Monday, 6 March 2017

लीला 2

नित्य नव लीलामय नव नव कुंज निकुंजो मे नव नव लीला रस खेल नित्य होता रहता है।युगल ह्रदय मे उठी तरंग अनुरूप ही इन कुंज निकुंजो मे सब ॠतुएँ नित्य सेवामय रहती है।इसी प्रकार आज फागुन की ॠतु एक नई रस तरंग लेकर युगल सेवा मे उपस्थित है।
आज श्री युगल की परम प्रिय सखियाँ,सहचरियाँ आदि युगल के समीप आकर श्री प्रिया प्रियतम से अत्यंत ही लाड भरा अनुग्रह कर कहती....श्यामसुन्दर हम सभी नित्य ही तुम्हारे लिए हमारी स्वामिनी जु का श्रृंगार किया करती है,किंतु आज हम सभी के ह्रदय मे ऐसी अभिलाषा,ऐसा चाव उठा है की,आज हम अपनी स्वामिनी जु के लिए भली प्रकार से तुम्हारा श्रृंगार करे।
सखियो का ऐसा प्रेममयी अनुग्रह सुनकर श्री प्रिया प्रियतम परस्पर एक दूसरे के नयनो मे निहारकर अधरो पर अत्यंत प्रेममयी मुस्कान बिखेरकर सब सखियो को स्वीकृती प्रदान कर देते है।
श्री प्रियतम सखियो के संग श्रृंगार कुंज की ओर चल दिये और श्री प्रिया नयनो मे प्रेम प्रतीक्षा लिये यही बैठ गयी।
श्रृंगार कुंज मे आकर सबने श्री प्रियतम को एक सुंदर ऊँची चौकी पर बैठाया और चारो ओर से घेरकर खडी हो गयी।श्री प्रियतम बोले...अरी सखियो शीघ्रता करो,मेरे प्रियतम!.....कहते कहते रूक गये(वह स्वयं को श्री प्रिया ही समझ बैठे)......किंतु पुनः संभलकर बोले...वो,श्री प्रिया प्रतीक्षा करती होगी न,मुझे शीघ्र सजा दो।
सखियाँ बोली....श्यामसुन्दर पहले तुम अपने नयन बंद करो,यू निहारते रहोगे तब हम तुम्हारा श्रृंगार कैसे कर पायेगी?
...बहुत अच्छा,ऐसा कहकर श्री प्रियतम अपने नैत्र मूंद लेते है।
सब सखिया परस्पर नयनो ही नयनो मे कोई गोपनीय वार्ता कर एक दूसरी को संकेत कर मुस्कुराती है और इस वार्ता के पूर्ण होते होते कुछ सखियाँ भाँति भाँति के रंग,अबीर की थाल लेकर वहाँ उपस्थित हो जाती है।सब मिलकर एक विशेष रीती से श्यामसुंदर का फागुन का विशेष श्रृंगार प्रारंभ कर देती है।अलग अलग रंगो से श्यामसुंदर के कपोल चिबुक,भाल आदि सब अंगो पर अबीर गुलाल से चित्र बनाती है।बीच बीच मे श्यामसुंदर पूछते है...सखी!हो गया क्या?सखियाँ कहती है....बस,बस हो गया श्यामसुन्दर।
श्यामसुन्दर पुनः प्रतीक्षामय होकर बैठ जाते है।
कुछ ही समय मे श्रृंगार पूर्ण हुआ।
प्रियतम पुनः उत्सुकता से बोले...नयन खोलू सखी.....और बिना सखी के प्रत्युत्तर की प्रतिक्षा किये ही नयन खोल लेते है।
सखी से कहते है.....सखी! सखी! मुझे दर्पण तो दिखा,देखू तो तुमने प्यारी जु के लिए मुझे कैसा सजाया है।
सखी बडी चतुरता से श्यामसुंदर के इस विचित्र श्रृंगार को छिपाने के लिए कहती है....अरे!श्यामसुंदर यह क्या कहते हो,यह श्रृंगार प्यारी जु के लिए है न, तुम इसे पहले ही स्वयं निरखकर क्या प्रसादी श्रृंगार श्री प्रिया जु निवेदन करोगे?
श्यामसुंदर कुछ चिंतनीय मुद्रा बनाकर बोले....न,नही तो...तुम सही कहती हो सखी,चलो रहने दो।
कहकर पुनः अाकुलता से कहते है...सखी,अब मुझे शीघ्र प्रिया जु के समक्ष ले चलो,शीघ्र चलो।
सब सखियाँ अधरो से बस फूट पडने ही वाली हँसी को जैसे तैसे रोक लालजु को संग लेकर प्यारी जु के समक्ष चली।इधर प्यारी जु बडी विकलता से श्यामसुंदर की प्रतिक्षा कर रही थी किंतु जैसे ही लालजु को आते देखा,पहले तो प्यारी जु लालजु के इस विचित्र श्रृंगार को देख देखती ही रह जाती है।
फिर अपनी सुन्दर दन्तावली को अपने कर से ढापती हुई सी,उन्मुक्त होकर खिलखिलाने लगती है।पूरा निकुंज इस मधुर सरगम रूपी हास्य से नाच उठता है।लालजु भी प्यारी जु को यू खिलखिलाते देख मुस्कुराने लगते है।वह यह नही सोच रहे की प्यारी जु क्यू मुस्कुरा रही है?उन्हे इतना अवकाश कहाँ,उनके लिए तो यह परम सुख की उनकी प्यारी जु प्रसन्न है।
सब सखियाँ पिय प्यारी दोनो को देख देख प्रसन्न हो रही है,तभी प्यारी जु एक सखी को संकेत करती है।वह तुरंत एक बडा दर्पण लेकर उपस्थित होती है।लालजु को सबने दर्पण दिखाया।दर्पण देख लालजु कुछ रूठे से हो मुँह लटका लेते है,कुछ क्षण के लिए पूरा निकुंज मौन हो गया।
प्यारी जु अपने बडे बडे नयनो से चकित हिरणी की भाँति लालजु को देखने लगी,तभी लालजु ने नयन उठा प्यारी जु के नयनो मे देखा,देखते ही प्यारी जु सब बात समझ एक ओर को दौडी,लालजु भी हसकर प्यारी जु को पकडने उसी दिशा मे दौड पडे,पीछे से सब सखियाँ दौडी।कुछ ही दूर पर प्रियतम ने प्यारी जु को पकड गाढ आलिंगन मे भर लिया।प्यारी जु के करो को पकड अपने इस अद्भुत श्रृंगार से श्री प्रिया जु को श्रृंगारित करने लगे।दोनो कर तो प्यारी जु के करो को वश मे किये है और कपोल से कपोल,चिबुक से चिबुक,नासिका से नासिका,भाल से भाल पर रंग लगाने लगे,युगल रसमत्त हुए जा रहे है।
बाह्य रूप से श्री प्रिया जु श्री प्रियतम के और आंतरिक रूप से श्री प्रियतम श्री प्रिया जु के प्रेम पाश मे बँधे हुए डूब रहे इन प्रेम तरंगो मे और सखियाँ युगल सुख को नैनौ के प्यालो मे भर भर पी रही......

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