राधे राधे
बरसाना में एक अत्यंत प्रसिद्ध कृष्ण लीला स्थल है 'सांकरी खोर'। यहां प्यारे नन्हेनटखट श्याम नित्य नवीन लीला किया करतें हैं।सांकरी खोर ब्रह्मपर्वत और विष्णु पर्वत के बीच अत्यंत संकरा रास्ता है, एक बार में एक ही व्यक्ति आ जा सकता है।
गोपियाँ प्रतिदिन दही दूध की मटकी सर पर रख इस मार्ग से जाया करतीं हैं। दूसरी दिशा से नटखट कान्हा आकर उनका रास्ता रोकते हैं और बोलते हैं दान दो यानि यहां से जाने का 'दधि-कर'। गोपियाँ हैरान परेशान।एक दिन एक गोपी को पकड़ लिया, लगे दान मांगने।वो बोली -"कैसा दान,क्या ये मार्ग तुम्हारा हे? कृष्ण बोले-" नही देगी तो जाने नही दूंगा" खूब बहस हुई।मटकी फोड़ डाली।दूध दधि सब बिखेर दिया।
गोपी गई राधा के पास। सब हाल सुनाया। राधा ने कहा बस अब तो इन्हें सबक सिखाना ही होगा। सबने मिलकर योजना बनाई। विशाखा, ललिता और राधा के नेतृत्व में सेना गठित की गईं। सब छिप कर बैठ गईं। एक।गोपी का मार्ग जब फिर रोका कृष्ण ने तो बहस शुरू। कान्हा लगे छेड़छाड़ करने। चुनरी खीची,बहियाँ मरोड़ी और मटकी फोड़ दी। अब जैसा की तय था, गोपी ने सीटी बजाई और तुरन्त चहुँ ओर से गोपियों की सेना निकलकर आ गई। घेर लिया कृष्ण और सखाओं को.. ललिता ने मधुमंगल को पकड़कर पेड़ से उसकी चोटी बाँध दी।वह रोने लगा। अब कान्हा को घेरा,पकड़कर लहंगा पहना दिया। सर पे चुनरी सिंदूर, बिंदी सखी बना दिया।राधा बोली, कान पकड़कर क्षमा मांगो।मांगी क्षमा। गोपियाँ बोली, तुम्हारी शिकायत राजा कंस से करेंगी। कृष्ण गुस्से में बोले-" क्या वह तुम्हारा भरतार लगता है"
अब गोपियाँ सटपटा गई। बोली-"इस समय तो तुम भी गोपी हो" और कृष्ण गोपियों से खूब बहस करने लगे।इसी बीच उचित अवसर देख, बहस करते करते जीभ निकाल, सींग बना, गोपियों को चिड़ाते वहां से सखाओं के साथ भाग गये।
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