"भगवान का मित्र होना भी अत्यन्त दुर्लभ है।"
भगवान के साथ खेलना,भगवान से रूठना, फिर हृदय से लगाना, भगवान की बराबरी करना–यह तभी संभव है जब अपने को मिटाकर उनके सुख में सुखी रहने की लगन लगी रहे।उनके ईश्वरत्व को भूल जाएँ, उन्हें अपना मित्र और हितैषी समझें और स्वार्थ की तो गंधमात्र भी न हो।
▪श्रीमद्भागवत के एक सुन्दर श्लोक में ब्रह्माजी ने कहा है:–
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अहो भाग्यमहो भाग्यं नन्दगोपव्रजौकसाम्।
यन्मित्रं परमानन्दं
पूर्णं ब्रह्म सनातनम्॥
अर्थात्–अहो, नन्दगोप के इस व्रज में रहने वाले व्रजवासी गोपों के धन्यभाग्य हैं, उनके वस्तुत: बड़े भाग्य हैं; क्योंकि परमानन्दस्वरूप सनातन पूर्ण ब्रह्म स्वयं उनके सखा और मित्र हैं।
▪एक भक्त ने कहा है:– ’श्रीकृष्ण, तुम गोपालों के कीचड़ से भरे आँगन में तो विहार करते हो, पर ब्राह्मणों के यज्ञ में प्रकट होने में तुम्हें लज्जा आती है।एक बछड़े की या छोटे-से गोपशिशु की हुंकार सुनकर ‘हां, आया’ –बोल उठते हो; पर सत्पुरुषों के सैंकड़ों स्तुतियां करने पर भी मौन रह जाते हो। गोकुल की ग्वालिनों की तो गुलामी स्वीकार करते हो, पर इन्द्रिय-संयमी पुरुषों के द्वारा प्रार्थना करने पर भी उनके स्वामी बनना तुम्हें स्वीकार नहीं है।
▫इससे पता लगता है कि तुम्हारे चरण-कमल की प्राप्ति एकमात्र प्रेम से ही संभव है।’
▪व्रज में भगवान श्रीकृष्ण ने माधुर्यलीला की है जिसमें उन्होंने वर्षों से प्रतीक्षा कर रहे अपने भक्तों को परमानंद (प्रेमरस का मधुर आस्वादन) देने के लिए अपने को गौरव- गरिमाहीन बनाकर उनका ‘निज जन’ बना लिया।जिसमें भक्त उनको अपना मानकर उनके चरणों में लुट पड़ता है, उन्हें आलिंगन करने लगता है, उनके हृदय से चिपट जाता है, उन्हें गोद में बैठा लेता है, उनके गलबैयाँ देकर चलता है, साथ खाता-पिता है, एक साथ विहार करता है,आदि।
और इसका हमें गोप-गोपियों के साथ श्रीकृष्ण की विभिन्न लीलाओं में दर्शन होता है।
▫व्रज के गोपकुमार श्रीकृष्ण की सख्यभक्ति के अनुपम उदाहरण हैं।मधुमंगल, सुबल, सुबाहु, सुभद्र, भद्र, मणिभद्र, वरूथप, भोज, विशाल, तोक और श्रीदामा आदि सहस्त्रों व्रजसखाओं के श्रीकृष्ण ही जीवन थे।
▫मधुमंगल पौर्णमासी देवी का पौत्र और श्रीसांदीपनि जी का पुत्र था।यह भगवान श्रीकृष्ण का प्रिय सखा तथा परम विनोदी था। मधुमंगल ही ‘ मसखरे मनसुखा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
ये सभी गोपकुमार गरीब ग्वालों के पुत्र हैं। श्रीकृष्ण की प्रसन्नता के लिए उनके साथ दौड़ते, कूदते, गाते, नाचते और तरह-तरह के खेल-खेला करते थे।
यहां तक कि माखन की चोरी व गोपियों की मटकियों को फोड़ने में भी वे सदैव श्रीकृष्ण के साथ रहते थे।
▪श्रीकृष्ण का प्रेम भी इनके साथ अलौकिक है, ग्वालों के साथ ग्वाल होकर वे खेलते हैं।
मैं ईश्वर नहीं हूँ, मैं आपके समान ग्वाल ही हूँ–ऐसा मानकर प्रेम करते हैं।
🌹🌹एक बहुत सुन्दर प्रसंग है:- मनसुखा बहुत दुर्बल था, उसके शरीर की सभी हड्डियां दिखाई पड़ती थीं।
▫एक दिन श्रीकृष्ण ने मनसुखा के कंधे पर हाथ रख कर कहा:– मनसुखा; तुम मेरे मित्र हो कि नहीं? मन सुखा ने सिर हिलाकर कहा:–हां, मैं तुम्हारा मित्र हूँ। तब कन्हैया ने कहा:- ऐसा दुर्बल मित्र मुझे पसंद नहीं, तुम मेरे जैसे तगड़े हो जाओ।
▪मनसुखा रोने लगा और उसने कहा:–कन्हैया, तुम राजा के पुत्र हो, तुम्हारी माता तुम्हें दूध-माखन खिलाती है, इससे तुम तगड़े हो गए हो। मैं तो गरीब हूँ, मैंने कभी माखन नहीं खाया।
मेरी मां मुझे छाछ ही देती है, मुझ जैसे गरीब को कौन माखन देगा?
▪कन्हैया ने मनसुखा से कहा:–मैं तुम्हें हर रोज माखन खिलाऊँगा। मनसुखा ने कहा:–कन्हैया तुम मुझे हर रोज माखन खिलाओगे तो तुम्हारी माता गुस्सा करेगी। तब कन्हैया ने कहा:– अपने घर का नहीं, पर बाहर से कमाकर मैं तुम्हें माखन खिलाऊँगा। इस प्रकार अपने मित्रों को माखन खिलाने के लिए कन्हैया ने माखन चोरी लीला की। चोर मण्डली बनी।ऐसा अद्वितीय था श्रीकृष्ण का सख्य-प्रेम जिसमें श्रीकृष्ण माखनचोरी की योजना सखाओं के समक्ष रखते हैं कि किस प्रकार हम सब मिलकर गोपियों के घर से माखन की मटकी उठा लाएंगे, खाएंगे, पशु-पक्षियों को खिलायेंगे, गिराएंगे और माखन की कीच मचाएंगे।
▫यह सुनकर गोपबालकों के आनन्द का पार नहीं है, सब ताली पीट-पीटकर नाचने लगे।
नंदबाबा की कसम खाकर सभी श्रीकृष्ण की बुद्धि की प्रशंसा करने लगे।
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करैं हरि ग्बाल संग बिचार।
चोरी माखन खाहु सब मिलि, करहु बाल-बिहार॥
यह सुनत सब सखा हरषे,
भली कही कन्हाइ।
हँसि परस्पर देत तारी,
सौंह करि नँदराइ॥
कहाँ तुम यह बुद्धि पाई,
स्याम चतुर सुजान।
सूर प्रभु मिलि ग्वाल-बालक,
करत हैं अनुमान॥ (सूरसागर)
▪जिन श्रीकृष्ण के घर नौ लाख गाएँ थीं, उनको माखन चुराकर खाने की आवश्यकता नहीं थी। फिर भी अपने ग्वालवालों को खिलाने के लिए (बंदरों को भी श्रीकृष्ण ने माखन खिलाया है क्योंकि रामावतार में बंदरों ने उनकी लंका विजय में सहायता की थी) और गोपियों को आनन्दित करने के लिए माखन चोरी करते और यशोदामाता की प्रेम भरी झिड़की सुनते और मां का गुस्सा शांत करने के लिए कहते:–
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कित गजराज कहाँ मृग-छौना अनगढ़ मेल मिलावै।
तू जननी मेरी अति भोरी उनके कहे पतियावै॥
अर्थात्–कहां ये हाथी के समान मोटी-मोटी गोपियां और कहां मैं हिरन के बच्चे जैसा। मां तू किससे मेरी तुलना कर रही है, तू तो बहुत भोली है जो उनकी बातों में आ जाती है।
🌹संकलित
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