Thursday, 20 July 2017

यावदाश्रय वृत्ति

*यवादाश्रय वृति*
श्री राधा रानी अनुराग की सर्वश्रेष्ठ आश्रय है और कृष्ण अनुराग के सर्वश्रेठ विषय उनका अनुराग ही स्थायी भाव है वही अनुराग अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर यावदाश्रय वृति कहलाता है अर्थात महाभाव

श्री गिरिराज के किसी कुंज में परस्पर के माधुर्य आस्वादन में निमग्न ओर उदीप्त भावो से अ अलंकृत श्री राधा माधव की माधुरी का अनुमोदन कर वृंदा कृष्ण से कह रही है
है शैल कुंजो में विहार करने बाले गजराज  शृंगार रूपी शिल्पी ने भावरूप अग्निताप द्वारा श्री राधा और तुम्हारे चित्तरूप लाक्षा को द्रवीभूत कर दिया है धीरे धीरे तुम्हारे परस्पर के भेदभ्रम को दूर कर दिया है अर्थात भेद रहित करदिया है

महाभाव श्रेठ अमृत के समान स्वरूप संपति धारण कर चित को  अपना स्वरूप प्राप्त करता है

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