Wednesday, 14 September 2016

सहचरी भाग 8

सहचरी भाग 8 ...

इन सखियों के साथ सब रागिनियाँ मूर्तिमान होकर प्रीतिपूर्वक श्याम-श्यामा के सुहाग का गान करती रहती हैं। दिवा यामिनी एवं छहौं ऋतुएँ युगल के सामने हाथ जोड़े खड़ी रहती है और जिस समय उनकी जैसी रचि होती है उसी प्रकार यह उनको सुख देती है। इनके अतिरिक्त वृन्दावन के खग, मृग, लता, गुल्म आदि सब सहचरी-भाव धारण किये हुए युगल की सेवा में प्रवृत्त रहते हैं।
क्रमशः ...
सखियों में जितनी गोरी सखियाँ हैं वे सब प्रिया के ओर की हैं और सब सगर्वा हैं। प्रियतम के ओर की सखियाँ श्याम-वर्ण की हैं और वह सदैव दीनता धारण किये रहती हैं।

रसिकों ने सखियों को युगल के प्रेम-रस कोष की अधिकारणी बतलाया है - ‘जुगल प्रेम रस-कोष हाँ की अधिकारीजु सहेली’।

ध्रुवदास कहते हैं ‘जब प्रेम-रस सम्पूर्ण मर्यादाओं को तोड़कर बह चला और स्वयं श्यामाष्याम अपने तन मन की सुध भूल कर उसमें डूब गये तब वह भला कहाँ ठहरता ? वह सखियों के हृदय और नेत्रों में समा गया। सहचरीगण उसी का अवलम्ब लेकर रंग से भरी हुई युगल की सेवा में सदैव खड़ी रहती हैं। सखियों के भाव को चित्त में धारण करके जो सखियों की शरण ग्रहण करता है वही इस रस के स्वाद को पाता है।

मैड़ तोरि रस चल्यौ अपारा - रही न तन मन कछु संभारा।।
सो, रस कहौ कहाँ ठहरानौं - सखियनि के उर नैंन समानौं।
तिहिं अवलम्ब सबैं सहचरी - मत्त रहत ठाड़ी रंग भरी।
सखियन सरन भावा धरि आवैं - सो या रस के स्वादहिं पावै।।
जयजय श्यामाश्याम । ।

No comments:

Post a Comment