Friday, 3 February 2017

वृन्दावन महिमामृत शतक 9 . 2

प्रबोधानन्द सरस्वती जु कितना विनम्र वन्दन करते है न ...

श्रीराधा जी का वह कैशोर, महामोहन मधुर दशा के आश्चर्यमय वे अंग, वह आश्चर्यमय अपांगभंगी, वह मधुर लज्जायुक्त मोहन मन्द-हास्य, वह सौंदर्य, वह कांति-विस्तार, वह बहुविध अंगभंगी-तरंग-समूह एवं वह श्यामानुराग की प्रथम विकार-राशि मेरे हृदय में प्रतिभात हों।

अनन्त सौंदर्य प्रवाहमय, कनक-मणि शिला द्वारा धृष्टकुंकुम के समान गौर-कांतियुक्त मधुरतर अनन्त महाकांति समुद्र प्रति अंग से विकीरणकारिणी एवं श्यामसुन्दर के प्रेमातिशय्य रूप मधुमद के हेतु विचित्र आकृतिधारणी प्राणेश्वरी श्रीराधा की सर्वचेष्टाओं का अद्भुत माधुर्य सर्वदा मेरे मन को विस्मित किया करे।

स्म अत्युत्तम धामों के ऊपर आनन्द साम्राज्ययुक्त श्रीवृन्दावन शोभित हो रहा है, इसी स्थान पर ही सर्वाश्चर्यमय श्रीयुगलकिशोर विराजमान है, उन श्रीयुगलकिशोर को प्राण स्वरूप मानने वाली जो श्रेष्ठाभावयुक्ता श्रीललितादि सखियां हैं। उनकी आज्ञानुसारन चलते हुए जो अन्तर-स्वीय-अभीष्ट स्वरूप देह में स्फूर्तियुक्त हाकर रसकमय चेष्टावान हो सकता है, उसको नमस्कार करता हूँ।।

मधुर शब्दायमान मणि-नूपुरों से भूषित श्रीराधा जी के चरणकमलों के सौन्दर्य का निरन्तर चिन्तन करते करते इस श्रीवृन्दावन में मेरा समय व्यतीत हो।।

सुस्निग्ध कान्तिधारा, परिमल, सौन्दर्य एवं सौकुमार्य्य आदि गुणयुक्त श्रीराधा जी के उन निनादयुक्त-नूपुर-भूषित-अनुपम चरण-कमलों की मुझे स्फूर्त्ति हो।।

तलवों में अरुणता, ऊपर के भाग में गौरवर्ण एवं मधुर लास्य के द्वारा श्रीहरि के मन को चुराने वाले, श्रीराधाजी के सुन्दर चरण-कमलों को मेरा मन जपता रहे।

श्रीराधाजी के चरणकमलों की अंगुलियों के पादांगद तथा नूपुरों की रत्नमय किरणों से नख-मणिचन्द्र से उच्छलित कांति की उद्भासिता तरगों को देखने की मैं इच्छा करता हूं।।

श्रीकृष्ण-मधुकर को लुभानेवाले किन्तु लक्ष्मी को अलभ्य, ऐसे अत्यन्त सौरभ्युक्त तथा सान्द्रानन्दरसपूर्ण श्रीराधा के चरण कमलों को स्मरण करता हूँ।

अत्यन्त कोमल अंगुली रूप पल्लवयुक्त, नखचन्द्रों से भूषित, मधुर, मणिनूपुरों से मनोहर श्रीराधाजी के चरणयुगल मेरे हृदय-मन्दिर में प्रकाशित हों।।

श्रीराधाजी के चरणकमलों के नूपुरों के शब्द से मुरली के मूक (शब्द रहित) हो जाने से जब श्रीहरि बार-बार फूँकने पर भी व्यर्थ-मनोरथ हो गये, तब समस्त सखी-मण्डली हँसने लगी-यह लीला तू स्मरण कर।

हे किशोरी तेरे चरणन की रज पाऊँ ...

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