🌷क्या है रास का राज भाग-०१🌷
भगवान कृष्ण का गोपियों संग रास रचाने की कथा दुनियाभर में प्रसिद्ध है। कृष्ण का हर स्वरूप, उनका हर रूप, गोपियों को इतना प्रिय था कि वे कृष्ण से दूर रह ही नहीं सकती थीं। वृंदावन की हर गली आज भी कृष्ण के रास की कहानी बयां करती है, लेकिन सर्वप्रथम रास का आयोजन कैसे और किन परिस्थितियों में हुआ, रास का वास्तविक अर्थ क्या है, इससे जुड़े तथ्यों से बहुत ही कम लोग परिचित हैं।
🌷कामदेव की चुनौती
दरअसल कृष्ण द्वारा रचाया जाने वाला महारास सबसे पहले शरद पूर्णिमा की रात्रि को संपन्न हुआ, जिसका संबंध कामदेव द्वारा श्रीकृष्ण को दी गई चुनौती से है।
🌷🌷शिव और सती
प्रेम और काम के देवता, कामदेव ने जब अपने बाण से भगवान शिव का ध्यान भंग कर दिया तो उन्हें अपनी ताकत पर बहुत घमंड होने लगा। दरअसल सती की मृत्यु के पश्चात जब भगवान शिव संसार की मोह-माया के बंधन से मुक्त होकर ध्यान में लीन हो गए थे तब देवताओं के कहने पर कामदेव के बाण ने ही उन्हें पार्वती की ओर आकर्षित किया था।
🌷शिव द्वारा भस्म
ध्यान भंग होने से क्रोधित भगवान शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था परंतु कामदेव की पत्नी रति की विनती सुनकर भोलेनाथ ने कामदेव को पुन: अस्तित्व प्रदान किया। इस घटना के बाद कामदेव को अपने ऊपर गर्व हो गया था कि वे किसी को भी काम के प्रति आसक्त कर सकते हैं।
🌷कामदेव का घमंड
इसी घमंड के चलते उन्होंने एक बार श्रीकृष्ण, जो कि वासना और काम जैसी किसी भी भावना से मुक्त हैं, से कहा कि वे उन्हें वासना के बंधन से बांधकर ही रहेंगे। श्रीकृष्ण ने भी उनकी चुनौती स्वीकार कर ली।
🌷कामदेव की शर्त
परंतु इसके लिए भी कामदेव की एक शर्त थी, कामदेव ने कहा कि अश्विन माह की पूर्णिमा की रात वृंदावन के खूबसूरत जंगलों में आकर उन्हें स्वर्ग की अप्सराओं से भी सुंदर गोपियों के साथ आना होगा। जहां कामदेव के अनुकूल वातावरण भी हो और वहां उनके पिता मन भी उपस्थित नहीं होने चाहिए।
🌷स्वीकार हुई हर शर्त
कृष्ण ने कामदेव की यह बात ली और शरद पूर्णिमा की रात वृंदावन के रमणीय जंगल में पहुंचकर बांसुरी बजाने लगे।
🌷मंत्रमुग्ध हुईं गोपियां
उनकी बांसुरी की सुरीली धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध होकर कृष्ण के पास पहुंच गईं। उन सभी गोपियों के मन में कृष्ण के नजदीक जाने, उनसे प्रेम करने का भाव तो जागा लेकिन यह पूरी तरह वासना रहित था।
🌷कृष्ण को पाने की इच्छा
उनके मन में सिर्फ और सिर्फ अपने कृष्ण को पाने की इच्छा थी। सामान्य भाषा में काम, क्रोध जैसे भाव जीवन के लिए सही नहीं माने जाते लेकिन जब बात अपने आराध्य के नजदीक जाने की हो तब कोई भी भाव गलत नहीं समझा जाता।
🌷महारास का आयोजन
श्रीकृष्ण ने अपने हजारों रूप धरकर वहां मौजूद सभी गोपियों के साथ महारास रचाया लेकिन एक क्षण के लिए भी उनके मन में वासना का प्रवेश नहीं हुआ।
🌷विफल रहे कामदेव
काम के देवता, कामदेवता ने अपनी पूरी ताकत लगा दी लेकिन वे श्रीकृष्ण के भीतर वासना या काम जैसी किसी भी भावना को उत्पन्न करने में विफल रहे।
🌷ब्रह्मचर्य
ब्रह्मचर्य व्रत का पालन कर रहे संन्यासियों के लिए वासना पर नियंत्रण रखना अपेक्षाकृत आसान है क्योंकि वह किसी भी तरह से स्त्री के नजदीक नहीं जाते ना ही किसी स्त्री को अपने समीप आने देते हैं।
🌷नहीं उत्पन्न हुई वासना
लेकिन चारों ओर अप्सराओं से भी खूबसूरत स्त्रियों से घिर जाने के बाद, स्वयं को वासना से बचाकर रखने का कार्य तो भगवान कृष्ण ही कर सकते हैं। उन्होंने महारास का आयोजन भी किया लेकिन उस रास के दौरान अपने भीतर किसी तरह की वासना को भी उत्पन्न नहीं होने दिया।
🌷जीत गए श्रीकृष्ण
इस तरह भगवान कृष्ण ने अपनी सभी गोपियों के साथ रास भी रचाया, उन्हें अपने समीप भी रखा और कामदेव से लगी शर्त भी जीत गए।
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जारी रहेगी ..
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