Wednesday, 29 March 2017

प्यारी पिय आप ढुरि , आँचल जु

प्यारी पिय आप ढुरि।
पिय कौतुक सकुचि मुख ढापि,प्यारी पिय सौ लाज करि।
जुग छिन भारि परै पिय,रस चौप दुनि अतिहि बढी।
दुरै कर देखि शिथिल प्यारौ,प्यारी हिय लयी पिय मढी।
बहु विधि अरस परस रस करै,कोऊ नीकौ नाय कोऊ अति।
दंपति दोऊ करै सहज केलि,प्यारी रंगे रहै प्रेम रति।

प्रियतम की किसी रस चेष्टा से लजाकर प्यारी जु ने हँसते हुए पान की आकृति के दो पत्ते अपने दोनो हाथो मे लेकर अपने मुख चंद्र को इसके पीछे छुपा लिया है।
इससे प्रियतम अकुला गए है।ओह! यह क्षण प्रियतम के लिए युग समान हो गया है।
ये अपने दोनो करो द्वारा प्रिया जु के करो को हटाना चाह रहे किंतु हटा ना पाए हैै।
तभी प्यारी जु स्वयं ही अपने कर हटा लेती है।दोनो पत्तो के पीछे से प्यारी जु का हँसता हुआ मुखमण्डल जैसे ही प्यारे जु देखते है,रस सिंधु की एक ऊँची सी लहर मे बहकर स्तब्ध हो रह जाते है।
प्रियतम की दोनो भुजाए जो प्यारी जु के कर हटाने की चेष्टा कर रही थी...वे उसी अवस्था मे खडी की खडी रह गई है,न गिरती है न बढती है।
प्यारे जु की ऐसी रस जडता देख प्रिया जु हँससर खीचते हुए प्यारे जु को ह्रदय से लगा लेती है।.....और नाना विधि से इन पर रस प्रेम वर्षा कर देती है....

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