Monday, 29 February 2016

नवधा भक्ति

!! ॐ श्री हरि !!

भगवान श्रीराम का शबरी को नवधा भक्ति का उपदेश :-
          " नवधा भगति कहऊँ तोहि पाही।
            सावधान सुनु धरू मन माही।।
             प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।
             दूसरी रति मम कथा प्रसंगा।।
भावार्थ :- मैं अब तुझसे अपनी नवधा भक्ति कहता हूँ, तू सावधान होकर सुन और मन में धारण कर।पहली भक्ति है संतों का सत्संग, दूसरी भक्ति है मेरा कथा प्रसंग में प्रेम।
        " गुरू पद पंकज सेवा तीसरी भक्ति अमान।
  चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान।।
भावार्थ :- तीसरी भक्ति है अभिमान रहित होकर गुरु के चरण कमलों की सेवा और चौथी भक्ति यह है कि कपट छोडकर मेरे गुण समूहों का गान करे।
          " मंत्र जाप में मम ढृढ बिस्वासा।
            पंचम भजन सों वेद प्रकासा।।
            छठ दम सील बीरति कहु करमा।
            निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
भावार्थ :- मेरे राम मंत्र का जाप और मुझमें ढृढ विश्वास यह पांचवीं भक्ति है जो वेदों में प्रसिद्ध है।छठी भक्ति है इन्द्रियों का निग्रह, शील स्वभाव बहुत कार्यों से वैराग्य और निरंतर संत पुरूषों के धर्म आचरण में लगे रहना।
            " सातवां सम मोहि मय जग देखा।
              मोते संत अधिक करि लेखा।।
               आठवाँ जथा लाभ संतोषा।
               सपनेहुँ नहिं देखई परदोषा।।
भावार्थ :- सातवीं भक्ति है जगत भर को समभाव से मुझमें ओतप्रोत देखना और संतों को मुझसे भी अधिक करके मानना। आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोषों को न देखना।
              " नवम सरल सब सन छलहीना।
                 मम भरोस हियँ हरष न दीना।।
                  नव महुँ एकउ जिन्ह कें होई।
                    नारी पुरूष सराचर कोई।।
भावार्थ :- नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपटरहित बर्ताव करना, हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और विषाद का न होना। इन नवों में से जिनमें एक भी भक्ति हो वह स्त्री-पुरूष, जड-चेतन कोई भी हो....
           " सोई अतिशय प्रिय भामिनी मोरें।
                सकल प्रकार भक्ति ढृढ तोरें।।
                जोगि वृन्द दूर्लभ गति जोई।
                तो कहुँ आजु सुलभ भइ सोई।।
भावार्थ :- हे भामिनी ! मुझे वही अत्यंत प्रिय है, फिर तुझमें तो सभी प्रकार की भक्ति ढृढ है, अतएव जो गति योगियों को भी दूर्लभ है वही आज तेरे लिए सुलभ हो गई।
                        ~: जय सियाराम :~
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