Monday, 24 July 2017

प्रेमाम्भोज-मकरन्द में आया है , किशोरी श्रृंगार

*प्रेमाम्भोज-मकरन्द’ में आया है*

कि ‘श्रीकृष्णस्नेह’ ही श्रीमती राधा के अंग का सुगन्धित उबटन है,
इस उबटन को लेकर वे तीन काल स्नान करती हैं।

उनके सर्वप्रथम- पूर्वाह्ण-स्नान का जल है- ‘कारुण्यामृत’ अर्थात् प्रथम कैशोरावस्था ,

मध्यम- मध्याह्न-स्नान का जल हैैं- ‘तारुण्यामृत’ या व्यक्त यौवन और अपराह्न-स्नान का जल है

‘लावण्यामृत’ यानी पूर्ण यौवन। कायिक गुणों में जो वयस् रूप और लावण्य हैैं- वही श्रीमती का त्रिविध स्नान-जल है।

‘लज्जा’ रूपी नील श्याम रेशमी साड़ी उनका अधोवस्त्र है।

कृष्णानुराग’ उनका अरुण उपवस्त्र- ओढ़नी है।

‘अंग-सौन्दर्य’ ही केशर है,

‘अभिरूपतारूपी सखियों का प्रणय ’ चन्दन है।

‘माधुर्यमती स्मितकान्ति’ कर्पूर है।

केसर, चन्दन और कर्पूर- इन तीन वस्तुओं का श्रीराधिका के अंग पर विलेपन हो रहा है अर्थात् सौन्दर्य, अभिरूपता और माधुर्य से वे नित्य विभूषित हैं।

‘श्रीकृष्ण का उज्ज्वल रस’ ही उनके अंगों पर लगी हुई कस्तूरी है।

उनका ‘प्रच्छन्न मान और वाम-भाव’ ही मस्तक का जूड़ा है।

Thursday, 20 July 2017

गिर्राज लीला , गौड़ीय रस भाव

यह बात बरसाने की है

जब से श्री गिरिराज कन्हैया ने उठाया अपने नख पर तब से सारा ब्रज कनुआ महाराज करने लगा यह लीला रास है
आनंद लेना प्रेम का
यही मंजरी रस ह सारा ब्रज चौरासी कनुआ कनुआ महाराज करने लगा
कन्हैया के गवालबाल  तो कन्हैया महाराज करते बरसाने की गोपी को चिढ़ाने लगे
अब यह तो किसी को बताया नहि के
बाँए हाथ के नख से उठाया है
और बायाँ हाथ राधा रानी का है
क्यूँकि " वामंगसर्वभूत" बाँए अंग से रूप बनाया राधा रानी न यह सब बरसाने की मंजरी को पता लगा तो बोली ऐसे कैसे महाराज बन गए
उठाया हमारी स्वामिनी ने
स्वयं बोला था ना सबके सामने
" कचु माखन से बल बड़ा कचु गवालान दिए सहाय
श्री राधारानी की कृपा ते मैंने गिरिवर लियो उठाय

उठाया राधारानी ने
और नाम स्वयं को धरा लियो
महाराज मंजरियों ने एक सभा बुलायी बोली हम सब मिलकर ललिताजी के पास जाएँगी और अपनी स्वामिनीजी को महारानी बनाएँगी अब यह तो प्रेम लीला है
ना तो यह राधारानी को पता है
कौन महाराज कौन महारानी
और
ना
गोपाल को

मंजरिया दोनो को मिलवाना चाहती है

सारी ललिताजी के पास गयी ललिता जी मुस्कुरा के बोली
" यह तो नंदगाँव के गवालान को काम ही यह है "
चलो हम सब ब्रज की आदरणीय देवी
पूर्णमासी देवी पर चलते है
सारी ललिताजी के पास गयी ललिता जी मुस्कुरा के बोली
" यह तो नंदगाँव के गवालान को काम ही यह है "
चलो हम सब ब्रज की आदरणीय देवी
पूर्णमासी देवी पर चलते है
पूर्णमांसी देवी ब्रज की वृद्घ और हर वस्तु मुहूर्त की जानकारी रखती है
पुरोहित जान लो
सब गयी और बोली
हमको किसी भी तरह राधारानी को महारानी बनाना है
नंदगाँव के गवालजन अपने कन्हैया  को महाराज कहता फिरते है
पूर्णमासी बोली
मंजरियों घबरायो मत
आओ हम सब वृंदावन में " इमलीतला" वृक्ष के नीचे स्वामिनी का अभिषेक कर उन्हें स्वामिनी महारानी घोषित करते है
जैसे कन्हैया के गवाल बालों ने कन्हैया का अभिषेक कर गिरिराज उठाने के बाद गोविंद कुंड बनाया
हम भी ऐसा ही करते ह याद रखना
ना यह बात स्वामिनी जाने
और
ना श्यामसुंदर अब वो दिन आ गया राधारानी का अभिषेक शुरू हो गया इमलीतला मे सारी मंजरिया " तीर्थों का जल भर स्वामिनी का अभिषेक करने आ गयी
कितना मधु
कितना घृत
कितना दही
कितना दूध
कितना गंगाजल
स्वामिनी पर प्रेम पूर्वक उड़ेले जाने लगा
ं अब स्वामिनी का अभिषेक हो कन्हैया ना आए
ऐसा हो सकता है
कन्हैया घूमते घूमते वृंदावन में भीड़ देखी तो पूछे मधुमंगल
भाई यह भीड़ कैसो ह
मधुमंगल बोला
ओह कन्हैया
तू नाँय जाने
तू महाराज बन गया ना तब ते यह सब उत्सव कर रहे होंगे
कन्हैया और राधारानी का हृदय एक है ना
और गवाल और सखियाँ भी सब मिली हुई है
युगल को मिलाने के लिए यह उत्सव मेरो महाराज बनने की ख़ुशी में नहि
किसी को महारानी बनाने की ख़ुशी में हो रहो ह क्यूँकि जब स्वामिनिजी पर दूध दही पंचगव्या उँडेला जा रहा था तब उनके अंगों के ख़ुशबू से श्यामसुंदर का रोम रोम पुलकित हो रहा था

तो पहचान गया
भाव को आपका महाराज मधुमंगल बोला
लाला मोको तो जे बरसाने की गोपिन्न दीखे
तू मान लाला यहाँ ते निकल ल कन्हैया बोला
अरे मधुमंगल एक और तुम मोको राजा कहो
महाराजा कहो
और एक और डरो

अब देखने दो इस महाराज के राज में उसकी प्रजा क्या कर रही है मधुमंगल जब तक तू मेरे साथ है
मेरा मंगल ही मंगल है

मधुमंगल ने जब द्वार पर ललिताजी को डंडा लिए देखा तो बोला
लाला आज मधुमंगल को ही मंगल नाँय है
तो तेरो कैसो होगो
देख द्वार पर
ललिता खड़ी है डंडा लिए अब श्यामसुंदर तो स्वामिनीजी के प्रेम रस
अभिषेक दर्शन को लालियत थे उन्हें ललिता आदि कुछ नहि दिखता श्यामसुंदर पहुँच गए
ललिता जी से बोले

" ओह मेरी कोमलाँगि ललिताजी आज आप यहाँ
बोलो मैं आपकी क्या सेवा कर सकता ह ललिताजी बोली
महाराज आप यहाँ आए हो
हमें बुला लिया होता

कन्हैया थोड़े " झहप से गए और बोले अरि दयमयी ललिता अंदर क्या हो रहा है
अब कन्हैया की नैन तो अंदर लगे हुए है और बात ललिता जी से कर रहा है
ललिताजी बोली
देखो कन्हैया
जो तेरे गवालबाल ने तेरे को महाराज बनाय दियों ना बस बहुत हो चुका
हमारी स्वामिनी महारानी है समझा कन्हैया " टेडी सी हँसीं कर बोला"
हाँ हाँ वो ही महारानी है
अब बता अंदर क्या चल रहा ह ललिता जी बोली
" अंदर हमारी स्वामिनी का अभिषेक चल रहा है महारानी बनाने का
बस यह सुन कर
श्यामसुंदर जैसे अंदर जाने को आतुर होने लगे उनका रोम रोम प्रफुलित हो गया जो उन्होंने अपने पीताम्बर से छिपा लिया श्यामसुंदर बोले
ललिता जी आप तो दया की मूर्ति हो
स्वामिनी का प्राण हो
अरे आपके बिना तो सारा ब्रज सूना है
आप ब्रज की प्रधान गोपी हो

यह सब बोलते बोलते कान्हा नज़र अंदर ही रखे हुए था ललिता जी मुस्कुरायी और बोली
ओह ब्रज के अतिसुंदर गवाले
तू मुझसे क्या चाहता है ( भोए चढ़ा कर बोली ) बस इस भक्त को आपकी महारानी का अभिषेक दर्शन
मैं यह गवालान आदि पर भरोसा नाहीं करता
ये तो ऐसे ही मेरो नाम चड़ाते रहते है
प्रेम करते है ना ललिता मुझसे इसलिए परंतु असली महारानी तो
राधारानी ह श्याम बोले
ललिता देख पूरे ब्रज में दो वस्तु ही अधिक प्रसिध्द है
एक मेरो मुरली
दूसरा तेरो डंडा
दोनो ही बाँस के है

सच बोलू मैं ललिता जी
पर अभिषेक दर्शन तो तू कर लेगो
भेंट के देगो दारी क श्यामसुंदर सोचे भेंट तो लायो ना
और
यह बिना भेंट के अंदर जाने नहि देगी
अब मधुमंगल भी भाग गया
क्या करूँ अपना कर अपने कपोलों पर रख सोचने लगा पर नैन अंदर गड़ा रखे थे
अंदर से ध्वनि हुई
राधारानी महारानी के जय कन्हैया ने सोचा अब देर नाहे करनी
भले ही कुछ हो जाए अभिषेक दर्शन तो करूँ अपनी महारानी का कन्हैया ने सोचा अब देर नाहे करनी
भले ही कुछ हो जाए अभिषेक दर्शन तो करूँ अपनी महारानी का तभी कन्हैया ने अपनी " मुट्ठी बना ली और बोला देख ललिता मेरे हाथ में भेंट है
इतनी बड़ी भेंट के मुट्ठी बंद करनी पड़ी ललिता जी बोली
कन्हैया छल नाहे करियों हम बरसाने वारी है
कन्हैया बोला अरे नहि ललिताजी आपसे क्या छल
आपके डाँट मार से हम वाक़िफ़ नहि है क्या
बस छल लिया
और चल दिया
गोपाल ललिता जी हाथ पकड़ अंदर ले गयी
कन्हैया मुट्ठी बनाय रखो ताकि भेंट लगे हाथ मे अंदर जैसो गया
इतना सुंदर मनमोहक ख़ुशबू के श्याम मूर्च्छित होने लगा
ललिता जी ने सम्भाला ं ललिताजी बोली पहले भेंट दिखा
कन्हैया बोले
( गर्दन मटकाते हुए)
देख ललिता जिसका दर्शन करना है
उसे भेंट दे दूँगा
आपको क्यूँ दिखाऊ ललिताजी बोली
चल ग़ुस्सा नाँय हो
आ कराऊ दर्शन ँ जैसे ही अंदर प्रवेश किया
इमली के पेड़ के नीचे
स्वामिनिजी सफ़ेद चमकना वस्त्र पहने सिद्धआसन में बैठ
दोनो नेत्रो को अपने भूमि पर टिकाय
दोनो हाथो को गोद में एक दूसरे पर रख विराजमान थी श्यामसुंदर के चरणो की आहट से स्वामिनी का ध्यान भंग हुआ और उनके अंग पर लगे चंदन के सूँगंद से स्वामिनीजी का रोम रोम पुलकित हुआ और अष्ट सात्विक भाव आ गए स्वामिनीजी ने श्याम को देखा
श्याम ने स्वामिनी को
बस अविरल अश्रुधारा बह चली अब मंजरिया सब भूल गयी कौन महाराज कौन महारानी सब उस दृश्य में चित्रलिखित के भाँति पड़ गए
शांति ही शांति
बस अश्रुओ के गिरने की आहट एक पल
एक युग लगा मानो
मानो दोनो एक दूसरे से परस्पर एकांत मिलन चाह सेवा प्रदान करना चाहते ह स्वामिनीजी जैसे मन से कह रही हो
" अब आएँ हो श्यामसुंदर, मैं कब से बैठी थी
अरे मेरा अभिषेक तो आपने अपने प्रेमाश्रु से कर दिया ै अब चलो गलबाँहि डाल श्यामसुंदर मन से बोले
स्वामिनी, मुझे शमा कर दो
मेरा प्राण प्राण आपका अभिषेक करना चाहता है े बस एक पल में दोनो भाव की महासमाधि में चले गए और कुछ याद नही ललिताजी ने लीला रस के आनंद में, कन्हैया को हाथ मारा और बोली
कर लिया दर्शन
चल अब दे भेंट ं कन्हैया तो स्तम्भ था
जैसे ही हाथ पड़ा
बोला
हाँ हाँ दूँगा भेंट
स्वामिनी को दूँगा अपने हाथो स कन्हैया पास आकर बैठ गया
ललिता जी " बोली स्वामिनी हाथ आगे बड़ायो कन्हैया कुछ भेंट देंगे े
स्वामिनीजी ने अपने अति कोमल छोटे से हाथ जब निकाले
स्वामिनी बोली
ललिता
क्या देंगे श्याम मुझे
मुझे जो चाइए वो मिल गया ( प्रेमाश्रु) ललिता जी ( मंजरीओ के और आँख मिचकाकर) बोली
आप बड़ी भोली है
यह दर्शन कर गया
भेंट तो देगा भौए चढ़ाकर बोली " आख़िर महाराज ह स्वामिनी ने हाथ बाहर निकाले
अब श्याम मुश्किल में
कुछ था नहीं उनके पास तभी अपना हाथ अपने नैनो में लगे काजल को पोछा
जैसे रो रहा हो और हाथ काजल से पोंछ कर
स्वामिनी Ke हाथ में अपना हाथ रख कुछ लिखने लगा ललिता ने ज़ोर से हुंकार मार बोली
यह क्या भेंट है
क्या लिख रहा ह, स्वामिनीजी बोली
ललिताजी जब लिख लेगा तो देख लेना
मेरा श्याम कुछ अनमोल भेंट हे देगा तभी श्याम ने अपने काजल से स्वामिनी के हाथ लिख दिया और स्वामिनी ने मुट्ठी बंद कर ली ललिता जी बोली
दिखाओ क्या लिखा महाराज न स्वामिनी ने अपना
" लाल रंजित मेहंदी युक्त हाथ दिखाया तो उस पर क्या लिखा था ???? े " हे स्वामिनी आज से सारा ब्रज चौरासी मैंने आपके नाम कर दिया "
आप महारानी हुई जानते हो कौन से हाथ पर लिखा
उसी बाँए हाथ पर जिस बाय हाथ से गिरिराज उठा महाराज नाम पाया था तो स्वामिनी ने बाँह हाथ से गिरिराज उठवाया
और उसी के बाय हाथ पर लिख
ब्रज चौरासी नाम कर दियों

स्वाधीनभतृका भाव , गौड़ीय रहस्य

एक महान रहस्य

सबसे उज्जवल रस है
माधुर्य रस (श्रृंगाररस)

उसमे भी सबसे उन्नत है स्वाधीनभर्तीका भाव
और स्वाधीनभर्तीका भाव में भी सबसे उज्जवल है मोदन महाभाव यही सर्वभाव सम्पति विशिष्ट है यह ही अहलादिनीशक्ति श्री राधिका का सर्वश्रेठ ओर अतिशय प्रियविलाश स्वरूप है

यावदाश्रय वृत्ति

*यवादाश्रय वृति*
श्री राधा रानी अनुराग की सर्वश्रेष्ठ आश्रय है और कृष्ण अनुराग के सर्वश्रेठ विषय उनका अनुराग ही स्थायी भाव है वही अनुराग अपनी चरम सीमा पर पहुँच कर यावदाश्रय वृति कहलाता है अर्थात महाभाव

श्री गिरिराज के किसी कुंज में परस्पर के माधुर्य आस्वादन में निमग्न ओर उदीप्त भावो से अ अलंकृत श्री राधा माधव की माधुरी का अनुमोदन कर वृंदा कृष्ण से कह रही है
है शैल कुंजो में विहार करने बाले गजराज  शृंगार रूपी शिल्पी ने भावरूप अग्निताप द्वारा श्री राधा और तुम्हारे चित्तरूप लाक्षा को द्रवीभूत कर दिया है धीरे धीरे तुम्हारे परस्पर के भेदभ्रम को दूर कर दिया है अर्थात भेद रहित करदिया है

महाभाव श्रेठ अमृत के समान स्वरूप संपति धारण कर चित को  अपना स्वरूप प्राप्त करता है

Monday, 10 July 2017

श्री हरिदास नामावली

:: श्रीहरिदास नामावली ::

जिते स्वाँस नासा चलैं, तिते जपैं हरिदास ।
तन मन प्राननि यौं मिलै, ज्यौं फूलनि में बास ॥

श्रीहरिदास गाऊँ श्रीहरिदास गाऊँ ।
श्रीहरिदास गाइ गाइ विपुल प्रेम पाऊँ ॥१॥
श्रीहरिदास नाम गुन रूप तन राऊँ ।
श्रीहरिदास प्राननि के प्रानहिं जिवाऊँ ॥२॥
श्रीहरिदास लैना श्रीहरिदास दैना ।
श्रीहरिदास भजैं भैया कछु भैना ॥३॥
श्रीहरिदास द्यौसौ श्रीहरिदास रात्यौ ।
श्रीहरिदास व्यौहार श्रीहरिदास बात्यौ ॥४॥
श्रीहरिदास बल बुद्धि कुल जाति पाँति ।
श्रीहरिदास भेंटत सीतल भई छाती ॥५॥
श्रीहरिदास अंग बिनु संग तजि साँतौ ।
श्रीहरिदास हिलगि बिनु हेत करि हाँतौ ॥६॥
श्रीहरिदास प्रेम बिनु नेम न सुहातौ ।
श्रीहरिदास हित बोलत मिलत महल कौ नातौ ॥७॥
श्रीहरिदास नाम रूचि श्रीहरिदास नाम सुचि ।
श्रीहरिदास नाम लियैं जाहिं दुख दोष मुचि ॥८॥
श्रीहरिदास कर्मैं श्रीहरिदास धर्मैं ।
श्रीहरिदास नाम बेधि लै मन मर्मैं ॥९॥
श्रीहरिदास ग्यानैं श्रीहरिदास ध्यानैं ।
श्रीहरिदास नाम करि कोटि अस्नानैं ॥१०॥
श्रीहरिदास नाम मेरे मंत्र माला ।
श्रीहरिदास नाम मुद्रा तिलक भाला ॥११॥
श्रीहरिदास सेवा श्रीहरिदास पूजा ।
श्रीहरिदास भजन बिनु भाव नहिं दूजा ॥१२॥
श्रीहरिदास भक्ति रति श्रीहरिदास परम गति ।
श्रीहरिदास जस गावत भई सुदृढ़ मति ॥१३॥
श्रीहरिदास ब्रजरीति श्रीहरिदास रसरीति ।
श्रीहरिदास नाम लियैं सकल साधन जीति ॥१४॥
श्रीहरिदास निज दरस श्रीहरिदास रस परस ।
श्रीहरिदास सुख देत श्रीहरिदास हित हेत ॥१५॥
अनन्य नृपति श्रीस्वामी हरिदास निज दास |
श्रीवरबिहारिनिदास बिलसत विलास ॥१६॥

जय जय कुंजबिहारी श्रीहरिदास !!
जय जय श्री वृन्दावन निधिवन वास !!
जय जय विठल विपुल बिहारिनि दास !!

जय श्रीराधे !!

Saturday, 1 July 2017

सखी श्री रँगदेवी जी , अष्ट सखी महामाधुरी

💐

राधे राधे..

*'ब्रजभाव माधुर्य'*
खंड : श्री अष्टमहासखी माधुरी

*'महासखी श्री रँगदेवी जी'*

जगद्गुरुत्तम् श्री कृपालु महाप्रभु जी ने अपनी *'प्रेम रस मदिरा'* ग्रन्थ की *'महासखी माधुरी'* के चौथे पद में *श्री रँगदेवी जी* के संबंध में वर्णन किया है :

रंगदेवी सखियन सरनाम ।
पुंडरीक-किंजल्क बरन तनु, लखि लाजत शत काम ।
पहिरे वसन जपा कुसुमन रँग, सोहति अति अभिराम ।
विविध भाँति भूषण पहिरावति, नित प्रति श्यामा-श्याम ।
परम चतुर श्रृंगार-कला महँ, नहिं पटतर कोउ बाम ।
रहति *'कृपालु'* निकुंजविहारिणि, संगहिँ आठों याम ।।

*(प्रेम रस मदिरा, महासखी माधुरी, पद 4)*

इसके सरलार्थ से निम्न बातें ज्ञात होती हैं :

(1) रंगदेवी सखी समस्त सखियों में प्रख्यात सखी हैं.

(2) इनके शरीर का रँग कमल के केशर के समान है एवं इनकी रुपमाधुरी से सैकड़ों कामदेव लज्जित होते हैं.

(3) यह इन्द्रवधूटी (लाल रंग का बरसाती कीड़ा) के रंग के अत्यंत ही सुन्दर कपडे पहनती हैं.

(4) नित्यप्रति श्री श्यामा-श्याम को अनेक प्रकार के गहने पहनाती हैं, एवं श्रृंगार करने की कला में इनकी समानता की चतुर गोपी और कोई नहीं है.

(5) यहाँ सदा ही किशोरी जी के साथ रहती हैं.

इसके अलावा इनके संबंध में अन्य कुछ जानकारियाँ इस प्रकार हैं _(Ref. 'महाभागा ब्रजदेवियाँ' ;श्रीराधाबाबा विरचित, श्रीश्रीराधाकृष्णगणोद्येशदीपिका)_

(1) इनकी माता का नाम करुणा तथा इनके पिता का नाम आराम है.

(2) इनके कुञ्ज का रंग श्याम रंग का है.

(3) निकुञ्ज में इनकी आयु सदा 14 वर्ष, 2 महीने और 8 दिन की रहती है.

(4) इनकी सेवा अलक्तक लगाने की है, गोष्ठलीला में श्री राधाकिशोरी के अलक्तक राग की सेवा नापित कन्यायें करती हैं पर निकुञ्ज में यह सेवा रँगदेवी जी के ही अधिकार में है.

(5) इनकी प्रधान सहायिकायें हैं : मंगलामंजरी, कुंदमंजरी एवं मदनमंजरी.

(6) इनकी 8 प्रमुख सखियाँ हैं : कलकंठी, शशिकला, कमला, मधुरा, इंदिरा, कंदर्पसुंदरी, कामलतिका एवं प्रेममंजरी.

(7) संकेत वाक्यों के नाना रूपों को छलपूर्वक प्रस्तुत करने वाली हैं. श्रीकृष्ण के समक्ष ही श्रीराधा के साथ हास-परिहास तथा नर्म कौतूहल करने में उत्सुकता प्रकाशित करती हैं.

(8) धूप खेने वाली सखियाँ, शिशिर में अग्नि रक्षण करने वाली तथा ग्रीष्म में विजन की सेवा करने वाली सखियाँ-दासियाँ इनके आदेश से काम करती हैं.

(9) बेल-बूटेदार अंगराग तथा गंधकयुक्त वस्तुओं को लगाने जैसे दायित्वपूर्ण सेवा को प्राप्त करने वाली कलकंठी आदि अष्टसखियों की ये अध्यक्ष हैं.

(10) पिता में धर्म-पालन की बड़ी निष्ठा है. इनमें भी स्त्रियोचित व्रत त्यौहार के प्रति बड़ी आस्था है.

(11) शेष बातों में महासखी श्री चम्पकलता के ही समान हैं.

*# ब्रजभाव माधुर्य*
# सुश्री गोपिकेश्वरी देवी जी
# श्री कृपालु भक्तिधारा प्रचार समिति

लावण्य

*लावण्य* मुक्ताओ (मोती) के भीतर से जिस प्रकार स्वाभाविक रूप से निर्मल कान्ति बहार प्रकाशित होती है उसी प्रकार अंग प्रत्यंगों से अतिस्वछ्ता पूर्वक स्वाभाविक प्रति क्षण उदीयमान कान्ति को लावण्य कहते है

श्री राधिका के साथ विहार करते करते श्रीकृष्ण श्रीमती राधिका के अंग लावण्य का वर्णन करते हुऐ कहते है हे राधे ऐसा प्रतीत होता है जैसे विधाता ने जगत की सारी विमल कान्ति को संग्रह कर तुम्हारे अंगों की रचना की है क्योंकि हे मृग नयने तुम्हारे अंग प्रयतङ्ग से निसृत किरणों द्वारा मणिमय दर्पण भी धिककृत हो रहा है