Thursday, 23 March 2017

कूल रवि तनुजा रसिक दौऊ बिलसै , लीला दर्शन , आँचल जु

पूर्ण चंद्रमा की चंद्र रश्मियो से चम चम चमकता यमुना जल युगल ह्रदय को बरबस ही एक रस केली का आमंत्रण दे बैठा।
सामने की ओर से अपनी प्राणप्रिया के दोनो कर थामे प्रियतम यमुना जल की ओर से पीठ और प्रिया मुख शोभा निरखते हुए एक एक सीढी उतर रहे....
शीघ्र ही युगल जलमध्य शोभित हुए।यमुन जल प्यारी जु की कंचुकी के निचले छौर व प्यारे जु की कोहनी से जरा उपर तक आ रहा है...... दोनो के मध्य मे तनिक अंतर है और दोनो परस्पर नयनो मे ही उलझे हुए है तभी प्रिया जु अपने कर मे पकडा हुआ लंबी नाल वाला अध खिला कमल जल मे दे मारती है....जल की कुछ बूंदे उछलकर प्रियतम के मुख पर बैठ जाती है और प्रियतम के ह्रदय मे एक रस आतुरता जाग उठती है।
प्रियतम प्यारी जु को पकडकर ह्रदय से लगाने को उद्धत हो लपकते है किंतु प्यारी जु चपला की सी गति से जल के भीतर डुबकी लगा जरा सी दूरी से बाहर निकल जाती है और प्यारे जु की दोनो भुजाए वायु मे लहराकर स्वयं का ही आलिंगन कर लेती है....
प्यारी जु यह देख जोर से हस देती है और प्रियतम पुनः प्यारी जु को पकडने के लिए अपने गले से पितांबर उतार कमर मे बाँध लेते है....पुनः दाँव लगाते है प्यारे जु....और इस बार प्यारी जु प्रियतम के भुजपाश मे बंध ही जाती है....जरा सी अकुलाती है और इसी आतुरता आकुलता मे प्यारी जु की चूनर सर से खिसककर दूर बह जाती है....
प्यारी जु यू ही बाहर सिढियो की ओर दौडती है।प्यारे जु निरख रहे....चौडी चौडी पायलो से टपकता रस....कमर पर लटकती गुंथित वेणी से कटि की मध्य रेखा मे बहती रस नदी....
दूसरी सिढी पर रूक प्यारी जु नैनौ की कौर से जरा तिरछी हो प्यारे जु पर कटाक्ष करती तो....
प्यारे जु पुनः रस तृषा से व्याकुल हो तेजी से प्यारी जु के सामने ही पहुच जाते है।
दोनो ओर से रस पिपासा के निदान की चेष्टाए होने लगी....कालिंदी कूल की यह चौडी सीढी ही केली सेज हो गई....
प्यारी जु का लहंगा दूसरी सीढी पर लटक रहा है रस टपकाता हुआ.....कंठ की माला रसीली रस भार से बेसुध हो निढाल किंतु रस टपकाती लटक रही....
ओर प्रियतम....प्यारी जु के उर पर लटके प्रियतम के दोनो कंधो पर से होते हुए केश प्यारी जु पर लटक रहे है।इनसे कुछ रस बूंदे प्यारी जु के कंठ,चिबुक,कपोलो आदि पर टपकती है प्यारी जु सिहरकर नयन खोल देती है....
प्यारी जु की पलक पर लगा एक रस बिंदु किसी जुगनू की तरह चमकता प्यारे जु को खीच रहा है और प्यारे जु धैर्य खो अपने अधर प्यारी के नयनो पर रख दिये....रस पिये  और पुनः उसी भाति लुढके से प्यारी जु की मुख छबी निहारने लगे....
इसी समय प्रियतम की बेसर के हिलने से एक नन्ही सी रस बूंद प्यारी जु के अधरो पर टपक पडी....प्यारी जु के अधर पहले तो सहमकर सिमट गए किंतु आधे ही पल मे खिल उठे.....
यू ही रस पीते पिलाते दोनो रस श्रमित हो चले और प्रियतम निढाल हो प्यारी जु के ह्रदय पर ही......

कूल रवि तनुजा रसिक दौऊ बिलसै।
लपकि लिपटानी उर अति आतुर,कियै रस मोद दौऊ फूल-सै।
अंगनि रस वर्षिणी तृषा बूंदनि,ओरि बाढि बढै निरखि हुलसै।
पीवै थकै लंबित ढुरै परस्पर,रस शिथिल भए भ्रमर कमल-सै।

No comments:

Post a Comment