*श्री यमुनाष्टक श्लोक :-१*
*नामित यमुना में सकलसिद्धिहेतुं मुदा*
*मुरारि-पद-पंकज-स्फुरदमन्द-रेणुत्कटाम*
*तटस्थ-नव-कानन-प्रकटमोद-पुष्पाम्बुना*
*सुरासुर-सुपुजित-स्मरपितुः श्रीयंत्र बिभ्रतीम*
*अन्वयार्थ*:-
आ श्लोक मां श्री यमुना जी ना त्रण विशेषणों कह्या छे।
*सकल - सिद्धि - हेतुं* = सकल सिद्धियों ना कारण रूप।
*मुरारि-पद-पंकज-स्फुरदमन्द-रेणुत्कटाम* = जलमांना दोषारोपण मुर्गी ना शत्रु (श्रीकृष्ण) ना चरणकमलों ना चमकता अमंद रेणुओ ज्यां उत्कट (जल थी पण अधिक) छे तेवां,
*तटस्थ - नव- कानन- प्रकट-मोद - पुष्पाम्बुना* =
किनारा पर रहेला नवां वनों मां प्रकट आनंद जेना थी छे तेवां पुष्पों वाला जल वे,
*सुरासुर-सुपुजित-स्मरपितु* =
सुर अने असुर वे सारी रिते पुजारा स्मरण ने उत्पन्न करना (श्रीकृष्ण) नी ,
*श्रियं* = शोभा ने,
*बिभ्रतीम्* =धारण किनारा,
*श्रीयमुनां* = श्री यमुना जी ने,
*अहं*= हुं ,
*मुदा* = हर्ष पूर्वक ,
*नमामि* = नमन करु छुं।
*सरल श्लोकार्थ* :-
*श्री यमुना जी सर्व प्रकार नई सिद्धियों ने आपवा वाला छे। मुरारि श्रीकृष्ण ना चरणारविंद थी शोभती खुब ज रज थी भरेगा किनारा वाला छे , ते किनारा उपर नवीन वनों आवेदन छे। तेवां उत्पन्न थयेली पुष्पों नई सुगंध थी युक्त जल वाला छे। सुर अने असुर अथवा दैन्यभाव अने मान भाव वाला वृज भक्तों थी पुजायेला छे। कामदेव (प्रद्युम्न) ना पिता एवं श्रीकृष्ण नई शोभा ने धारण किनारा छे। आवाज श्री यमुना जी ने हुं आनंद पूर्वक नमन करु छुं।*
*श्री यमुनाष्टक श्लोक :-२*
*कलिन्द - गिरि - मस्तके - पतदमन्द पूरोज्जवला*
*विलास - गमनोल्लसत्-प्रकट-गंड-शैलोन्नता*
*सघोष-गति - दन्तुरा समधिरूढ - दोलोत्तमा*
*मुकुन्द - रति-वर्धिनी जयति पद्मबन्धो सुताः।*
*अन्वयार्थ :-*
आ श्लोक मां छ विशेषणों आपी ने श्री यमुना जी नो आविर्भाव बताव्यो छे।
*(१):- कलिन्द - गिरि - मस्तके* = कलिन्द पर्वत ना शिखर उपर , *पतदमन्द - पुरोज्जवला* = पडता अत्यंत वेगवाला जल प्रवाह थी उज्जवलता वाला,
*(२) :विलास - गमनोल्लसत् - प्रकट - गंड - शैलोन्नता* : विलासपूर्वक गमन मां शोभा प्राप्त , प्रवाहवेग थी उंचे थी पडेली , प्रकट देखाती मोटी पर्वतशिलाओ वडे उन्नत ,
*(३) : सघोष-गति-दन्तुरा* = घोष सहित गति थी विविध विकाररूप रसानुरुप भाव वाला ,
*(४):समधिरूढ-दोलोत्तमा* = उत्तमदोला शिबीका मां न विराज्यां होय तेम चरण चलावतां , *अथवा* उत्तमदोला मां विराजवा छतां प्रिय नां दर्शन नी उत्कंठा थी दोला मांथी उंचा-नीचा थता , *अथवा* आधिभौतिक स्वरुप उत्तम दोलामां आध्यात्मिक अने आधिदैविक रुप थी आविष्ट सुंदर रिते विराजेला ,
*(५) मुकुन्द - रति-वर्धिनी* = मुकुन्द नी स्वामिनीजीओ मां रति ने वधारनारां ,
*(६) : पद्मबन्धोः सुता* = रसाकर (कमल) ना मित्र (सूर्य) ना पुत्री (होवाथी) ,
*जयति* = जय पामे छे।
*श्री यमुनाष्टक श्लोक :- ३*
*भुवंभुवन - पावनीमधिगतामनेकस्वनेः*
*प्रियाभिरिव सेवितां शुक-मयुर-हंसादि भिः*
*तरंग - भुज - कंकण - प्रकट - मुक्तिका - वालुका*
*नितम्ब - तट - सुन्दरीं नमत कृष्ण - तुर्य - प्रियाम्*
*अन्वयार्थ*
*आ श्लोक मां श्री यमुना जी पृथ्वी पर पधार्या पछी ना पांच विशेषण आपेला छे।
*(१) :- भुवन-पावनी* =
सर्व भुवन ने पावन करनारा ,
*(२) :- भुवं* =भूतल उपर ,
*अधिगतां* पधारेला ,
*(३) :- प्रियाभिः ईव अनेकस्वनैः शुक-मयुर-हंसादि भिः सेवितां* = प्रिय श्री गोपीजनोए (श्री यमुना जी नुं) सेवन करेल छे, तेवी रिते अनेक स्वर वडे , शुक मयुर अने हंसो वडे सेवायेला ,
*(४) :- तरंग-भुज-कंकण-प्रकट-मुक्तिका-वालुका-नितम्ब-तट-सुंदरीं* =तरंगो ज (श्री यमुना जी) भुजाओं छे, तेमां जे कंकणो छे, तेमां प्रकट मोती ज छे , ते ज वालुका जेवा देखाय छे, तेथी युक्त नितम्ब ज उंचा स्थान रुप तट छे, तेथी सुंदर ,
*(५) :- कृष्णतुर्यप्रियाम* = श्रीकृष्ण ना चोथा प्रियाजी (वहाला) श्री यमुना जी ने , हे भक्तों तमे प्रणाम करो (नमो) ।
*सरल श्लोकार्थ* :-*(सूर्यमंडलस्थ नारायण ना आधिकारिक ह्रदय मां रसद्रवरुपे प्रकट थइने) कलिन्द-गिरि ना शिखरे थी पडता अत्यंत वेगवाला जलप्रवाह (मां थता फीण) थी उज्ज्वल , विलास - गमनमां शोभा-प्राप्त, प्रवाह - वेग थी उंचे थी पडेली प्रकट दिखाती मोटी पर्वतशीलाओ थी उन्नत , घोष सहित गति थी विविध रसभाववाला , (पत्थरों परनी) उंची-नीची गति थी उत्तम दोला मां न विराज्या होय , अथवा विराजवा छता न विराज्या जवां , मुकुन्द नी रति ने वधारनारां , रसरुप कमल ना मित्र (सूर्य) ना रसरुपा पुत्री (श्रीयमुनाजी) जय आपे छे।*
*सरल श्लोकार्थ* = सर्व भुवन ने पावन करनारा , भुतल पर पधारेला , अनेक प्रकार ना कूजनवाला पोपट-मोर-हंस वगेरे वडे प्रिय सखियों नी जेम सेवायेला , तरंगो ज भुजाओं छे, तेमां जे कंकणो छे , तेमां जे मोती छे , ते ज वालुका जेवा (लोकोने) देखाय छे , ते (हस्त) युक्त नितम्ब ज उंचा तट रुप छे , तेथी (प्रभु मां अति प्रेम थी) सुंदर एवा , श्रीकृष्ण नां चोथा प्रिया (श्री यमुना जी) ने (प्रणाम करो ) नमो।
*श्री यमुनाष्टक श्लोक :-४*
*अनंत-गुण-भूषिते शिव-विरंचि-देव-स्तुते*
*धनाधननिभे सदा धृव-पराशराभीष्टदे।*
*विशुद्ध - मथुरा - तटे सकल - गोप - गोपी - वृते*
*कृपा - जलधि - संश्रिते मम मनसुखानी भावय*
*अन्वयार्थ :-*
*आ श्लोक मां श्री यमुना जी ने संबोधन थी सात विशेषण आपेला छे।
*(१):-अनन्त-गुण-भुषिते* = (संख्या अने विशालता मां) अनंत नित्य गुणों थी भूषित प्रभु मां, (हे अनंत - भगवान ना गुणों थी भूषित) ,
*(२):- शिव-विरंचि-देव-स्तुते*= शिव ब्रम्हा वगेरे देवो वडे स्तुति करायेला प्रभु मां, ( हे शिव ब्रम्हादि वडे स्तुति करायेला) ,
*(३):-सदा* = हमेशा ,
*(४):- धनाधननिभे* = मेघ समूह जेवा श्याम प्रभु मां, (हे , धृव पराशर ने ईच्छेलु देनारा ,
*(५):- विशुद्ध - मथुरातटे* = विशुद्ध मथुरा जेनी निकट छे तेवां प्रभु मां , ( हे जेना तटे विशुद्ध मथुरा छे तेवां) ,
*(६):- सकल-गोप-गोपी-वृते* = सकल गोप गोपीजनोथी वींटडायेला प्रभु मां ,
*(७):-कृपा-जलधि-संश्रिते* =निरवथि कृपा युक्त हरि मां , (हे! कृपासागर ना आश्रये रहेला,
*मम*= मारा मन मां, ( भगवती स्वरुपानंदरुप) सुनने,
*भावय* = विचारो ।
*सरल श्लोकार्थ :* हे अनंत भगवान ना गुणों थी भूषित ! हे शिव ब्रम्हादि देवो वडे स्तुति करायेला ! हे सदा मेघ-समूह जेवां श्याम ! हे धृवजी - पराशरजी ने ईच्छेलुं देनारा! हे विशुद्ध मथुरा जेना तट छे तेवां ! हे सकल गोपी गोपी जनों थी वींटडायेला ! हे कृपासागर (कृष्ण) ना संमाश्रित ! (श्री यमुने) ! (आप) मारा मननां सुख ( भगवत्स्वरुपानंद ना नित्य अनुभव ने ) विचारों (संपादन करो ), अनंत-गुणोथी भूषित , शिव , ब्रम्ह , - वगेरे देवो वडे स्तुति करायेला , ( हमेशा ) मेघ-समुदाय जेवां श्याम , धृवजी पराशरजी ने ईच्छेलुं दान देनारा , विशुद्ध - मथुरा जेना निकट मां छे तेवां सकल गोप-गोपीजनो थी वींटडायेला, कृपा - सागर जेना आधारे रहेलो छे तेवां , (भगवान) मां मारा मनःसुख नुं सदा संपादन करो।
*श्री यमुनाष्टक श्लोक :- ५*
*यया चरण पद्मजा मुर-रिपोः प्रियंं भावुका*
*समागमनोऽभवत् सकल-सिद्धिदा सेवताम्*
*तया सदशतामियात् कमलजा सपत्निव यद्*
*हरि-प्रिय-कलिन्दया मनसि मे सदा स्थियताम्*
*अन्वयार्थ :-*
आ श्लोक मां सर्वथी श्री यमुना जी नी श्रेष्ठता बतावे छे। *यया*= जेनी साथे , *समागमनतः*= संगम थी, *चरणपद्मजा* = चरणकमल मांथी उत्पन्न थयेला गंगाजी, *मुररिपोः* =श्री कृष्ण ने *प्रियं* = प्रिय, *भावुका* = मावन करनार , *सेवतां* = सेवनाराओ ने , *सकल-सिद्धि दा* = सकल सिद्धियों देनारा , *अभवत्* = थया, *तया* = तेवां साथे , *सदशतां* = सदशता मां , *सपत्नी* = शोक्य , *ईव* = जेवा , *यत्* = कारण थी , *कमलजा* = कमल मांथी प्रकटेला श्रीलक्ष्मी जी, *ईयात्* = प्राप्त थाय , *हरि-प्रिय-कलिन्दया* = श्री हरि ना प्रिय जनों ना दोषों ने हरनारा , *मे* = मारा, *मनसि* = मन मां , *सदा* = हमेशां , *स्थीयताम्* = स्थीर थाव ( बिराजो )!
*सरल श्लोकार्थ* :-
*जे (यमुना जी) नी साथे ना संगम थी प्रभु ना चरण मां थी उत्पन्न थयेला गंगाजी श्रीकृष्ण नुं प्रिय संपादन करनारा (अने) सेवनाराओ ने सकल सिद्धियों देनारा थया, तेवां (आपनी) साथे समानता मां सपत्नी जेवां कमल मां थी प्रकटेला लक्ष्मी जी आवे, (ते) प्रभु ना , प्रियजनों ना दोषों ने दूर करनारा (आप) मारा मन मां हमेशा बिराजे।*
*यमुनाष्टक श्लोक :-६*
*नमोऽस्तु यमुने सदा तवचरित्रमत्यद्भुतं*
*न जातु यम-यातना भवति ते पयःपानत*
*यमोऽपि भगिनी सुतान् कथमु हन्ति दुष्टानपि*
*प्रियो भवति सेवनात् तव हरेर्यथा गोपिकाः*
*अन्वयार्थ :-*
*यमुने*= हे यमुने! *नमः*=(आपने) नमन , *अस्तु*= हो! *तव*= तमारु , *चरित्रं* = चरित, *अत्यद्भुतं*= अति अद्भुत (छे) , *ते*=तमारा, *पयःपानत* = जल पान थी , *यम-यातना* = यम संबंधी दुःखों , *जातु* = क्यारेय पण, *न भवति* थता नथी, *यमः* = यमराज , *अपि* = पण , *भगिनी - सुतान्* = भाणेजो ने , *दुष्टान्* = दुष्ट, *अपि*= (होवा छतां) पण , *कथं*= कई रिते , *ऊ*= अहो , *हन्ति* = मारे? *तव*= तमारी , *सेवनात्* = सेवा थी , *हरेः*= ( जीव) *हरिनो प्रियः* = प्रियजन , *भवति* = थाय छे , *यथा* जेम , *गोपिकाः*= गोपी जनों !
*सरल श्लोकार्थ* =
*हे श्री यमुना जी आपने सदैव नमन हो! आपनुं चरित्र अति अद्भुत छे। आप ना जल ना पान थी यम-यातना कदी पण भोगववी नथी पडती , कारण के पोताना भाणेजो दुष्ट होय तो पण यमराजा तेमने कई रिते मारे? जेवी रिते कात्यायनी व्रत द्वारा आपनी सेवा करी ने श्री गोपी जनों प्रभु ने प्रिय बन्या , तेवी रिते आपनी सेवा द्वारा भक्तों पण प्रभु ने प्रिय बने छे।*
*श्री यमुनाष्टक श्लोक :-७*
*ममाऽस्तु तव सन्निधौ तनु-नवत्वमेतावता*
*न दुर्लभतमा रतिर्मुर-रिपौ मुकुन्द - प्रिये*
*अतोऽस्तु तव लालना सुर-धुनी परं संगमात्*
*तवैव भुवि किर्तिता नतु कदापि पुष्टि - स्थितैः*
*अन्वयार्थ :-*
*तव* = तमारा , *सन्निधो* = निकट मां , *मम* = मारुं , *तनु-नवत्वं* =शरीर नुं नवीनपणुं , *अस्तु* = थाव , *एतावता* = आटला थी, *मुर-रिपो* = मुर ना शत्रु मां (श्रीकृष्ण मां) , *रतिः* = प्रिटी भक्ति , *दुर्लभतमा* = अत्यंत दुर्लभ , *न* = नथी , *अतः* = आथी , *मुकुन्द - प्रिये* = श्रीकृष्ण ना प्रिये! *परं* = परंतु , *तव* = तमारा , *एव*= ज , *संगमात्* = संगम थी , *पुष्टि - स्थितैः* = पुष्टि भक्ति मार्ग मां रहेलाओ वडे, *तु* = तो , *कदा* = क्यारेय , *अपि* = पण , *न* = नहीं।
*सरल श्लोकार्थ :-*
*श्री मुकुन्द भगवान ने प्रिय एवां हे श्री यमुना जी ! आपनी समीप मां मने भगवद् लीला मां थाय तेवो अलौकिक देह प्राप्त थाव। तेना वडे मुरारी श्रीकृष्ण प्रभु मां अत्यंत सरलता थी प्रिती थशे। तेथी ज तो आपनी स्तुति द्वारा आपने आ बधां लाड हो! श्री गंगाजी केवल आपना संगम थी ज कीर्ति पाम्या छे। आपना संगम विना नां श्री गंगा जी नी स्तुति पुष्टि मार्गिय जीवोए क्यारे पण करी नथी।*
*श्री यमुनाष्टक श्लोक : ८ :-*
*स्तुतिं तव करोति के कमलजा सपत्नी प्रिये*
*हरेर्यद नु सेवया भवति सौख्यमामोक्षतः*
*ईयं तव कथाधिका सकल - गोपिका - संगम-स्मरश्रम-जलाणुभिः सकल - गात्रजेः संगमः*
*अन्वयार्थ :-*
*कमलजा सपत्नी*= हे लक्ष्मी जी ना समान पत्नी! प्रिये! *तव* = तमारी , *स्तुतिं* = स्तुति , *कः* = कोण , *करोति*=करी शके? *हरेः* = हरि (श्रीकृष्ण नी), *यदनुसेवया* = (जेनी) अनु (सेवा पछी) सेवा वडे , *आमोक्षतः*= मोक्ष पर्यना (सालोक्यादि)