Saturday, 11 March 2017

रहै सजाय भूलै पिय बात , आँचल सखी जु

हँसती खिलती बतियाती हुई कुछ सखियाँ प्रिया जु संग श्रृंगार हेतू श्रृंगार कक्ष की ओर आ रही है।
कक्ष के द्वार तक पहुचकर क्या देखती है की श्यामसुंदर द्वार रोककर खडे हुए है।भौह द्वारा एक सखी पूछती है---का भयौ?काहै दण्ड कौ ताई द्वार पै ढाडै हौ जी??
लाल जु विनती करते हुए उत्तर दिये---सखी!मैरौ जी प्यारी जु कौ श्रृंगार करवै कू ह्यै रह्यौ,आज मोय करवै दौ न..
सखी प्रिया जु की ओर देख के उनके मनोभाव समझ बोली----ठीक है श्यामसुंदर और श्री प्रिया जु को कर लालजु के कर मै सौप सब एक ओर को चली गई....
कक्ष के भीतर पहुच लाल जु प्रिया जु कौ श्रृंगार करवै लगै।
अभी कुछ ही श्रृंगार किया था की लालजु के प्रेम सिंधु मे ऐसौ भाव तरंग उठी की लालजु अती अधीर हो उठे....
युगल के अंतर मे उठी इस रस तरंग से ये श्रृंगार कक्ष,निभृत रस केली कुंज मे ही परिवर्तित ह्यै गयौ....और प्रियतम अब तक जो प्यारी जु कौ श्रृंगार कियै रहै,सब एक एक कर छुडावै लगै....
प्यारी जु की ग्रीवा मे कर डालकर हल्के हल्के से अंगुलियो को फिराते हुए कंठ हार नीचे ओर नीचे.....प्यारी जु का वक्ष पूर्णतः रिक्त हो गया।कंचुकी से बाहर को झाँकती मनोरम चित्रावली को निहार लालजु ने अति आतुरता मे प्यारी जु के वक्ष पर बनी इस चित्रावली के स्थान को अपने अधरो से चूम लिया....हाय! अति सुकोमलांगी राधा के वक्ष पर कैसी अरूण छाप छूट गई है...
यह चित्रावली मानो कंचुकी रूपी झरोखे से लाल जु को उस रस सिंधु की ओर ले जाने को ललचा रही है....
बाँध टूट ही गया और लालजु ने अपने कर प्यारी जु के वक्ष पर से फिराते हुए,दोनो अंस से बढाते हुए,सर पर रखी चूनर मे से पीछे कटि पर ले जाते है और....कंचुकी के बंध खोल देते है।
...वक्ष निरावरण है,किंतु सर पर चूनर सजी है।लाल जु इस निर्बाध रस सिंधु को देख यू आतुर हो चलते है मानो चातक को स्वाति रस सिंधु मिल गया हो,बिंदु नही सिंधु ही पा गया....
लालजु इस रूप सिंधु को देख शिथिल से होकर बाँवरे से हुए यह भूल गये की रस पीना है और एकटक निहारते ही रह गये....
तभी प्यारी जु दोनो कर से चूनर को आगे कर पकड लेती है और ये रस केंद्र एक झीने आवरण मे नाज से आ बैठते है....
लाल जु कुछ सचेत हुए औरे लालजु की रस तृषा अनंत गुना ओर बढ गई।कोई उपाय न देख लालजु प्यारीजु के जूडा मे बंधे केश खोल देते है।जूडे मे पुरी माला एक ओर को जा पडी और प्यारी जु ने केश सम्हालने को चूनर छोड दी....अहा!चूनर सर से ढलक नीचे जा पडी।
और लालजु ने रस सिंधु का मानो नेत्रो से पूजन कर पहले एक तट का रस पिया फिर दूसरे तट......आतुरता बढ रही और दोनो एक रस,एक श्वास,एक तेज,एक वपु होने लगे........

रहै सजाय भूलै पिय बात।
बाढि मोद रस तरंग यौ,लगै उतारवै साज आप हाथ।
हार ग्रीवा उतार कौ निहारै,चित्र फबै उरोज  ललचात।
तौर बंध कंचुकी बाध हटि,चूनर ओट करि प्यारी छिपावै।
मुक्त केश किये पिय प्यारी,धरि केश चूनर ढुरी जावै।
उरूज दु रस पीयै भरिकै,प्यारी पिय यौ डटै रहै।
वपु सरस श्वास तेज ऐकौ,तापै अघै ना औरि कहै।

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