श्रीवृन्दावनविहारिणे नमः।
*वृजवासोल्लास*
*दोहा*
श्यामाश्याम कृपालु के पाद पद्म धर माथ।।
श्रीवृजवासोल्लास को प्रगट करू रति साथ।।
*सार* *छन्द*
प्रियमम क्यों ब्रजबास छुड़ाया।।टेक।।
और भगत सब बसत निरन्तर क्या मैं ही न समाया।
जो कुछ मम अपराध निहारा, क्षमिए सो कर दाया।।
कारण जो व्रज त्याग विषय है सो सब नाथ बनाया।
बिन तुम्हरे प्रेरण से माधव स्थिर चर जीव निकाया।।
ग्रहण त्याग कुछ कर न सकत है कोउ स्वतन्त्र न गाया।
और देश के मोदक पूरी मैं नही चाहत खाया।।
ब्रज की बेझर बजरी टैंटी मेरे मन में भाया।
*कृष्ण* ! कार्ष्णि मन को बिन व्रज के नाक(स्वर्ग:) नरक दरसाया।। प्रियमम् क्यों वृजबास छुड़ाया।।
क्रमशः
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