Monday, 8 February 2016

छायाराधा

--- छायाराधा ---
एक सवाल जो क्यों बार बार सामने होता है  ?

जय जय श्यामाश्याम ।।।
क्षमा उन सभी से जिन्हें इस सवाल के बदले कुछ अजीब प्रतिक्रिया दी , क्षमा !! श्यामाश्याम दो है यें भावना भी मृत्यु से अधिक आघात करती है फिर कोई कहे कि विवाह तो अन्य हुआ तो .......... !! हे राधा ! मेरी श्यामा !!!
बहुत बार एक प्रश्न आता है , राधा कृष्ण का विवाह क्यों नहीँ हुआ ?
भाण्डीर वन में श्यामाश्याम का ब्रह्मा जी द्वारा विवाह हुआ जिसका वर्णन लिखित वर्णन ब्रह्म वैवर्त पुराण और गर्ग संहिता में है ।
कई बार लिखित लेख दिए , फिर भी आस्था का अभाव होने से ऐसा होता है ।
रायाण गोप से हुए सम्बन्ध में भी बात हुई , वह विवाह हुआ इसकी अधूरी ही जानकारी स्वीकार की जाती है । वहाँ भी छाया राधा है , पूर्ण राधा नहीँ । और वहाँ रायाण गोप स्वयं कृष्ण के कलांश थे । यहाँ विस्तार से परम् रसिकों ने पूरा निराकरण किया है जिसे विस्तार से कहा नहीँ जा सकता । और यहीँ ना कहने के कारण वर्तमान में भ्रम उत्पन्न होता है । भगवान यहाँ स्वयं मुस्कुरा कर कहते है कि देख लो इन्हें भगवान पर भी सन्देह है , नमस्कार कर रहे है , झुक रहे है , परन्तु सन्देह ....
मुझे कुछ आस्तिक , अथवा कहू आध्यात्मिक भी मिले जिन्हें राधा जी के रस स्वरूप को स्वीकार करने में पूर्व में अल्प और अधूरी बातों के कारण राधा चर्चा पर अथवा लीला आदि के अतिरिक्त विषय ही प्रिय है , कई बार बहुत से प्रेमी कृष्ण आकर्षण में तो होते है परन्तु श्यामा को लेकर हुआ अन्तः सन्देह बना रहता है , ऐसे स्थान से त्याग ही श्रेष्ट है , परन्तु तब भी कही और उठी चुभन भी गहरा आघात कर जाती है । श्री राधा का वर्णन आगम और निगम दोनों शास्त्र में है । यहाँ सभी इतनी स्पष्टता से शास्त्र सब निराकरण कर चूका है , ब्रह्मा जी द्वारा कराया विवाह भी ब्रह्मा जी की अपनी ख़ुशी है , स्वरूप तो नित्य है , तपस्या कर यह अवसर चाहा गया है । विस्तार से राधा कृष्ण पर बात फिर कभी .... वैसे बहुतों बार हुई है । अब राधा कृष्ण के विवाह को कहने पर भी रायाण गोप संग हुए विवाह पर सन्देह की प्रमाणिक निवृत्ति की जा रही है । यहाँ कह दिया जाएं कि प्रत्येक भगवत् प्रेमी में अपने प्रेमास्पद का कुछ भाव होता ही है और सभी ब्रजरमणियाँ राधा जी की अंशभूता ही है , अतः सम्बोधन अर्थ में राधा कहा ही जाता है ।

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एक तो स्वरूप का अज्ञान ही सन्देह है , हमारे श्यामाश्याम नित्य है , अप्राकृत है , देह नहीँ , उनकी अवस्था आदि में भेद की कल्पना नहीँ है और सच्चिदानन्दस्वरूप हैं , उनमें परस्पर विवाह होने न होने का कोई प्रश्न ही नहीँ उठता । तब भी महानुभाव उनका विवाह भी देखते है और ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार स्वयं श्री ब्रह्मा जी के द्वारा एकांत कानन में उनके विवाह कराये जाने का वर्णन मिलता है । श्री राधा जी के रायाण गोप के साथ विवाह की बात भी आती है । उसमें भी श्री दामा का शाप कारण था , परन्तु वह भी स्वयं राधा जी संग नहीँ किंतु छाया के साथ हुआ था -- ऐसा स्पष्ट लिखा है ---
' राधा जी अयोनिजा है , माता के पेट से नहीँ पैदा हुई । माता ने योग माया की प्रेरणा से वायु को ही जन्म दिया , परन्तु वहाँ स्वेच्छा से श्यामा जु प्रगट हो गयी । बारह वर्ष बीतने पर उन्हें यौवन में प्रवेश करती देख माता पिता ने रायाण गोप के साथ उनका सम्बन्ध किया । उस समय श्री राधा घर में छाया को स्थापित करके स्वयं अंतर्धान हो गयी । उस छाया संग उक्त रायाण का विवाह हुआ । वास्तवी श्री जी का विवाह तो हुआ था पुण्यमय वृन्दावन में श्री कृष्ण के साथ । जिसे जगत् स्रष्टा विधाता ने विधिपूर्वक सम्पन्न करवाया था ।
अयोनिसम्भवा देवी वायुगर्भा कलावती ।
सुषाव मायया वायुं सा तत्राविर्बभूव ह ।।
अतीते द्वादशब्दे तु दृष्टवा तां नवयौवनाम् ।
सार्धम् रायान्वेश्येन तत्सम्बन्धं चकार सः ।।
छायां संस्थाप्य तद्गेहे सांतर्धानं चकार ह ।
बभूव तस्य वैश्यस्य विवाहश्छायया सह ।।
कृष्णेन सह राधायाः पुण्ये वृन्दावने वने ।
विवाहं कारयामास विधिना जगतां विधिः ।।
(ब्र वै पु)

श्री राधा जी की छाया कौन थी -- इसका भी स्पष्टीकरण उस पुराण में है । केदार राजा की कन्या वृंदा के तप करने पर भगवान् ने उसको यह वर दिया था कि "इस तपस्या के फ़लस्वरूप तुम मुझे प्राप्त करोगी । फिर व्रज में असली राधा जी जब वृषभानु की कन्या के रूप में अवतीर्ण होंगी , तब तुम उनकी छाया रूप में उत्पन्न होओगी । विवाह के समय रायाण छायारूपिणी तुम्हीँ से विवाह करेगा और वह वास्तविक राधा तुम को रायाण के हाथों में अर्पण करके स्वयं अंतर्धान हो जायेगी । गोकुलवासी भोले लोग रायाणपत्नी तुम्ही को राधा माने रहेंगे । उस समय असली राधा तो मेरे पास निवास करेगी और छायारूपिणी तुम रायाण की स्त्री होकर जीवनयापन करोगी ।
राधा ........   वृषभानुसुता यदा ।
सा एव वास्तवी राधा त्वं च च्छायास्वरूपिणी ।।
विवाहकाले रायाणस्त्वां च च्छाया ग्रहिष्यति ।
त्वाम् दत्त्वा वास्तवी राधा सान्तर्धाना भविष्यति ।।
राधां कृत्वा च तां मूढा विज्ञास्यन्ति च गोकुले ।

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स्वयं राधा मम क्रोडे छाया रायाणकामिनि ।। 

-- अतः यह सिद्ध है कि छाया भी वास्तव में राधा की नहीँ है । यह भी केदारकन्या की वृंदा का अवतार है ।

इससे यह कभी भी सिद्ध नहीँ होता कि वास्तविक राधा का किसी अन्य गोप से विवाह हुआ था । पर इस विषय में विवाद करना व्यर्थ है । यहाँ तो उन राधा का प्रसङ्ग है जो भगवान् श्रीकृष्ण की नित्य अभिन्नरूपा हैं , सर्वेश्वरी मूल प्रकृति हैं , समस्त देविस्वरूपिणी हैं , जगज्जननी हैं , श्री कृष्ण परम आराधिका हैं , श्री कृष्ण की परमाराध्या हैं और उनकी साक्षात् आत्मा ही है ।
आपके समक्ष यें सवाल आते है तो लेख शेयर कीजियेगा । सत्य को कहने में शर्म न हो । अब भी कोई सन्देह हो तो ----
तेरे ख़ास बन्दे तेरे ख़ास जल्वे देख लेते है । ---
जय जय श्यामाश्याम ।।

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