*श्रीराधारानी अनुराग वर्णन*
एक बार श्री राधिका गोवेर्धन पर्वत पर श्री कृष्ण के दर्शन के लिए नुकीले और सूर्य की किरणों से तपी हुई शिला पर खड़ी होकर श्यामसुन्दर के दर्शन करने लगी
अर्थात श्री चरणों का ताप भी उनको अति सुशीतल लग रहा है
तो एक सखी कहती देखो जिनके श्री चरण फूलो से। भी कोमल है वो आज श्री कृष्ण दर्शन में अनुराग पूर्ण कैसे नुकीले और गर्म शिला पर खड़ी हो कर कृष्ण दर्शन कर रही है
अर्थात जब श्री कृष्ण प्रेम में अतिदुख भी सुख लगे उसे अनुराग कहते है
यह बहुत ही ह्रदय विधिर्ण करने बाला उदाहरण है
जब मंजरियों उनके शयन के फूलों की सुकोमल शैय्या बनाई तो भो भी श्री राधिका जी विरह ताप से पल भर में सुख गयी अर्थात पत्ते सूख गये
एक बार अत्यन्त विरह से व्याकुल श्रीमती राधिका के लिए जब मंजरियों ने चंदन कर्पूर का लेप जब श्रीमती राधिका के अंग पर लगाया तो विरह के ताप से पल भर में चन्दन का लेप सुख गया
थोड़ी देर जब एक सखी को माँ यशोदा जी ने कृष्ण के भोजन ले आने के लिए भेजा मैया यशोदा की आज्ञा पा कर श्री राधिका जिनका शरीर विरह ताप से जल रहा आकर भोजन तैयार करने के लिए चूल्हे की अग्नि के सामने बैठ गयी उही अग्नि अब उनके तापित सरीर को ठंडक पंहुचा रही है
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