पिय प्यारी तरणी कलिंद बिलसै।
गही भुज पिय कटि मेलै,अंक प्यारी पिय हुलसै।
लटकि वक्ष माल प्यारी दाय,गुंज माल कटि लटकै।
कर्ण फूल लटकि भयै ग्रीवा,बेसर रहि अधर अटकै।
सब सौ अधिक पिय भूषण भए,प्यारी मुख रहे लटकै।
श्री प्रियतम प्यारी जु आज श्री यमुना जु मे एक सुमनोहर नौका पर प्रेम विलास कर रहे है।
श्री प्रिया जु प्रियतम के अंक मे विराजित है,अध लेटी सी मुद्रा मे।श्री प्रिया जु ने अपना बायाँ कर श्री प्रियतम की कटि मे फँसा रखा है और दोनो पिय प्यारी एक दूसरे को अंक मे भर भरकर प्रेम कर रहे है।
श्री प्रिया जु के वक्ष का हार वक्ष के दायी ओर लटक रहा है और गुंज पुष्पो की माला दायी ओर की ही कटि पर लटक रही है।
प्रिया जु के कानो के दोनो झुमके ग्रीवा(गरदन) पर लटक रहे है और नक बेसर अधर पर लेटी हुई सी अटक रही है।
इन सबसे अधिक प्रिया जु के सर्व भूषण श्यामसुंदर है उनकी दशा भी इन सब आभूषणो के समान ही है किंतु वह कहाँ लटके हुए है??
ऐसे श्री प्रियतम श्री प्रिया जु के मुख कुमुद पर लटके है....
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