श्रीनाथ जु स्वरूप
पुष्टिमार्ग के सर्वस्व प्रभु श्रीनाथजी के स्वरूप का वर्णन 'अणुभाष्य -प्रकाश-रश्मि' में किया गया हैं-
'उक्षिप्तहस्तपुरूषो भक्तमाकारयत्युत'
दक्षिणेन करेणासौ मुष्ठीकृत्य मनांसिनः ।
वाम कर समुद्धृत्य निहनुते पश्य चातुरीम्॥
गो. श्री द्वारकेशजी ने इसी भाव का शब्दांकन एक पद में सुन्दर ढंग से किया हैः-
देख्यो री मै श्याम स्वरूप।
वाम भुजा ऊँचे कर गिरिधर,
दक्षिण कर कटि धरत अनूप।
मुष्टिका बाँध अंगुष्ट दिखावत,
सन्मुख दृष्टि सुहाई।
चरण कमल युगल सम धरके,
कुंज द्वार मन लाई।
अतिरहस्य निकुंज की लीला,
हृदय स्मरण कीजै।
'द्वारकेश' मन-वचन-अगोचर,
चरण-कमल चित दीजै॥
श्रीनाथजी के मस्तक पर जूडा है, मानों श्री स्वामिनीजी ने प्रभु के केश सँवार कर जूडें के रूप में बाँध दिये है। कर्ण और नासिका में माता यशोदा के द्वारा कर्ण-छेदन-संस्कार के समय करवाये गये छेद हैं। आप श्रीकंठ में एक पतली सी माला 'कंठसिरी' धारण किए हुए है। कटि पर प्रभु ने 'तनिया' (छोटा वस्त्र) धारण कर रखा है। घुटने से नीचे तक लटकने वाली 'तनमाला' भी प्रभु ने धारण कर रखी है। आपके श्रीहस्त में कड़े है, जिन्हे मानों श्रीस्वामिनीजी ने प्रेमपूर्वक पहनाया है। निकुंजनायक श्री नाथजी का यह स्वरूप किशोरावस्था का है। प्रभु श्री कृष्ण मूलतः श्यामवर्ण है। श्रृंगार रस का वर्ण श्याम ही है। प्रभु श्रीनाथजी तो श्रृंगार रस, परम प्रेम रूप है। वही मानों उनके स्वरूप में उमडा पड़ रहा है। अतः आपश्री का श्यामवर्ण होना स्वभाविक है किन्तु श्रीनाथजी के स्वरूप में एक विशेषता यह है कि उनके स्वरूप में भक्तों के प्रति जो अनुराग उमड़ता है इसलिए उनकी श्यामता मे अनुराग की लालिमा भी झलकती है। इसी कारण श्रीनाथजी का स्वरूप लालिमायुक्त श्यामवर्ण का है। प्रभु की दृष्टि सम्मुख और किचिंत नीचे की ओर है क्योंकि वे शरणागत भक्तो पर स्नेहमयी कृपापूर्ण दृष्टि डाल रहे है। प्रभु श्रीनाथजी की यह अनुग्रहयुक्त दृष्टि ही तो पुष्टिभक्तों का सर्वस्व है |
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