*भगवान के श्यामवर्ण होने का रहस्य*
गर्ग संहिता
वज्रनाभ ने पूछा- ब्रह्मन ! नारायण स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण तो प्रकृति से परे हैं, फिर उनका रूप श्याम कैसे हुआ ? यह मुझे विस्तारपूर्वक बताइये। विप्रवर ! आप जैसे मुनि श्रीकृष्णदेव श्रीहरि के चरित्र को जैसा मानते हैं, वैसा हम-जैसे लोग कर्म से मोहित होने के कारण नहीं जान पाते।
सूतजी कहते हैं- मुने ! वज्रनाभ का यह वचन सुनकर उनसे प्रशंसित हो, उन तत्वज्ञ तथा कृपालु मुनि ने तत्वज्ञान कराने के लिये इस प्रकार कहा।
गर्गजी बोले- राजन् ! ‘श्रृगार रस’ का रूप भरतादि मुनीश्वरों ने ‘श्याम’ बताया है। उसके देवता श्रीकृष्ण हैं। लावण्य की राशि तथा उज्ज्वल होने के कारण श्रीहरि का सुन्दर रूप उस तरह श्याम है, जैसे मेघों की घटा का रूप दूर से श्याम दिखाई देता है, जैसे नदी का जल कुण्ड विशेष में श्याम दृष्टिगोचर होता है तथा जैसे महान आकाश का रूप श्यामल प्रतीत होता है; परन्तु जल या आकाश उज्ज्वल ही है, कृष्णवर्ण कदापि नहीं है। इसी प्रकार उज्ज्वल लावण्यसिन्धु श्रीकृष्ण श्याम सुन्दर दिखायी देते हैं। जैसे उत्कृष्ट श्वेत वस्त्र में दूसरे को भावनानुसार श्याम आभा दृष्टिगोचर होती है, उसी प्रकार करोड़ों कामदेवों की लीला का आधार होने के कारण संतजन श्रीहरि का श्यामरूप बताते हैं ।
No comments:
Post a Comment