Monday, 1 May 2017

तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया तेरी

*तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया तेरी !!*

एक बार ग्रीष्म ऋतु में श्यामसुंदर
अपनी गैयो, बछड़ो और सखाओ के साथ प्रातः ही गोऊ चारण को निकल पड़े.....वन में पहुँच श्यामसुंदर अपने सखाओं के साथ भंदिरावट की छाया में खेलने लगे....और सभी गैया और
उनके बछड़े श्री यमुना का मीठा
मीठा जल और उसके किनारे उगी
हरी हरी घास चर रहे थे..। ऐसा
करते करते वो सभी गैया और बछड़े
श्री श्यामसुंदर के बिना ही और भी हरी भरी घास के लालच में धीरे धीरे
मुन्जातावी वन में प्रवेश कर गए जहा मुंजा घास उगा करती थी...।
वह वन बहुत ही घना था, जिससे उसमे एक बार प्रवेश करने के बाद कोई बहुत मुश्किल से बाहर आ
पता था....बेचारी गैया और बछड़े रास्ता भटक गए.....ग्रीष्म ऋतु होने के कारण वे भूख और प्यास से बहुत ही ज्यादा व्याकुल होने लगे..... और सभी मूक स्वर में  " हे
कृष्ण...हे कृष्ण..हे कृष्ण " करते हुए श्यामसुंदर को पुकारने लगे.... उनकी आँखों से निरंतर अश्रु की धराये बह रही थी और मन में पश्चताप हो रहा था की हम व्यर्थ ही लोभवश यहाँ आ
गयी...।
इधर जब श्यामसुंदर और उनके
सखाओ ने देखा की गैया तो वहां
नहीं है... तो सभी गैया और बछड़ो को ढूढने निकल पड़े अलग अलग दिशाओ में....श्यामसुंदर भी अपने कुछ सखाओ के साथ मुन्जतावी वन की और निकल पड़े.....
तभी वहां पर कंस के द्वारा भेजे गए उसके कुछ अनुयायियों ने श्यामसुंदर को और उनको गैयो को वन में
देखा तो उन्होंने उस मुन्जातावी वन में आग लग दी...ताकि वे सभी लोग
उसी अग्नि में जल कर भष्म हो जाये....। अग्नि की तपिश और जलन से गैया, बछड़े और सभी ग्वाल बाल व्याकुल हो उठे....। तपिश से व्याकुल बेचारी गैयो ने जोर जोर से रंभाना शुरू कर दिया.....जिसकी ध्वनि श्री
श्यामसुंदर के कानो में पड़ी और वे
उसी दिशा के और दौड़ पड़े....। जब श्यामसुंदर गैयो और बछड़ो के समीप पहुंचे तो श्री श्यामसुंदर ने सभी से कहा : - " तुम सभी कोई अपनी
अपनी आखे बूंद कर लो "और जब सबने अपनी अपनी आँखे बंद कर ली तब श्री श्यामसुंदर ने उस भीषण अग्नि को अपना मुहँ खोल उसे निगल लिया...। उसके पश्चात् श्री
श्यामसुंदर ने सबको आँखे खोलने को कहा और जब सबने अपनी आखे खोली तो उन सभी ग्वाल बालो, गैया और बछड़ो ने अपने आप को उस भंदिरावट के नीचे पाया...।
ऐसा दयालु है हमारे प्रभु.....जो की हर भटके हुए जीव को जो उनको प्रेम से पुकारते है , उसे अपनी शरण में ले लेते हैं....।
एक तरह से देखा जाये तो इस संसार सागर में हम सभी जीव उन गैयो और बछड़ो के जैसे ही हैं..... जो की लोभवश, मोहवश इस मुन्जावती वन रूपी इस संसार की माया में फँसे हुए है, और दुःख और अशांति रूपी अग्नि से प्रताड़ित होते है..... और हम सभी जीव एक जनम से दुसरे जनम में यु ही भटकते रहते है.... अगर हम लोग भी अपने ग्वाल रूपी श्री श्यामसुंदर के श्री चरणों का आश्रय ले तो दयालु श्यामसुंदर हमे भी इस भयंकर अग्नि रूपी पीड़ा और इस संसार के भवसागर से उबार कर अपने श्री चरणों में आश्रय देंगे और अपने
श्री धाम गोलोक में हमे सदा के लिए स्थान देंगे....ताकि हमे वापस एक जनम से दुसरे जनम ना भटकना पड़े....।
इस संसार के मायाजाल में फंसा जीव इस प्रकार से अपने मन के भाव को प्रभु श्री श्यामसुंदर से व्यक्त करता है.... जिसमे वो अपने आप को प्रभु
की उन्ही खोये हुए गैयो के रूप में
देखता हैं.... जिसकी काया पांच तत्त्व
( अग्नि, पृथ्वी, आकाश, जल और वायु ) से बनी हैं, और पांच तरह के विकारो ( काम, क्रोध, मद, लोभ और अहंकार) रूपी डंडो से हांकी जाती हैं.... हे प्रभु ! हे श्यामसुंदर ! आप हम जीव रूपी गैयो को ढूंढ़ लाओ......जो की इस संसार के मायाजाल में भटक गयी है।  हमें अपने श्री चरणों में आश्रय दो।
आइये हम भी प्रभु श्री श्याम सुन्दर के
श्री चरणों में अपने इस मन के भाव को प्रेम से व्यक्त करते हैं....

*तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया तेरी...*
*सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोयी गैया तेरी...*
हे गोपाल ! हे गोविन्द ! हे श्यामसुंदर ! मैं इस संसार की मायाजाल में खो गया हूँ प्रभु...! हे गोपाल ! अब तो इस जीव की जो तेरी ही एक प्रतिबिम्ब है.....जो की अपने कर्मो के वशीभूत हो इस संसार सागर के आवागमन में भटक गया है....मेरी अब सुध
लीजिये....मुझे अब अपने श्री चरणों में आश्रय दीजिये...।

*पांच विकार से हांकी जाए, पांच तत्व कि ये देही...*
*बरबस भटकी दूर कहीं मैं, चैन न पाऊं अब केहि.*
*ये कैसा मायाजाल, मैं उलझी गैया तेरी..*
*सुध लो मोरी गोपाल, मैं उलझी गैया तेरी...*

तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया
तेरी...
हे गोपाल..! हे गोविन्द..! हे श्यामसुंदर.! पांच तत्त्व ( अग्नि,
पृथ्वी, आकाश, जल और वायु ) से बना यह मेरा शरीर इन संसारी माया के पांच विकार ( काम, क्रोध, मद, लोभ और अहंकार) से हांका जा
रहा है....इन पाँच विकारों के वशीभूत, मैं इस संसारी मायाजाल में जबरजस्ती जकड़ा गया हूँ, जिसके कारण में तुम्हारे श्रीचरणों की छाँव से भटक गया हूँ, और मेरे मन को एक पल की भी शांति नहीं है....., जिस प्रकार मकड़ी के जाल में छोटे-छोटे कीट पतंगे जकड़ जाते है और उस
जाल में फँसकर छटपटाने लगते हैं... और फिर मकड़ी रूपी काल उन्हें अपना ग्रास बना लिया करता है...यह कैसा मायाजाल है प्रभु जी ! जिसमे मेरा जीवन उलझ गया हैं.... इसलिए हे गोपाल ! मेरी सुध लीजिये...मुझे अब अपने श्री चरणों में आश्रय दीजिये..!
*जमुना तट ना, नन्दनवट ना , गोपी ग्वाल कोई दीखे..*
*कुसुम लता ना, तेरी छटा ना, पंख पाखरू कोई दिखे..*
*अब साँझ भई गोपाल, मैं व्याकुल गैया तेरी..*
सुध लो मोरी गोपाल, मैं व्याकुल गैया
तेरी...
तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया
तेरी...

इस संसार के मायाजाल में मुझे ना ही वो यमुना तट, वो नंदन वट, वो कुसुम लता की डाल, और उनपर बैठे हुए पंछी, ना ही वो गोपी ग्वाल दिखते है ..जिसके सानिध्य में, मैं तुम्हारी अनुभूति कर सकूँ....अब तो बहुत देर
हो गयी प्रभु ! इस जीवन की संध्या होने के पहले ही तेरी इस व्याकुल गैया रूपी जीव की सुध ले लीजिये प्रभु !मुझे अब अपने श्री चरणों में आश्रय दीजिये....!
*कित पाऊं तरुवर की छाया, जित साजे मेरो कृष्ण कन्हैया.*
*मन का ताप शाप भटकन का, तुम्ही हरो हरी रास रचैया..*
*खड़ी मूक निहारूं बाट प्रभु जी, मैं गैया तेरी.*
सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोयी गैया
तेरी...
तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया
तेरी...
हे गोपाल..! हे गोविन्द..! हे श्यामसुंदर..! में तेरे श्री चरण के आश्रय रूपी तरुवर की छाँव अब कहाँ पाऊं प्रभु....मेरे मन का
इस प्रकार भटकना किसी शाप से कम
नहीं है प्रभु...इसलिए हे करुणानिधान रास रचाने वाले प्रभु...मेरे इस मन का संताप हरिये, मैं कब से मूक खड़े-खड़े आपकी बाट निहार रहा हूँ।
हे प्रभु..! हे गोपाल ! मेरी सुध
लीजिये..... और मुझे अब अपने
श्री चरणों में आश्रय दीजिये..!
*बंशी के स्वर नाद से टेरो, मधुर तान से मुझे पुकारो..*
*राधा कृष्ण गोविन्द हरिहर , मुरली मनोहर नाम तिहारो..*
*मुझे उबारो हे गोपाल ! मैं खोयी गैया तेरी..*
सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोयी गैया
तेरी...
तुम ढूढो मुझे गोपाल, मैं खोयी गैया
तेरी...
हे गोपाल ! हे गोविन्द ! हे श्यामसुंदर ! हे मुरली मनोहर ! हे हरी हर ! हे
राधाकृष्ण ! अब तो प्रभु अपनी
बंशी की मधुर मधुर ध्वनी से मेरे कर्णो को तृप्त कर दो और उसे ही आह्वाहन का नाद बना कर मुझ तुच्छ जीव को अपने श्री चरणों की ओर पुकारो प्रभु ! मुझे इस संसार सागर से उबारो प्रभु ! हे गोपाल ! अब तो मेरी सुध
लो.....और मुझे अब अपने श्री चरणों में आश्रय दो...!
*सुध लो मोरी गोपाल, मैं खोयी गैया तेरी...*
*तुम ढूढो मुझे गोपाल मैं खोयी गैया तेरी...*

हे गोपाल ! अब तो इस जीव की, जो
तेरी ही एक प्रतिबिम्ब है.....जो
कि अपने कर्मो के वशीभूत हो
इस संसार सागर के आवागमन में भटक गया है...अब तो
मेरी सुध लो प्रभु ! और मुझे अब अपने श्री चरणों में आश्रय दो...!!!
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