शारी, अच्छी कही...!”
अब शारी कहती है :- “अभी मेरी ईश्वरी के गुण सुनो जिनपर तुम्हारे मदन मोहन न्यौछावर जाते हैं।“
शारी गाने लगती है :- “ मेरी राधारानी का रंग सोने जैसा है और कुमकुम का भी गर्व हर लेता है।
उनकी अंग-कांति बड़ी सुंदर है, उन्हें आप देखेंगे तो गोरोचना की निंदा करेंगे।
उनकी अंग का गंध कर्पूर, अगुरू और जितनी भी खुशबूदार वस्तुएँ हैं, उन सबको हरा देगी।
ये श्याम सुंदर तो राधा के पुजारी हैं, वे तो हमेशा राधाराणी के रूप एवं गुण की वंदना करते रहते हैं।
अनंत ब्रह्मांड में जितनी भी लक्ष्मियाँ हैं, वे सब राधा के चरण के एक नख की बराबरी नहीं कर सकती।
प्रियाजी उल्लास के साथ हमेशा कृष्ण संग की अभिलाषा करती रहती है, इसीलिए तो वह नीलाम्बर पहनती है।
सूरज जो कमल का मित्र कहलाता है, वह भी खूबसूरत राधाराणी की आराधना करता है।
राधाराणी सुकुमारी है और अति सुमाधूरीमय है।
जीतनी भी स्निग्ध वस्तुएँ हैं, जैसे, चंदन, उत्पल, चंद्र और कर्पूर, उनकी स्निग्धता राधा ठाकुराणी राधाराणी के सामने कुछ भी नहीं है।
श्यामसुंदर को खुद का स्पर्श देकर, वे उनकी कामना को बुझाती है, सुवदनी राधा हमेशा श्री कृष्ण को सुखी करती है।
रमादेवी, जो सती-शिरोमणि कहलातीं हैं, वे भी राधाराणी के सामने कुछ भी नहीं है।
उनका रूप और यौवन, राधाराणी के रूप और नव यौवन की तुलना में कुछ भी नहीं हैं।
रास नृत्य में सबसे ज़्यादा पटु वे ही हैं, संगीत कला और नर्म कला मे भी सुपंडिता हैं।
प्रेम ही उनका रूप, गुण और वेष है, वे सद्गुणों की खान हैं और पूरे विश्व में वंदनीया हैं।
सभी गोपियों मे राधाराणी ही श्रेष्ठ हैं।
उनके विविध भाव ही उनके अलंकार हैं, उनके सुंदर सुंदर भाव, जैसे कि:- स्वेद, कंप , अश्रु, मर्ष, हर्ष, गद्गद और वाम्य, इन सभी भावों से वह सजी हुईं होती हैं।
राधाराणी श्याम सुंदर के नेत्रों को तृप्त करती हैं।"
शारी के वचनों को सुनकर, राधाराणी बहुत आनंदित होती हैं और वे शुक-शारी दोनों को बड़े प्यार से सहलाती है।
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