देह कान्तय हय तिहों अकृष्ण वरण।
अकृष्ण वर्ण, कहे पीत वरण।।
जिनकी जिह्वा पर कृष्ण ये दो वर्ण सदैव उच्चारित होते रहते है,अथवा जो सर्वदा कृष्ण के नाम,रूप,गुण तथा लीलाओं का वर्णन करते रहते है, वे आकृष्ण वर्ण है।जिनकी अंगक्रानति अकृष्ण पीत वर्ण है,वे त्विषा अकृष्ण हैं। ये दोनों लक्षण श्री चैतन्य महाप्रभु में लक्षित होता हैं।
No comments:
Post a Comment