Saturday, 11 March 2017

दशा रस उमगि पिय कैसी , आँचल जु

दशा रस उमगि पिय कैसी।
लौलुप रस भँवर रूप भूलै,छबी चित्र पिय सम जैसी।
शिथिल तनु उर तरंग भारि,गई मति रस दैखि बौराई।
प्यारी पिय तबहु का हौय,रस सिंधु उलटि जब जाई।

रस सिंधु के उमड पडने पर प्रियतम की दशा तो देख सखी कैसी हो गई है।
ये प्रियतम जो सदा सर्वदा प्रिया रस के अति लोभी है आज ये उस रस सिंधु की भँवर मै ऐसै उलझ गए है की यह ही भूल गए की मुझे यह रस पीना है।रस दर्शन से ऐसे मतवालै हो गए है ये....प्रियतम की छबी तो आज किसी चित्र की भाँति होकर रह गई है।
प्यारी जु के ऐसे रस दर्शनो से इनका अंग अंग तो शिथिल हो गया है किंतु ह्रदय मे ऊँची ऊँची तरंगे उठ रही है।ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो प्रियतम की मति तो यह रस देखकर बाँवर सी हो गई है।
प्यारी!अभी तो प्रियतम ने केवल रस दर्शन ही कियै है,पीया नही....मै तो यह सोच रही हू की तब उनकी दशा क्या होगी जब यह रस सिंधु इन पर उलट ही जायेगा......

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