श्रीराधा जी के सुगन्धित सुशीतल चरण-कमलों का अपने वदन, लाचन तथा हृदय को स्पर्श कराके बार-बार घ्राण करते हुए कोई अनिर्वचनीय श्याम-विग्रह विराजमान है।
श्रीराधाजी के चरण कमलों से उच्छलित माधुर्य सागर के बिन्दु-समुद्र द्वारा कब मेरा प्रेमोन्मत्त हृदय श्रीवृन्दावन में लय होगा?।
श्रीवृन्दावन में अति मधुर-अद्भुत-लीलाओं में मनोरम नूपुर ध्वनियुक्त शोभित हो रहे हैं, नखमणियों की छटा से चारों दिशाओं को आलोकित करने वाली श्रीराधाजी के पदविन्यास का मैं ध्यान करता हूँ।
श्रीवृन्दावन के कुंजों में निरन्तर क्रीड़ा-परायण गौरश्यामात्मक श्रीयुगलकिशोर का मैं भजन करता हूँ वे उन्मादिमदन द्वारा अति चंचल हो रहे हैं अपनी-अपनी कला विचित्र सुरत क्रीड़ादि द्वारा एक दूसरे को विस्मयान्ति तथा मोहित कर रहे हैं, हंसा रहे हैं प्रोत्साहित और उन्मादित कर रहे हैं,।
ब्रह्मादि श्रेष्ठ देवतागण, इन्द्रादि साधारण देवता, असुर या मनुष्य अथवास योगीश्वर कोई भी भगवान की युवती रूप-माया का पार नहीं पा सकता अति क्षुद्रतर मैं भी इसी माया के चाण्डालवत् क्रूर कर्मों का आचरण कर रहा हूँ। हे श्रीवृन्दावन! कब आप मुझे स्वीकार करें तो साधुगण भी मुझे वन्दना करने लगेगें ।
विचित्र मुणिमुक्ता समूह तथा नाना मणिकांतियुक्त सुवर्ण खचित मनोहर मुरली पर धारण कर श्रीवृन्दावन में जो निरन्तर श्रीराधा जी का उज्जवल यश गान करता है, वह मनोहर श्याम-विग्रह मेरे मन अवस्थान करे।
प्रत्येक अंग की उज्ज्वल-स्वण-गौर स्निग्ध अतीव-ज्योति से दिशाओं को जो आच्छादन कर रही है, एवं श्रीवृन्दावन में रूप शोभा की शेष सीमा है वह किशोरी किसी श्याम-आत्मा की चोरी करके विराजमान है।
हाय! श्रीवृन्दावन के कुंजों में सुवर्णकमलरूप दो मुकुल (रत्न) और एकपूर्णचन्द्र (वदन) धारण करने वाली, तथा मध्येदेश में अति कृष होने से अतीव कांति प्रसारित करते हुए एक स्वर्णलतिका (श्रीराधा जी) किसी एक दिव्य-उन्मदरस श्याम तमाल (श्रीश्यामसुन्दर) को आलिंगन कर रही हैं।
कर्णिकार-कुसुम के कुण्डल धारण करने वाले तथा जिनके बिम्बाधर (गोपीगणों द्वारा) सदा चुम्बनीय हैं, जो वेणु बजा रहे हैं, सुगंध पुष्प-वेणु द्वारा जिनका श्याम शरीर अत्यन्त मनोहर शोभा दे रहा है, जिनके चूड़ा में मोर-पुच्छ शोभित है, तो उज्ज्वल तड़ित्वर्ण का पीताम्बर धारण कर रहे हैं, हे मन! उन्हीं श्रीराधा रतिलम्पट सुन्दर विग्रह (श्रीश्यामसुन्दर) का श्रीवृन्दावन में स्मरण कर।
चारों ओर महागौरकांति विस्तारकारी, प्रेमामृत रस के महा समुद्र का अति महासार-स्वरूप, श्रीवृन्दावन में अनेक कलाओं द्वारा मोहिनी (सखी) वृन्दों से सेवित, श्यामवर्ण नव युवक की चित्तचोर श्रीकिशोरी जी जय हो।
किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊँ ...
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