Thursday, 9 February 2017

वपु सु-सौना अंग अंग टौना,अति मन मौहना राधारमणा

जिनकी सुंदर देह के रोम रोम से निकलती शुद्ध स्वर्ण कांति से स्वर्णमय प्रतीत होते,जिनका अंग अंग किसी जादू-टौने से भरा,जो मन को अत्यधिक शीघ्रता से मोह लेने वाले है,वे ऐसे राधारमणा है।
जिनके अधर रस से भरे अति सरस है,जिनका रंग बादल के समान है और जो सदैव प्यारी श्रीजु रूपी पुष्प के भ्रमर है,वे ऐसे राधारमणा है।
जो सुन्दर सहज रस के रसिया है,श्रीजु के ह्रदय मे सदैव रमण करने वाले,बसने वाले है और जो रति रस के रसिया है,वे ऐसे राधारमणा है।
जिनके दो नयन दो धार वाली कटार के समान है और जो प्रेम रस से रतनारे से हुए है,जो प्यारी के पिया प्यारै है,वे ऐसे राधारमणा है।

वपु सु-सौना अंग अंग टौना,अति मन मौहना राधारमणा!
स-रस अधरा रंग ज्यौ बदरा,श्री कौ भँवरा राधारमणा!
सु-रंग रसिया श्री उर बसिया,रति रस रसिया राधारमणा!
दृगन दु-धारै अर भयै रतनारै,प्यारी पिय प्यारै राधारमणा!

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