सोई है रास मैं नैसुक नाच कै नाच नचायौ कितौ सबकों जिन।
सोई है री रसखानि किते मनुहारिन सूँघे चितौत न हो छिन।।
तौ मैं धौं कौन मनोहर भाव बिलोकि भयौ बस हाहा करी तिन।
औसर ऐसौ मिलै न मिलै फिर लगर मोड़ो कनौड़ौ करै छिन।।।।
तौ पहिराइ गई चुरिया तिहिं को घर बादरी जाय भरै री।
वा रसखान कों ऐतौ अधीन कैं मान करै चलि जाहि परै री।।
आबन कों पुततीत हठा करैं नैंननि धारि अखंड ढरैरी।
हाथ निहारि निहारि लला मनिहारिन की मनुहारि करै री।।।।
मेरी सुनौ मति आइ अली उहाँ जौनी गली हरि गावत है।
हरि है बिलोकति प्राननि कों पुनि गाढ़ परें घर आवत है।।
उन तान की तान तनी ब्रज मैं रसखानि समान सिखावत है।
तकि पाय घरौं रपटाय नहीं वह चारो सो डारि फँदावत है।।।।
No comments:
Post a Comment