Saturday, 1 July 2017

लावण्य

*लावण्य* मुक्ताओ (मोती) के भीतर से जिस प्रकार स्वाभाविक रूप से निर्मल कान्ति बहार प्रकाशित होती है उसी प्रकार अंग प्रत्यंगों से अतिस्वछ्ता पूर्वक स्वाभाविक प्रति क्षण उदीयमान कान्ति को लावण्य कहते है

श्री राधिका के साथ विहार करते करते श्रीकृष्ण श्रीमती राधिका के अंग लावण्य का वर्णन करते हुऐ कहते है हे राधे ऐसा प्रतीत होता है जैसे विधाता ने जगत की सारी विमल कान्ति को संग्रह कर तुम्हारे अंगों की रचना की है क्योंकि हे मृग नयने तुम्हारे अंग प्रयतङ्ग से निसृत किरणों द्वारा मणिमय दर्पण भी धिककृत हो रहा है

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