दोऊ सदा एक रस पूरे। एक प्रान,मन एक,एक ही भाव,एक रँग रूरे। एक साध्य,साधनहू एकहि,एक सिद्धि मन राखैं। एकहि परम पवित्र दिय रस दुहू दुहुनि कौ चाखैं। एक चाव,चेतना एक ही,एक चाह अनुहारै। एक बने दो एक संग नित बिहरत एक बिहारै।
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