ह्रदय मे अनंत उमंग उल्लास लिए सब सखियाँ रंग कक्ष के बंद कपाटो के खुलने की प्रतिक्षा मे है।शुक सारिका के जय शब्द के साथ ही ललिताजु मुस्कुराते हुए कपाट खोलकर सब सखियो संग कक्ष मे प्रवेश करती है.....
युगल के मुख प्रक्षालण,बालभोग,आरती आदि सेवाओ मे सब तत्पर हुई।श्री ललिता जु व कुछ सखियाँ युगल सुख विलास के चिन्हो को,श्रृंगार को निरख रही है।
सबके ह्रदय आश्चर्य चकित व एक अनजाने भय से भयभीत हो रहे.....
युगल दंपत्ति का सब श्रृंगार सुव्यवस्थित है....केश,केशो की वेणी,गजरा,बिंदिया,नयनो का कजरा,कंचुकी,पिताबंर सब ही तो यथास्थान है....कहि कोई अंजन,बेंदी,नख,अधर आदि का भी कोई चिन्ह न दिख रहा....
सबके ह्रदय भयातुर हो अनेक प्रश्नो मे डूबे जा रहे....तो क्या सम्पूर्ण रात्री परस्पर कोई सुख आदान प्रदान न हुआ?
ऐसे अनेक विचारो से सहमी सजल नयना सखियाँ ललिता जु की ओर देखती है और ललिता जु आगे बढ प्यारी जु के सम्मुख बैठ,उनकी ओर मुख किये बहुत धीरे से पूछने लगती है.....
ललिता जु----प्यारी!सब कुशल तो है न??रंगीली तुम्हारा यह सुगढ श्रंगार हमे सशंकित कर रहा है.....(युगल को एक ही नजर मे इंगित करके) तुमने रात्री मे सुख पूर्वक विलास तो किया न......(प्रिया जु लजाती जा रही)
ललिता जु पुनः----हे मानिनी!कही प्रियतम से रूठकर तुम सम्पूर्ण रात्री मान तो न किये रही????ओह!प्रियतम की किसी चेष्टा पर खीझकर तुमने स्वयं को ओर प्रियतम को विरह संतप्त तो नही किया न???
प्रियाजु के लज्जा से झुके मुख को लाड मे भरकर चिबुक से पकड उठाते हुए ललिता जु बोली....तुम्हारा ह्रदय सदैव हमारे सम्मुख दर्पण की भाँति रहा है,तब हमसे लज्जा कैसी??
कहो न...शीघ्र सब कहो....
प्यारी जु बस इतना ही कही--नही तो!
श्यामसुन्दर ने.....पुनः सब श्रृंगार किया न....
ललिजा जु---अच्छा!ललिता जु अधिक कुछ न कही....
किंतु ह्रदय अब भी विचलित....क्या हुआ होगा???
नयनो की सजलता छुपाते हुए सब एक ओर को हो गई....
युगल उपवन मे जाने को शैय्या से उतर चले.....
अक्स्मात ही सबके चेहरे प्रस्न्नता से खिल उठे....
अब तक एक चादर मे ढका भेद उजागर हुआ।जैेसे सिंधु बाहर से शांत भीतर से अथाह हलचलो को समेटे हो....बस वैसे ही....
युगल के निचले वस्त्र आभूषण आपस मे बदले हुए है....सब पूरी तरह व्यवस्थित किंतु परिवर्तित....
युगल को भान नही इस श्रृंगार का किंतु सब सखियो के ह्रदय,नयन अत्यधिक शीतलता अनुभूत कर रहे.....मौन टूटा.....कुंज खिल उठा...
Thursday, 23 March 2017
वही श्रंगार ... लीला रस , आँचल जु
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