राधे राधे
एक सखी यमुना जी के जल से बार-बार अपनी आँखों को धोती है। बार-बार धोती चली जाती है,
इतना धोती है कि उसकी आँखे लाल हो जाती है।पास खड़ी दूसरी सखी कहती है-"सखी आँखों को इतना क्यों धोती हो,अबीर-गुलाल तो कब का निकल गया होगा"।
तब पहली सखी बड़ी अच्छी बात
कहती है:-
"एक संग धाय नंदलाल और गुलाल दोऊ,
द्रगन गए जू आनंद मढे नहीं।
धोये -धोये हारी पदमाकर तिहारी सौं,
अब तो उपाय कोऊ चित पे चढ़े नहीं।
कैसी करू, कहाँ जाऊं, कॉ सों कहूँ,
कौन सुने, कोऊ तो निकारो या सौं दर्द बढे नहीं।
ऐ री मेरी बीर जैसे-तैसे इन
अंखियन सौं, अबीर तो निकर गयो अहीर पर नंद को लाल को निकले नहीं"
गोपी कहती है
कि "सखी क्या बताऊ होली में गुलाल और नन्द लाल दोनों एक साथ इन नैनो में आ गए अब इन नैनो का जो आनंद है उसका वर्णन कैसे करू मै तो धो-धो कर हार गई, अबीर तो निकल गया पर ये अहीर नंदलाल नहीं निकलता।
अब तो कोई उपाय नहीं दिखता क्या करू, कहाँ जाऊ, किससे कहू कौन सुने, कोई तो निकारो, ताकि दर्द और न बड़े।
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