Monday, 15 May 2017

वेणु माधुर्यता , कृपालु जी महाराज

राधे राधे..

'ब्रजभाव माधुर्य'
खंड : 'मधुर कृष्ण'

कृष्ण की वेणु (वंशी) माधुर्यता

श्रीकृष्ण की वंशी के सम्बन्ध में अनेक विचित्र बातें हैं. श्रीकृष्ण की यह वंशी समस्त जगत को आकृष्ट कर उन्हें स्तब्ध कर देती है. मुनि, महामुनि, तपस्वियों के ध्यान को भंग करने वाली यह वंशी ऐसी है जो गोपियों के चित्त को चुरा ले गई. महाकवि सूरदास जी की रचनाओं में गोपियों और वंशी के मध्य एक विचित्र सम्बन्ध चित्रित किया गया है कि गोपियाँ इस वंशी को अपनी सौत मानती हैं, क्योंकि वन के बाँस से बनी यह वंशी सदा कृष्ण के अधरों (होंठों) से लगी रहती है. प्यारी गोपियाँ यह दुःख मानती हैं कि वंशी के मोह में कृष्ण तो उन्हें भूल ही गए हैं.. एक रसिक ने लिखा है..

सुनति हौ कहा, भजि, जाहु घरै, बिंध जाओगी नैन के बानन में ।
यह बंसी 'निवाज' भरी विष सौं बगरावति है विष प्रानन में ।
अबहीं सुधि भुलिहौ भोरी भटू, भँवरौ जब मीठी-सी तानन में ।
कुलकानि जो आपनि राखि चहौ, दै रहौ अँगुरी दोउ कानन में ।।

एक महाभागा गोपी ब्रज में घूम घूमकर कहती है कि अरी सखियों ! अपने अपने घरों को चली जाओ और अपने कानों में अँगुली डाल लो, यह बंशी तो बज बजकर सारे ब्रज में जैसे विष फैला रही है जो हमारे प्राणों को हरने लगा है.

कृष्ण की वंशी 3 प्रकार की है - वेणु, मुरली तथा वंशी. वेणु बहुत छोटी होती है. यह 6 इंच से अधिक लंबी नहीं होती है और इसमें 6 छेद होते हैं. मुरली लगभग 18 इंच लंबी होती है, इसके सिरे पर एक छेद रहता है और पूरी मुरली में 4 छेद होते हैं. वंशी 15 इंच लंबी होती है और इसमें कुल 9 छेद होते हैं. कृष्ण समय समय पर आवश्यकतानुसार इन 3 प्रकार की वंशियों को बजाते हैं. कृष्ण के पास इससे भी लंबी वंशी थी जो 'महानंदा' या 'सम्मोहिनी' कहलाती है, मणिजड़ित वंशी को 'सम्मोहिनी' कहते हैं. इससे भी बड़ी वंशी 'आकर्षिणी' कहलाती है जो कि स्वर्ण निर्मित होती है. इससे और बड़ी वंशी 'आनंदिनी' कहलाती है जो कि ग्वाल सखाओं को अतिशय सुख देने वाली है.

जगद्गुरु कृपालु महाप्रभु विरचित 'प्रेम रस मदिरा' की 'मुरली माधुरी' में एक जीवात्मा कहती है कि जिस मुरली को सुनकर जड़ में चेतनता आ जाती है और चेतन में जड़ता आ जाती है, समस्त जगत में एक मैं ही ऐसी निश्चल पर्वत के समान बची हूँ जिस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा -

'जंगम जीव, भये जड़ सिगरे, जड़ जंगम सुनि तान ।
एक 'कृपालुहिं' बच्यो जगत महँ, निश्चल शैल समान ।।'
(प्रेम रस मदिरा, मुरली माधुरी, पद 7)*

श्री कृपालु महाप्रभु विरचित 'राधा गोविन्द गीत' में एक जीवात्मा प्रियतम कृष्ण से यह प्रार्थना करती हैं कि 'एक बार तो यह मुरली की ध्वनि सुना दो, भले ही चुपके से सुना दो, सौगंध खाती हूँ कि मैं किसी से नहीं कहूँगी.. वे लिखते हैं -

'मुरली की तान निज गोविन्द राधे,
किसी ते कहूँगी नहिं चुपके सुना दे..'
(राधा गोविन्द गीत, दोहा 143)*

श्रीकृष्ण में जो 4 माधुरी अधिक है उसमें से एक यह 'वेणु माधुरी' है. रसिकजनों के चित्त को चुराने वाली यह वंशी कृष्ण की अतिप्रिया है.

*सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली

लेखन प्रस्तुति :
# सुश्री गोपिकेश्वरी देवी जी
# श्री कृपालु भक्तिधारा प्रचार समिति

No comments:

Post a Comment