( रास के रसिया)
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ठाकुर जी:-करिये कृपा की कोर ,श्री वृषभानु दुलारी
राधा जी :-मोहन प्राण अधार, श्री कुंज बिहारी
ठाकुर जी:-कुंजन में रास कूं पधारो,सखी संग लेऔ
रूप की निधान अति ही सुकुमारी जी।
राधा जी :- संग में तुम्हारे ना चलुंगी मनमोहन मैं
चित्त कूं चुरावो नटखट गिरधारी जी।आयौ
ठाकुर जी:-चित्त कूं चुरावो तुम ,साहन कूं चोर कहो
नीकी रीत तुम्हारी।।करिये कृपा की कोर.….
राधा जी :- धन्य भाग मेरे अधीन त्रिभुवन पति,
देव मुनि ध्यान धरें,तोहू नहीं पायो है।
ठाकुर जी:-देव नर नाग ऋषि मुनि जाको ध्यान धरें
नेक छाछ काज ब्रज गोपिन नचायो है।
तेरे हित बैकुंठ छोड़ के, खाऊं ब्रज की गारी
करिये कृपा की कोर...........
राधा जी :-छोड़ के बैकुंठ कहा तुमने एहसान कियो
प्रेम की विचित्र गति कापे कहि जात है
चन्दा पे चकोर और दीप पे पतंग जैसे
जल बिन मीन कहौ काहे अकुलात है।
प्रेम कहा जानों तुम ग्वारिया गमार कान्ह
जाने हम ब्रजनारी।
मोहन प्राण अधार,श्री कुंज बिहारी।।
ठाकुर जी:-मैं तो हूं गमार,तुम चतुर सयानी सब
कैसे हूं निभावो आयौ शरण तुम्हारी जी।
जन्म जन्म रिणिया कहाऊं मैं किशोरी जू को
प्रेम दान दे़ओ द्वार आयौ मैं भिखारी जी।।
मन में विचार देखो,काहे ऐसी बात करो
एक प्राण दो देह हमारी जी!
करिये कृपा की कोर, श्री वृषभानु दुलारी
Thursday, 5 October 2017
रास के रसिया
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