🌿★★सच्चे साधक के लक्षण★★🌿
--"युक्ताहारविहारस्य" इस गीतोक्ति के अनुसार जो अपने प्रतिदिन का कम से कम एक चौथाई समय (6 घंटे) भगवद्भजन/भगवद्विषय में देता हो तथा अपने जीवन को संयमित भी रखता हो ।
--"मामेकम् शरणम् व्रज" भगवान के इस उपदेशानुसार जो केवल भगवान (हरि-गुरु) में ही अनन्य भाव से प्रेम (आसक्ति) करता है तथा शेष सब जगह उदासीन रहे ।
--"श्रद्धया देयम् अश्रद्धया देयम्" इस वेदोक्ति के अनुसार जो अपनी आय/कमाई का कम से कम दशांश(10%) अपने शरण्य हरि-गुरु के श्रीचरणो में अपना परम कर्तव्य समझकर सहर्ष दान करता हैं अपने ही कल्याण के लिये ।
--"बिनु सतसंग बिबेक ना होई" इस मानसोक्ति के अनुसार जो व्यक्ति अपने प्रत्येक दिन का कुछ ना कुछ समय सत्संग (मानसिक या मानसिक+दैहिक) में अवश्य ही देता हैं ।
--"दुष्ट संग जनि देई बिधाता" इस मानसोक्ति के अनुसार जो स्वयम् को यथाशक्ति कुसंग से बचाकर रखता हैं ।
--"आवृत्तिरसकृदुपदेशात्" इस वेदांतोक्ति के अनुसार जो गुरु-वेद/शास्त्रो द्वारा दिये उपदेशो को सुनकर या पढ़कर बारम्बार उन उपदेशो का चिंतन-मनन करता हैं ।
--"तज्जपस्तदर्थभावनम्" इस शास्त्रोक्ति के अनुसार जो निरंतर रूपध्यानयुक्त भगवन्नाम का जप (मानसिक) करता है या करने का अभ्यास करता हैं ।
--"वासुदेव सर्वमिति" इस गीतोक्ति के अनुसार जो सबमें सदा सर्वत्र अपने इष्टदेव (श्रीकृष्ण) का ही दर्शन करता है या इस भाव को दृढ़ करने का अभ्यास करता हैं ।
--"गुरुदेवतात्मा" इस भागवतोक्ति के अनुसार जो अपने गुरुदेव (जो कि श्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष हो) में सदा भगवद्भाव ही रखे, कभी उनमें मनुष्य-भाव ना करें ।
--"पिबत भागवतम् रसमालयम्" इस भागवतोक्ति तथा "भरहिं निरंतर होहि ना पूरे" इस मानसोक्ति के अनुसार जो बस भगवान(हरि-गुरु) के नाम-रूप-गुण-लीला-धाम आदि के संकीर्तन में ही रुचि लें तथा निर्रथक संसारिक वार्ताये जिसे जहर लगती हो ।
->"जगद्गुरुत्तम श्रीकृपालु महाप्रभु" के उपदेशो पर आधारित<-
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