फाग खैले दोऊ नैन पिचकारी।
अरूण रंग रति मान कौ गुलाबी,हरौ रंग लाड भर डारी।
हास मंद लठ्ठ हौरा कौ हौयौ,कहौ किस बिध बचै मुरारी।
गिरत बरौनि मनौ खैचत भई,ठात मनौ पिय दई मारी।
डटे नाय हटे नेकहु छाडे,अंक भरि खैलै पिय प्यारी।
डारन वारौ यौ आप डरावै,होरी सब हौरन पै भारी।
प्यारी सब मिली सखीन यौ निरखै,झकै झरौखै अरू छैद दरारी।
अरी!आज पिय प्यारी फाग खेल रहे है।
किस प्रकार?
अपने दो नैनो की पिचकारी से फाग खेल रहे है।
इन नैनो मे कौन कौन से रंग भरकर ये मार रहे,जरा सुन.....
रात भर प्रेम रति विलास मे जागते रहने के कारण इनके नयन कुछ अरूण(लाल)हो गये है,वही लाल रंग है और प्यारी जु का जो मान भाव(जब प्रियतम प्याारी जु के द्वारा उडेल दिये गए रस सिंधु मे पूर्णतः डूबकर बाँवरे से हो जाते है,स्वयं को संभाल नही पातेे तब श्री प्रिया जु जरा सा मुख घुमा लेती है,प्रियतम को संभालने हेतू ही बस!वह क्षण ही प्रियतम के लिए प्रिया जु का मान हो जाता है)है वही गुलाबी रंग है।इसी प्रकार जो प्रिया जु को लाड को सरूप(जब प्रिया जु के मानवती हो जाने से प्रियतम का मुख कमल कुम्हला जाता है,इनके नयन भर आते,दृष्टि झुक जाती है तब इनकी ऐसी दशा देख प्रिया जु को इन पर अत्यंत लाड,नेह उमड पडता है और प्रिया जु इन पर नाना विधि से रस वर्षा कर देती है तब प्रियतम के मुरझा से गए ह्रदय मे हरियाली छा जाती है)है सोई हरो रंग जानो।ऐसे ऐसे रंग प्यारी जु प्रियतम पर नैनो की पिचकारी मे भर भर कर डाल रही है।
इसी समय जब प्यारी जु प्रियतम की ओर देखकर हल्के से ही मुस्कुरा देती है हाय!वही तो लठ्ठमार होली का मानो लठ्ठ चला देती है।ऐसे मे कह तो प्रियतम किस प्रकार बच सकेगे।
प्रिया जु जब पलके गिराती है तब मानो वह अपनी इन नयन पिचकारी मे रंग भरने के लिए पिचकारी को खीचे हुए है और जब पलक उठाती है तब,तब मानो पिचकारी के भर जाने पर प्रिया जु ने प्रियतम पर उसकी धार दे मारी हो।
किंतु प्रियतम को देखो वह निरंतर रंग से भीगते जाने पर भी डटे हुए है,जरा से इधर उधर नही हो रहे,बिलकुल न हट रहे है और पिय प्यारी दोनो एक दूसरे को अंक मे भरकर रंग का यह खेल खेल रहे है।
ये प्रियतम जो सदा सबको रंगने की ताक मे रहते है।रंगते भी रहते है,आज ये ही प्रिया जु से विनय कर कर रंग डलवा रहे है की प्रिया जु ओर,नेक सो ओर,अबई नाय,नेक होर डारो।ऐसे मे यह प्रिया जु की होली,लालजु की पिछली सब होलियो पे भारी पड गई है।
प्यारी सब सखिया मिलकर इस अद्भुत होली को कैसे देख रही है की कोई झरोखे,कोई छिद्र से और कोई कोई तो दरारो से इनको झाँक रही है।हाय!
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