Monday, 29 May 2017

अष्टादश सिद्धान्त के पद

अष्टादश सिद्धांत के पद
अनन्य रसिक शिरोमणि स्वामी श्रीहरिदासजी कृत🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
अष्टादश सिद्धान्त के पदज्यौंही-ज्यौंही तुम राखत हौ, त्यौंही-त्यौंही रहियत हौं, हो हरि।और तौ अचरचे पाँय धरौं सो तौ कहौ, कौन के पैंड़ भरि?जद्यपि कियौ चाहौ, अपनौ मनभायौ, सो तौ क्यों करि सकौं, जो तुम राखौ पकरि।कहिं श्रीहरिदास पिंजरा के जानवर ज्यौं, तरफ़राय रह्यौ उड़िबे कौं कितौऊ करि॥1॥
🎄🎄🎄🎄 [राग विभास]🎄🎄🎄🎄🎄🎄🎄
काहू कौ बस नाहिं, तुम्हारी कृपा तें सब होय बिहारी-बिहारिनि।और मिथ्या प्रपंच, काहे कौं भाषियै, सु तौ है हारिनि॥जाहि तुमसौं हित, तासौं तुम हित करौ, सब सुख कारनि।श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी, प्रानन के आधारनि॥2॥
🐋🐋🐋🐋[राग विभास]🐋🐋🐋🐋🐋
कबहूँ-कबहूँ मन इत-उत जात, यातैंब कौन अधिक सुख।बहुत भाँतिन घत आनि राख्यौ, नाहिं तौ पावतौ दुख॥कोटि काम लावन्य बिहारी, ताके मुहांचुहीं सब सुख लियैं रहत रुख।श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी कौ दिन देखत रहौं विचित्र मुख॥3॥
🐓🐓🐓🐓🐓🐓[राग विभास]🐓🐓🐓🐓🐓
हरि भज हरि भज, छाँड़ि न मान नर-तन कौ।
मत बंछै मत बंछै रे, तिल-तिल धन कौ॥
अनमाँग्यौं आगै आवैगौ, ज्यौं पल लागै पल कौं।
कहिं श्रीहरिदास मीचुज्यौंआवैंत्यौंधन हैआपुन कौं॥4॥ 🐠🐠🐠🐠🐠[राग विभास]🐠🐠🐠🐠🐠🐠
ए हरि, मो-सौ न बिगारन कौ, तो-सौ न सँवारन कौ, मोहिं-तोहिं परी होड़।कौन धौं जीतै, कौन धौं हारै, पर बदी न छोड़॥तुम्हारी माया बाजी विचित्र पसारी, मोहे सुर मुनि, का के भूले कोड़।कहिं श्रीहरिदास हम जीते, हारे तुम, तऊ न तोड़॥5॥
🌹🌹🌹🌹🌹[राग बिलावल]🌹🌹🌹🌹🌹
बंदे, अखत्यार भला।
चित न डुलाव, आव समाधि-भीतर, न होहु अगला॥
न फ़िर दर-दर पिदर-दर, न होहु अँधलाकहिंश्रीहरिदास करता किया सो हुआ, सुमेर अचल चला॥6॥
🌳🌳🌳🌳🌳[राग आसावरी]🌳🌳🌳🌳🌳
हित तौ कीजै कमलनैन सौं, जा हित के आगैं और हित लागै फ़ीकौ।कै हित कीजै साधु-संगति सौं, ज्यौं कलमष जाय सब जी कौ॥हरि कौ हित ऐसौ, जैसौ रंग मजीठ, संसार हित रंग कसूँभ दिन दुती कौ।कहिं श्रीहरिदास हित कीजै श्रीबिहारीजू सौं, और निबाहु जानि जी कौ॥7॥
🍁🍁🍁🍁🍁[राग आसावरी]🍁🍁🍁🍁🍁
तिनका ज्यौं बयार के बस।
ज्यौं चाहै त्यौं उड़ाय लै डारै, अपने रस॥
ब्रह्मलोक, सिवलोक और लोक अस।
कहिं श्रीहरिदास बिचारि देखौ, बिना बिहारी नाहिं जस॥8॥
🌴🌴🌴🌴🌴 [ राग आसावरी]🌴🌴🌴🌴🌴
संसार समुद्र, मनुष्य-मीन-नक्र-मगर, और जीव बहु बंदसि।मन बयार प्रेरे, स्नेह फ़ंद फ़ंदसि॥लोभ पिंजर, लोभी मरजिया, पदारथ चार खंद खंदसि।कहिं श्रीहरिदास तेई जीव पार भए, जे गहि रहे चरन आनंद-नंदसि॥9॥
🌿🌿🌿🌿🌿[राग आसावरी]🌿🌿🌿🌿🌿
हरि के नाम कौ आलस कत करत है रे, काल फ़िरत सर साँधे।बेर-कुबेर कछु नहिं जानत, चढ़्यौ रहत है कांधैं॥हीरा बहुत जवाहर संचे, कहा भयौ हस्ती दर बाँधैं।कहिं श्रीहरिदास महल में बनिता बनि ठाढ़ी भई, एकौ न चलत, जब आवत अंत की आँधैं॥10॥
🌷🌷🌷🌷🌷[राग आसावरी]🌷🌷🌷🌷🌷
देखौ इन लोगन की लावनि।
बूझत नाँहिं हरि चरन-कमल कौं, मिथ्या जनम गँवावनि॥जब जमदूत आइ घेरत, तब करत आप मन-भावनि।कहिं श्रीहरिदास तबहिं चिरजीवौ, जब कुंजबिहारी चितावनि॥11॥
🍀☘🍀🍀🍀[राग आसावरी]🍀☘🍀🍀🍀🍀
मन लगाय प्रीति कीजै, कर करवा सौं ब्रज-बीथिन दीजै सोहनी।वृन्दावन सौं, बन-उपवन सौं, गुंज-माल हाथ पोहनी॥गो गो-सुतन सौं, मृगी मृग-सुतन सौं, और तन नैंकु न जोहनी।श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा-कुंजबिहारी सौं चित, ज्यौं सिर पर दोहनी॥12॥
🌹🌹🌹🌹🌹[राग आसावरी]🌹🌹🌹🌹🌹
हरि कौ ऐसौई सब खेल।मृग तृष्ना जग व्यापि रह्यौ है, कहूं बिजौरौ न बेल।धन-मद, जोवन-मद, राज-मद, ज्यौं पंछिन में डेल।कहिं श्रीहरिदास यहै जिय जानौ, तीरथ कौसौ मेल॥13॥
🌼🌼🌼🌼🌼 [राग कल्यान]🌼🌼🌼🌼🌼
झूँठी बात सांची करि-दिखावत हौ हरि नागर।
निस-दिन बुनत-उधेरत जात, प्रपंच कौ सागर॥
ठाठ बनाइ धरयौ मिहरी कौ, है पुरुष तैं आगर।सुनि श्रीहरिदास यहै जिय जानौ, सपने कौ सौ जागर॥14॥
🐿🐿🐿🐿🐿[राग कल्यान]🐿🐿🐿🐿🐿🐿
जगत प्रीति करि देखी, नाहिंनें गटी कौ कोऊ।
छत्रपति रंक लौं देखे, प्रकृति-विरोध बन्यौ नहीं कोऊ॥
दिन जो गये बहुत जनमनि के, ऐसैं जाउ जिन कोऊ।
कहिं श्रीहरिदास मीत भले पाये बिहारी, ऐसे पावौ सब कोऊ॥15॥
🐾🐾🐾🐾🐾 [राग कल्यान]🐾🐾🐾🐾🐾
लोग तौ भूलैं भलैं भूलैं, तुम जिनि भूलौ मालाधारी।
अपुनौ पति छँड़ि औरन सौं रति, ज्यों दारनि में दारी॥
स्याम कहत ते जीव मोते बिमुख भये, सोऊ कौन जिन दूसरी करि डारी।कहिं श्रीहरिदास जज्ञ-देवता-पितरन कों श्रद्धा भारी॥16॥
🔥🔥🔥🔥🔥🔥[राग कल्यान]🔥🔥🔥🔥🔥
जौलौं जीवै तौलौं हरि भज रे मन और बात सब बादि।
द्यौस चार के हला-भला में कहा लेइगौ लादि?
माया-मद, गुन-मद, जोवन-मद भूल्यौ नगर विवादि।
कहिं श्रीहरिदास लोभ चरपट भयौ, काहे की लगै फ़िरादि॥17॥
🌙🌞🌙🌞🌙🌞[राग कल्यान]🌞🌙🌞🌙🌞
प्रेम-समुद्र रूप-रस गहरे, कैसैं लागैं घाट।
बेकारयौं दै जान कहाव जान परे की
कहां परि बात ।काहूं को लर सूधोन परत मारता गाल गली गल हाट कहां श्री हरिदास बलिहारी तकत ओट पाट!!१८!🌷

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